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धोरों की धरती पर खेती ने बदली तस्वीर, जीरा-बाजरा-अनार में दबदबा

नर्मदा नहर गुड़ामालानी तक पहुंचने के बाद बॉर्डर से जुड़े गांवों में भूमिगत जल और टृयूबवैल की संख्या बढ़ने से खेती को मिला बढ़ावा

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एक खेत में लगी जीरे की फसल

बाड़मेर. जिस धरती को कभी लोग बंजर और पिछड़ा कहते थे, वही अब समृद्धि की नई गाथा लिख रही है। नर्मदा नहर के पानी और भूमिगत जल ने मरुस्थल में हरी-भरी क्रांति ला दी है। बाड़मेर-बालोतरा का किसान अब केवल बारिश पर निर्भर नहीं, बल्कि रबी-खरीफ फसलों के साथ बागवानी में भी आगे बढ़ रहा है। करोड़ों की उपज देने वाले जीरे और अनार ने यहां की पहचान बदल डाली है।
पहले यहां का जीवन पशुपालन और वर्षा आधारित खेती तक सीमित था। लूणी नदी के किनारे ही किसान रबी फसल बो पाते थे। लेकिन समय ने करवट ली। नर्मदा नहर गुड़ामालानी तक पहुंची और सीमा से जुड़े गांवों में नलकूपों से पानी मिलने लगा। नतीजा यह हुआ कि चौहटन, शिव, सेड़वा, धनाऊ और धोरीमना जैसे इलाके भी खेती की मुख्य धुरी बन गए।

4.25 लाख हेक्टेयर जमीन पर फसलें लहलहा रही
आज बाड़मेर क्षेत्र की 4.25 लाख हेक्टेयर जमीन पर रबी की फसलें लहलहा रही हैं। इनमें सबसे बड़ा हिस्सा जीरे का है, जो 2.60 लाख हेक्टेयर में बोया जा रहा है। सरसों, गेहूं और अन्य फसलें भी तेजी से बढ़ रही हैं। वहीं खरीफ में 11 लाख हेक्टेयर से अधिक भूमि पर बाजरा, ग्वार, मोठ और मूंग जैसी फसलें किसानों की आय का आधार बन चुकी हैं।

बाड़मेर में खेती
जीरा : 2.60 लाख हेक्टेयर
ईसबगोल : 1.30 लाख हेक्टेयर
सरसों : 15 हजार हेक्टेयर
गेहूं व अन्य : 11 हजार हेक्टेयर
बाजरा : 6.70 लाख हेक्टेयर
मोठ : 1 लाख हेक्टेयर
ग्वार : 2 लाख हेक्टेयर
मूंग : 15000 हेक्टेयर
तिल : 8000 हेक्टेयर
मूंगफली : 4 हजार हेक्टेयर
अरंडी : 4,5000 हेक्टेयर

खेती को बढ़ाव मिला है
इलाके में नर्मदा नहर का पानी आने के बाद भूमिगत जल और टृयूबवैल की संख्या बढ़ने से खेती को बढ़ाव मिला है। पहले किसान खेती के लिए केवल बारिश पर निर्भर थे। अब किसान केवल बारिश पर निर्भर नहीं, बल्कि रबी-खरीफ फसलों के साथ बागवानी भी अपना रहे हैं।-पदमसिंह भाटी, सहायक निदेशक, कृषि विभाग, बाड़मेर