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Tribal pride of Surguja: सरगुजा के जनजातीय गौरव माने जाते हैं पद्मश्री माता राजमोहनी देवी और संत गहिरा गुरु, ये नाम भी हैं विख्यात

Tribal pride of Surguja: भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में यहां की जनजातियों की भी रही है महत्वपूर्ण भूमिका, आज जनजातीय गौरव दिवस के तहत हुए आयोजनों के समापन समारोह में शामिल होंगी राष्ट्रपति

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Tribal pride of Surguja

Mata Rajmohini Devi and Sant Gahira Guru (Photo- Instagram)

अंबिकापुर. भारत सरकार द्वारा भगवान बिरसा मुण्डा की 150वीं जयंती वर्ष के रूप में 15 नवंबर से 20 नवंबर तक जनजातीय गौरव वर्ष मनाए जाने का निर्णय लिया गया है। आज समापन समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू शामिल होंगी। जनजातीय गौरव वर्ष जनजातीय समुदायों के योगदान, गौरवशाली इतिहास (Tribal pride of Surguja) और उनकी विरासत को समर्पित उत्सव है। सरगुजा अंचल को देखें तो जनजातीय गौरव के रूप में पद्मश्री माता राजमोहनी देवी व संत गहिरा गुरु का नाम विख्यात है। इसी तरह जनजातीय गौरव के अंतर्गत भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में यहां की जनजातियों को भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जनजातीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी में माझी राम गोंड, महली भगत और राजनाथ भगत का नाम उल्लेखनीय है।

स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों पर शोध कार्य कर रहे राज्यपाल पुरस्कृत व्याख्याता अजय कुमार चतुर्वेदी ने बताया कि सरगुजा अंचल के आजादी की लड़ाई (Tribal pride of Surguja) में सभी जाति, धर्म, समुदाय के लोग देश को आजाद कराने में अविस्मरणीय योगदान दिये हैं। सरगुजा आदिवासी बहुल अंचल है, निश्चित रूप से यहां की जनजाति समुदाय के लोग भी अपने देश की खातिर आजादी की लड़ाई में कुर्बानियां दी होंगी।

सरगुजा गजेटियर में सरगुजा अंचल से जनजाति समुदाय (Tribal pride of Surguja) के 3 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम मिलते हैं। इसमें कुसमी के स्वर्गीय महली भगत, स्व. राजनाथ भगत और गांधीनगर अंबिकापुर के स्व. माझी राम गोड का नाम शामिल है।

देश के प्रथम राष्ट्रपति आए थे पंडोनगर

वहीं जिला मुख्यालय सूरजपुर से लगभग 26 किमी की दूरी पर ग्राम पंचायत पण्डोनगर है। यह वही गांव है जहां भारत के प्रथम राष्ट्रपति ने पदार्पण किया था। इस गांव में विशेष पिछड़ी जन जाति राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पण्डो जाति के लोग निवास करते हैं। इनकी दयनीय स्थिति को देखते हुए 22 नवम्बर 1952 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पण्डोनगर गांव में आये थे। आज भी इस गांव में इनकी याद में राष्ट्रपति भवन (Tribal pride of Surguja) बना हुआ है ।

Tribal pride of Surguja: समाज व देश सेवा में लगी रहीं राजमोहनी देवी

माता राजमोहनी देवी (Tribal pride of Surguja) का जन्म 7 जुलाई 1914 में वाड्रफनगर विकासखण्ड के सरसेडा शारदापुर गांव मे ंहुआ था। इनका विवाह प्रतापपुर विकासखण्ड के गोविन्दपुर गंाव के किसान परिवार में रंजीत गोंड़ के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र एवं पांच पुत्रियां हुई। इन्हें 20 वर्षों तक परिवार के साथ रहने के बाद आत्मज्ञान की प्राप्ति हुई और समाज सेवा में लग गईं।

इन्होंने जीवन भर समाज और देश सेवा के लिए संकल्प लिया। इनके बचपन का नाम राजो और रजमन देवी था, बाद में राजमोहनी देवी (Tribal pride of Surguja) के नाम से विख्यात हुर्इं। माता राजमोहनी देवी पैदल घूम-घूम कर शराब, मुर्गा और अत्याचार का विरोध करने लगी। इनका कहना था कि धर्म-कर्म करो साफ-सफाई से रहो, शराब, मांस, मछली छोड़ो, समाज में फैली बुराइयों को मिटाओं। राम का नाम जपो।

माता जी को समाज और देश सेवा के लिए मुख्यमंत्री पं. रविशंकर शुक्ल और भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने सरगुजा प्रवास के दौरान बधाइयां दी थीं। राजमोहनी देवी (Tribal pride of Surguja) को 19 नवम्बर 1986 में इंदिरा गांधी पुरस्कार और 25 मई 1989 में पद्मश्री पुरस्कार मिला था। राजमोहनी देवी जी का देहावसंान 6 जनवरी 1994 को हुआ।

मानवता के सच्चे उपासक थे संत गहिरा गुरु

संत गहिरा गुरु (Tribal pride of Surguja) का जन्म सन् 1905 में श्रावण मास की अमावस्या को छत्तीसगढ़ राज्य के धर्मजयगढ़ जिले के विकास खंड लैलूंगा ग्राम गहिरा में हुआ था। बचपन से ही उनके मन में दया, धर्म, ईमान, देश भक्ति और ईश्वर भक्ति की भावना प्रकट हो चुकी थी। वे सेवा भाव की शिक्षा देने लगे। बाद में वे गहिरा गुरु के नाम से समाज सेवा के क्षेत्र में विख्यात हुए। वे समाज सुधारक, आध्यात्मिक मार्गदर्शक और मानवता के सच्चे उपासक थे।

उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों को सही मार्ग दिखाने और सामाजिक बुराइयों को दूर करने में लगा दिया। वे हमेशा दूसरों की मदद करने और बड़ों का आदर करने में आगे रहते थे। संत गहिरा गुरु छत्तीसगढ़ के एक महान संत, समाज सुधारक और जनजागरणकर्ता थे। संत गहिरा गुरु (Tribal pride of Surguja) आदिवासियों की दुर्दशा को देखकर काफी दुखित होते थे और उन्हें लगता था कि उनकी दशा को कैसे सुधार किया जाए।

उनकी दशा को देखते हुए विचार किया और सबसे पहले अज्ञानता को हटाकर सनातन रीति को बचाने के लिए सत्य, शांति, दया, क्षमा को धारण करने, हत्या और झूठ को छोडऩे का उपदेश हुए देने लगे। गहिरा गुरु को समाज सेवा के लिए 1986-87 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय पुरस्कार और 1996-97 में मध्य प्रदेश बिरसा मुंडा आदिवासी सेवा राज्य पुरस्कार मिला।

उनके (Tribal pride of Surguja) योगदान को सम्मानित करते हुए संत गहिरा गुरु पर्यावरण पुरस्कार छत्तीसगढ़ शासन पर्यावरण एवं वन विभाग ने वर्ष 2003 मे स्थापित किया है। इनके सम्मान में संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालयश् की स्थापना अंबिकापुर सरगुजा में की है। समाज कल्याण का काम करते हुए 21 नवंबर 1996 को 92 वर्ष की आयु में वे स्वर्ग सिधार गए।


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