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पितृपक्ष में अमावस्या पर होता है सामूहिक श्राद्ध

अपनाघर आश्रम ने अभी तक 42 लोगों का किया सामूहिक श्राद्ध व तर्पण अलवर. समाज में ऐसे बहुत से लोग होते हैं, जिनका कोई अपना नहीं। ये लोग अनाथ आश्रमों में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उनके मरने के बाद उनके लिए रोने वाला भी कोई नहीं होता है। ऐसे ही लोगों का श्राद्ध कर्म करने […]

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अलवर

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Jyoti Sharma

Sep 12, 2025

अपनाघर आश्रम ने अभी तक 42 लोगों का किया सामूहिक श्राद्ध व तर्पण

अलवर. समाज में ऐसे बहुत से लोग होते हैं, जिनका कोई अपना नहीं। ये लोग अनाथ आश्रमों में अपना जीवन व्यतीत करते हैं। उनके मरने के बाद उनके लिए रोने वाला भी कोई नहीं होता है। ऐसे ही लोगों का श्राद्ध कर्म करने का पुण्य कार्य कर इंसानियत की मिसाल पेश कर रही है अलवर में संचालित अपनाघर आश्रम संस्था।

यह संस्था आश्रम में मरने वाले अनाथ व बेसहाराओं का प्रतिवर्ष सामूहिक श्राद्ध करती है। यह अनुष्ठान पितृपक्ष में सर्वपितृ अमावस्या के दिन किया जाता है। स्वामी विवेकानंद में संचालित संतोष कुमार जानकी देवी पुरुष आश्रम 2012 से संचालित है। इसमें अभी तक 37 लोग ब्रह्मलीन हो चुके हैं, इनका सामूहिक श्राद्ध किया जा चुका है। जबकि वैशाली नगर में संचालित महिला आश्रम में 2020 से संचालित है इसमें 5 महिलाएं ब्रह्मलीन हुई हैं। इन सभी का अंतिम संस्कार व सामूहिक श्राद्ध किया गया है।

हरिद्वार भेजी गई अस्थियां : इधर, साठ फीट रोड निवासी दंपती को बच्चों ने घर से निकाल दिया था। इसके बाद महिला को महिला आश्रम में और पुरुष को पुरुष आश्रम में रखा गया। जब वृद्घावस्था में महिला की मृत्यु हो गई तो पति ने हरिद्वार में अस्थियां प्रवाहित करने की इच्छा जताई। इस पर आश्रम ने उन्हें विशेष सुविधा देकर वाहन से हरिद्वार भेजा।

संतोष कुमार जानकी देवी अपनाघर आश्रम विवेकानंद के अध्यक्ष सतीश सारस्वत बताते हैं कि तीनों आश्रमों में प्रतिवर्ष 7 या 8 लोगों की मृत्यु होती है। इनका प्रतिवर्ष पितृ पक्ष की अमावस्या को सामूहिक श्राद्ध किया जाता है। श्राद्घ से पहले किया जाता है। इसमें इस बार 21 सितंबर को सामूहिक श्राद्ध किया जाएगा।

मृत आत्माओं को मिलता है मोक्ष: पं. ओमप्रकाश शर्मा ने बताया कि हिंदू धर्म में मृत आत्माओं की शांति व मोक्ष के लिए श्राद्ध कर्म करना जरूरी होता है, पुराणों के अनुसार यदि मृतक का नियत तिथि पर श्राद्ध नहीं किया जाता है तो उनकी आत्मा भटकती है। उसको मुक्ति नहीं मिलती है।

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