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भक्ति और ध्यान में नहीं है ज्यादा अंतर : आचार्य सुनील सागर

गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन अहमदाबाद. दिगंबर जैन आचार्य सुनील सागर ने गुरुवार को कहा कि जब भक्ति और ध्यान की बात की जाती है तो दोनों में ज्यादा अंतर नहीं है। भक्ति में कहते हैं, बस तू ही है-तू ही तू है जो कुछ करेगा, दुखियों के दुख मिटाए, संकट से पार लगाए। […]

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गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन

अहमदाबाद. दिगंबर जैन आचार्य सुनील सागर ने गुरुवार को कहा कि जब भक्ति और ध्यान की बात की जाती है तो दोनों में ज्यादा अंतर नहीं है। भक्ति में कहते हैं, बस तू ही है-तू ही तू है जो कुछ करेगा, दुखियों के दुख मिटाए, संकट से पार लगाए। भक्ति में सब कुछ तू ही है और ध्यान की बात करे तो जो तू है, सो मैं हूं।
गुजरात यूनिवर्सिटी परिसर में चातुर्मास प्रवचन में आचार्य ने कहा कि ये समझने की शक्ति सिर्फ पंचेंद्रीय जीवों में ही है। भक्ति करने के अनेक रूप हैं। श्री जी का अभिषेक करना, आहार दान देना, प्रभु की भक्ति में नृत्य करना आदि। ऐसी भक्ति हो, जिसमें में वीतराग भगवान की आराधना हो, विवेक पूर्वक बिना किसी हिंसा के हो।
उन्होंने कहा कि भक्ति भी बहुत बड़ी चीज है। समझना और करना आना चाहिए। गुणों को समझ कर गुणवान की जो भक्ति की जाती है वो भव पार लगाती है। रागियों के सामने नहीं नाचना है, वितरागी के सामने नाचोगे तो नाचने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
आचार्य ने कहा कि तत्व को समझकर भक्ति करें। दिल से भक्ति करने पर फल जरूर मिलता है। भक्ति भगवान बनने का रास्ता प्रशस्त करती है। जब भगवान के स्वरूप को समझ कर निज चैतन्य धन को समझते हैं और अंतरंग में उतरने का पुरुषार्थ होता है, वो ध्यान कहलाता है।
उन्होंने कहा कि अपने चित्त को धर्म-ध्यान में लगाओ। संसारी जीवों के दुखों की मुक्ति कैसे हो, इसका चिंतन करना चाहिए। मैं भी संसार से, कर्म जाल से कैसे मुक्त होऊं, ऐसा चिंतन करना भक्ति में चित्त रमाना है। शुक्लध्यान हो जाए तो आत्मा परमात्मा बन जाती है। हम सभी उत्तम ध्यान में अपना उपयोग करें, धर्म में जुड़कर अपना जीवन मंगलमय बनाएं।