
बरेली। दिल्ली ब्लास्ट की जांच से जुड़े इनपुट पर जब बरेली पुलिस ने दो प्रमुख मीट निर्यातक कंपनियों की पड़ताल की, तो एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया—दोनों प्रतिष्ठानों में सुरक्षा गार्ड के रूप में तैनात 27 कश्मीरी युवक बिना किसी पुलिस सत्यापन के काम कर रहे थे। सुरक्षा संवेदनशीलता को देखते हुए पुलिस और खुफिया एजेंसियों में हड़कंप मच गया है।
स्थानीय स्तर पर इन गार्डों का वेरिफिकेशन तक नहीं हुआ था। जिम्मेदारी जिस सिक्योरिटी एजेंसी को दी गई थी, उसका संचालक स्वयं कश्मीर का मूल निवासी है। पुलिस अब एलआईयू के माध्यम से एक-एक व्यक्ति की पृष्ठभूमि, गतिविधियों और वित्तीय लेनदेन की बारीकी से जांच में जुटी है।
डीआईजी अजय कुमार साहनी ने कहा, “सीओ एलआईयू ने जांच की है। विस्तृत रिपोर्ट मिल जाएगी। उसी आधार पर आगे की कार्रवाई तय की जाएगी।
सुरक्षा एजेंसियों के इनपुट पर संभल पुलिस ने भी सख्ती बढ़ा दी है। संभल की मीट फैक्ट्रियों और संबद्ध प्रतिष्ठानों में तैनात 52 कश्मीरी सुरक्षा गार्डों की सूची तैयार की गई। इनमें से 13 को तत्काल कश्मीर भेज दिया गया है, जबकि बाकी 39 को 25 नवंबर तक घर वापस लौटने का नोटिस दिया गया है।
इनमें अधिकतर पुंछ और राजौरी जिले के रहने वाले बताए जा रहे हैं। अधिकृत सूत्रों के अनुसार आयकर विभाग ने पहले ही शासन को अपनी रिपोर्ट में आशंका जताई थी कि कुछ सुरक्षा एजेंसियों के माध्यम से कट्टरपंथी संगठनों तक फंडिंग की संभावनाएं हैं। इसी कारण इन सभी पर कड़ी निगरानी की जा रही है।
एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई के मुताबिक, “गार्डों को वापस भेजने के साथ स्थानीय स्तर पर सत्यापन भी कराया जा रहा है। इससे पहले ईंट भट्ठों पर काम करने वाले बांग्लादेशी और रोहिंग्या मजदूरों को भी वापस भिजवाया गया था।”
संभल जिले का कनेक्शन पहले भी विभिन्न आतंकी संगठनों से सामने आ चुका है। एनआईए और एटीएस समय-समय पर छापेमारी करती रही हैं। तीन साल पहले आयकर विभाग की कार्रवाई में कश्मीरी मूल की सुरक्षा एजेंसियों का नेटवर्क मिला था। अक्टूबर 2025 में भी एक बड़ी मीट कंपनी के ठिकानों पर छापेमारी में कश्मीरी एजेंट और उनके कर्मचारी पकड़े गए थे।
जैश-ए-मोहम्मद के फरीदाबाद मॉड्यूल के उजागर होने के बाद, यूपी एटीएस ने यूपी के कई जिलों में इसी पैटर्न की जांच शुरू की थी। संभल की जामा मस्जिद सर्वे हिंसा (24 नवंबर 2024) में पाकिस्तानी और अमेरिकी कारतूसों का इस्तेमाल भी सामने आ चुका है। इन्हीं घटनाओं की कड़ी में मीट फैक्ट्रियों में तैनात कश्मीरी युवकों की भूमिका और उनकी मूवमेंट पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
किसी भी फैक्ट्री या कंपनी में बाहरी व्यक्ति को रखने से पहले पुलिस सत्यापन अनिवार्य है।
यदि तीसरी पार्टी के माध्यम से भर्ती की जाती है, तो सत्यापन की ज़िम्मेदारी पूरी तरह एजेंसी की होती है।
लेकिन यहां न तो एजेंसी ने वेरिफिकेशन कराया। न कंपनियों ने इसकी पुष्टि की। और न ही इनकी गतिविधियों का कोई रिकॉर्ड उपलब्ध था। यही लापरवाही अब पूरे मामले को संदिग्ध बना रही है। पुलिस ने सभी कर्मचारियों की गतिविधियों, मोबाइल लोकेशन और बैंकिंग ट्रांजेक्शनों की जांच शुरू कर दी है, ताकि पता लगाया जा सके कि कहीं बड़े पैमाने पर किसी संदिग्ध स्थान पर फंड ट्रांसफर तो नहीं हुआ।
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Updated on:
19 Nov 2025 09:48 am
Published on:
19 Nov 2025 09:43 am
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