
बाजरा अनुसंधान केंद्र (फोटो- पत्रिका)
बाड़मेर: गुड़ामालानी का बाजरा अनुसंधान केंद्र रेगिस्तानी किसानों के लिए उम्मीद की नई किरण बनकर उभर रहा है। यहां वैज्ञानिकों ने अनुसंधान कार्य शुरू कर दिए हैं। वर्तमान में पांच वैज्ञानिक बाजरा, जीरा और सरसों पर प्रयोग कर रहे हैं। भविष्य में अनार, बेर और ईसबगोल पर भी अनुसंधान होगा।
इससे यह केंद्र एक बहुफसली अनुसंधान हब के रूप में विकसित होगा, जो रेगिस्तानी कृषि को नई दिशा और पहचान देगा। अनुसंधान केंद्र के भवन का लगभग 95 प्रतिशत कार्य पूरा हो चुका है। निर्माण कार्य केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडब्ल्यूडी) द्वारा 5.50 करोड़ रुपए की लागत से कराया जा रहा है। अगले दो महीने में भवन हैंडओवर होने की संभावना है। इसके साथ ही लैब और अनुसंधान उपकरणों की स्थापना भी शुरू हो जाएगी।
केंद्र में अब तक 18 प्रकार के प्रयोग पूरे किए जा चुके हैं, जिनमें बाजरे की विभिन्न वैरायटी पर रिसर्च शामिल है। इसमें हैदराबाद और जोधपुर की यूनिटों का सहयोग रहा। भविष्य में यहां चार अत्याधुनिक लैब्स स्थापित की जाएंगी, जहां 10 वैज्ञानिक कार्य करेंगे। फिलहाल कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर की अखिल भारतीय समवेत बाजरा अनुसंधान परियोजना यूनिट को गुड़ामालानी में शिफ्ट कर दिया गया है।
वैज्ञानिक वर्षा आधारित परिस्थितियों में यह तय करने पर काम कर रहे हैं कि कौन सी हाइब्रिड वैरायटी कम पानी में अधिक उत्पादन दे सकती है। इसका उद्देश्य स्थानीय जलवायु के अनुकूल बीज विकसित कर किसानों की लागत घटाना और उत्पादन बढ़ाना है।
बाजरा अनुसंधान केंद्र की स्थापना की प्रक्रिया वर्ष 2021 में शुरू हुई थी। जब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने केंद्र के लिए 100 एकड़ भूमि की मांग की थी। भूमि आवंटन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद 27 सितंबर 2023 को उपराष्ट्रपति की मौजूदगी में नींव रखी गई थी।
कम समय में बाजरा अनुसंधान केंद्र में शोध कार्य शुरू हो गया है। पहली बार 18 प्रयोग किए गए हैं। यहां के पानी और बाजरे की पैदावर पर काम किया है। वर्तमान में एक जोधपुर की यूनिट को यहां शिफ्ट किया गया है। भवन बनकर तैयार हो रहा है। जल्द ही उसका उद्घाटन होगा।
-डॉ. एसएन सक्सेना, प्रमुख बाजरा अनुसंधान केंद्र, गुड़ामालानी
Updated on:
15 Nov 2025 01:48 pm
Published on:
14 Nov 2025 02:21 pm
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