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मैं लाल डिग्गी हूं… नीर की निरंतरता, देखभाल और लोगों का प्यार, बस यही चाहिए मुझे जिंदा रहने के लिए

मैं लाल डिग्गी जलाशय हूं। अलवर शहर के लोगों के दिल में धड़कती प्राचीन विरासत। लंबे समय तक मेरी उपेक्षा की गई। अब मैं फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट रही हूं।

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लाल डिग्गी (फोटो - पत्रिका)

मैं लाल डिग्गी जलाशय हूं। अलवर शहर के लोगों के दिल में धड़कती प्राचीन विरासत। लंबे समय तक मेरी उपेक्षा की गई। अब मैं फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट रही हूं। मेरे किनारों पर हरियाली लौट रही है। मेरा अस्तित्व एक बार फिर लोगों को मेरी ओर खींचने लगा है, लेकिन मैं जानती हूं, मेरा वजूद सिर्फ पानी से है। जब तक मेरी कोख में जीवन का यह नीला आसमान सांस लेता रहेगा, तभी तक मैं भी इस शहर की पहचान बनकर जीवित रहूंगी। अगर पानी ही खत्म हो गया, तो चाहे रंग-रोगन हो या रोशनी, मैं सिर्फ एक खोखली याद बनकर रह जाऊंगी…

इस समय मेरे रूप को निखारने के लिए काम लगातार जारी है। मेरे चारों ओर बनी सीढ़ियों पर गमलों के जरिए हरियाली बढ़ाई जा रही है। दीवारों पर ताजा रंग की खुशबू है और शाम ढलते ही फव्वारे चलने लगे हैं। रोशनी होने लगी है। बच्चे, बुजुर्ग, परिवार, पर्यटक फिर से मेरे पास आने लगे हैं। अपनी बात मुझसे साझा करने लगे हैं। पुरानी यादें ताजा कर रहे हैं। (कंटेंट: सुशील कुमार)

राजस्थान पत्रिका ने उठाया मुद्दा

राजस्थान पत्रिका ने मुझे जीवनदान देने के लिए सिलीसेढ़ से आ रही नहर के जरिए पानी लाने का सपना दिखाया, तो मैं झूम उठी। इसी मुहिम में प्रशासन शामिल हुआ और मत्स्य उत्सव के जरिए मुझे सांस देने का काम किया गया। मेरे पास आई भीड़ ने सहारा दिया, लेकिन यह सहारा कब तक रहेगा? यह आप सब पर निर्भर करता है। मैं चाहती हूं कि सिलीसेढ़ से आ रही नहर के जरिए हर बारिश में ही नहीं बल्कि जब भी मुझे जरूरत पड़े, तो मेरा पेट पानी से भर जाए, बस यहां के प्रशासन को इस वजूद को बचाए रखना है। पानी की निरंतरता, देखभाल की जिम्मेदारी और शहर के लोगों का प्यार, बस यही चाहिए मुझे जिंदा रहने के लिए।