कई दशक के प्रयासों और भारी लागत से नेविगेशन, पोजिशनिंग और टाइमिंग सेवाओं के लिए अमरीकी जीपीएस सिस्टम के तर्ज पर तैयार की गई स्वदेशी नौवहन प्रणाली नाविक निष्प्रभावी होने के कगार पर है। इस प्रणाली को पूरी क्षमता के साथ ऑपरेशनल होने के लिए कम से कम 7 उपग्रहों की आवश्यकता होती है और दावा किया जा रहा है कि 4 उपग्रह सक्रिय हैं। हालांकि, वास्तविक स्थिति इससे भी खराब है।
हाल ही में लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि इस प्रणाली के लिए लांच किए गए कुल 11 उपग्रहों में से 4 ऑपरेशनल हैं। इन 4 उपग्रहों का उपयोग एकतरफा संदेश प्रसारण के लिए किया जा रहा है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस शृंखला के लांच किए गए दो उपग्रह अपनी निर्धारित कक्षा तक नहीं पहुंच सके। एक उपग्रह ऑपरेशनल अवधि पूरा करने के बाद सेवा से बाहर हो चुका है। शृंखला के 5 उपग्रहों की सभी तीन परमाणु घडिय़ां खराब हो चुकी हैं। ये उपग्रह हैं आइआरएनएसएस 1 ए, आइआरएनएसएस 1 सी, आइआरएनएसएस 1 डी, आइआरएनएसएस 1 ई और आइआरएनएसएस 1 जी। जो चार उपग्रह ऑपरेशनल हैं उनमें से भी एक उपग्रह आइआरएनएसएस 1 एफ की तीन में से दो परमाणु घडिय़ां खराब हो चुकी हैं। इसका अर्थ है कि इस उपग्रह से भी आंशिक सेवाएं ही मिल रही हैं।
दरअसल, इस शृंखला के जिन 4 उपग्रहों के सक्रिय होने का दावा किया गया है उनमें आइआरएनएसएस-1 एफ, आइआरएनएसएस-1 एल तथा एनवीएस-01 और एनवीएस 02 हैं। लेकिन, सच्चाई यह है कि आइआरएनएसएस 1 एफ की तीन में से दो परमाणु घडिय़ां खराब हैं। यानी, इस उपग्रह की भी आंशिक सेवाएं मिल रही होंगी। वहीं, एनवीएस-02 के वाल्व में खराबी आने के कारण यह उपग्रह निचली कक्षा में ही फंसा रह गया। चूंकि, इस उपग्रह को ऑपरेशनल कक्षा में नहीं पहुंचाया जा सका इसलिए इससे भी मामूली (10 फीसदी से अधिक नहीं) सेवाएं मिल रही हैं। इसरो ने इसी साल 29 जनवरी को एनवीएस-02 का प्रक्षेपण किया था, लेकिन उपग्रह के वाल्व में आई खराबी के कारण यह उपग्रह लगभग निष्प्रभावी है। जिन 4 उपग्रहों के ऑपरेशनल होने का दावा किया जा रहा है, वास्तव में उनमें से केवल 2 ही पूरी क्षमता के साथ काम कर रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री ने लोकसभा में कहा कि इस साल के अंत तक शृंखला के अगले उपग्रह एनवीएस-03 को लांच किया जाएगा। उसके बाद छह महीने के अंतराल पर शृंखला के दो अन्य उपग्रह एनवीएस-04 और एनवीएस-05 भी लांच किए जाएंगे। एनवीएस-02 के वाल्व में आई खराबी पर जांच समिति ने अपनी सिफारिशें सौंपी दी हैं। सिफारिशों के आधार पर शृंखला के अगले उपग्रहों में सुधार किए जाएंगे। दरअसल, भारतीय उपमहाद्वीप के 1500 किमी के दायरे में नाविक प्रणाली अमरीका की जीपीएस से भी अधिक परिशुद्धता के साथ स्थिति की जानकारी प्रदान करने में सक्षम है। स्थलीय, हवाई और समुद्री नेविगेशन, आपदा प्रबंधन, वाहनों की ट्रैकिंग, बेड़े का प्रबंधन, उपग्रहों के कक्षा निर्धारण समेत कई सेवाएं नाविक प्रणाली से मिलती हैं। कुछ मोबाइल सेट पर भी नाविक सेवाएं उपलब्ध होने लगी हैं और इसे हर-हाथ तक पहुंचाने के प्रयास भी हो रहे हैं। भले ही यह प्रणाली जीपीएस की तरह लोकप्रिय नहीं है, लेकिन देश की सेनाओं और मछुआरों के लिए काफी उपयोगी साबित हुई है।
नाविक प्रणाली को सक्रिय करने के लिए इसरो ने कुल 7 उपग्रहों को पृथ्वी की अलग-अलग कक्षाओं में जुलाई 2013 से अप्रेल 2016 के बीच स्थापित किया। दुर्भाग्य से इन उपग्रहों में लगाई गईं यूरोपीय परमाणु घडिय़ां खराब होने लगीं और एक के बाद एक उपग्रह निष्प्रभावी होने लगे। प्रत्येक उपग्रह को 10 से 12 साल के मिशन पर भेजा गया, लेकिन तीन-चार साल में ही उपग्रह खराब होने लगे। इसरो ने स्वदेशी तकनीक से परमाणु घडिय़ों का विकास किया और सबसे पहले अगस्त 2017 में खराब पड़े आइआरएनएसएस-1 ए की जगह आइआरएनएसएस-1 एच भेजा। लेकिन उपग्रह हीटशील्ड में फंस गया और मिशन विफल हो गया। फिर उसकी जगह आइआरएनएसएस-1 एल लांच किया गया। वर्ष 2023 में इसरो ने शृंखला के सभी उपग्रहों को दूसरी पीढ़ी के उपग्रहों से स्थानांतरित करने की योजना बनाई और उपग्रहों का नामकरण एवीएस कर दिया। एनवीएस शृंखला के कुल 5 उपग्रह लांच करने की योजना थी जिसमें से एक उपग्रह (एनवीएस-01) मई 2023 में भेजा गया जो ऑपरेशनल है। लेकिन इसी साल लांच किया गया एनवीएस-02 विफल हो गया जिससे इसरो को फिर एक बार झटका लगा।
Published on:
12 Aug 2025 07:22 pm