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मोबाइल स्क्रीन से बढ़ा खतरा, बच्चों में दिखें ये लक्षण तो हो जाएं Alert, तेजी से बढ़ रहा वर्चुअल ऑटिज्म

Virtual Autism symptoms causes and prevention: राजधानी भोपाल के बच्चे हो रहे वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार, तेजी से बढ़ रही संख्या, डॉक्टर्स भी शॉक्ड... बताया मोबाइल स्क्रीन बड़ा खतरा, आज से ही 0 कर दें स्क्रीन टाइम..

virtual Autism causes symptoms prevention
virtual Autism causes symptoms prevention(फोटो सोर्स: सोशल मीडिया-modified by patrika.com)

Virtual Autism symptoms causes and prevention: ऋतु अग्रवाल. राजधानी के बच्चे वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार हो रहे हैं। मोबाइल की वजह से इस बीमारी के बढ़ते मामलों से चिकित्सक भी हैरान हैं। उनकी सलाह है कि मां 0 से 2 साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम जीरो रखें। अन्यथा आगे चलकर बच्चों को गंभीर समस्या हो सकती है। वे चिड़चिड़े हो सकते हैं। उन्हें बोलने में दिक्कत आ सकती है और आंखों में भैंगापन की समस्या हो सकती है। हमीदिया की चाइल्ड ओपीडी में हर दिन आ रहे 40 से 50 बच्चे, इनमें से 20 वर्चुअल ऑटिज्म के शिकार।

केस-

आर्या सात साल की है। अपने काम के कारण उसे मोबाइल पकड़ा दिया। आर्या अब मोबाइल की लती हो गई है। किसी से बात नहीं करती और चिड़चिड़ापन, इंटरेक्शन की कमी हो गई और मां-पिता से भी बात नहीं करती। मनोवैज्ञानिकों का कहना है आर्या वर्चुअल ऑटिज्म की शिकार है।

केस-

कबीर परिवर्तित नाम अभी 9 साल का है। मां-बाप ने 4 साल की उम्र में ही मोबाइल पकड़ा दिया। अब ठीक से बोल भी नहीं पाता। मनोवैज्ञानिकों ने बताया कि कबीर वर्चुअल ऑटिज्म से पीड़ित है। उसका इलाज चल रहा है।

क्या है वर्चुअल ऑटिज्म

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार यह एक नया टर्म है। मोबाइल और तकनीक के ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में व्यवहारिक और मानसिक समस्या हो रही है। इसके लक्षण ऑटिज्म पीड़ितों की तरह हैं। बच्चे आई कांटेक्ट नहीं कर पाते, अपने में खोए रहते हैं। हाइपर एक्टिव होते हैं और स्पीच डिले होती है। साथ ही बच्चों में चिड़चिड़ापन आ जाता है।

स्थिति गंभीर

यह केवल दो मामले नहीं हैं। शहर में हर रोज ऐसे मामले मनोवैज्ञानिकों के पास पहुंच रहे हैं, जहां बच्चा स्क्रीन टाइम के कारण वर्चुअल ऑटिज्म से पीड़ित है। यह स्थिति एक गंभीर खतरा बनती जा रही है।

इन बातों का खास ख्याल रखें अभिभावक

2 साल तक के बच्चों का स्क्रीन टाइम जीरो रखें।

3 से 5 साल के बच्चों को जरूरी हो, तो एक घंटे स्क्रीन टाइम हो।

बच्चों से संवाद करें, उनके साथ ज्यादा समय बिताएं।

बच्चों को खुली जगहों पर ले जाकर एक्टिविटी करें।

पैरेंट्स बच्चों के सामने ज्यादा देर स्क्रीन न देखें।

स्क्रीन टाइम को दूसरे कामों से रिप्लेस करें।

ये लक्षण दिखें तो तुरंत

-1- बच्चा दिनभर टीवी, मोबाइल देखता है और नहीं देखने पर चिड़चिड़ाता है।
-2- किसी से बात करना पसंद नहीं करते
-3- तेज आवाज या लोगों के बीच जाने पर असहज महसूस करते हैं
-4- ठीक से बोल भी नहीं पाते हैं।
-5- अकेले रहना पसंद करते हैं।
-6- खेल-कूद बंद कर देते हैं।
-7- स्कूल जाना नहीं चाहते।

बच्चों को मनोरंजक कार्यों में लगाएं

मनोवैज्ञानिक काकोली रॉय के अनुसार शहर में वर्चुअल ऑटिज्म के ऐसे बच्चे आते हैं जिन्हें स्क्रीन की लत इतनी ज्यादा है कि उनके व्यवहार और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है। कुछ केस ऐसे हैं कि बच्चा स्क्रीन से ही पढ़ाई करना चाहता है और स्कूल जाना नहीं चाहता। माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों का स्क्रीन टाइम कम कर दूसरे मनोरंजक कार्यों में लगाएं।

परमेसिव पैरेंटिंग भी इसका बड़ा कारण

मनोवैज्ञानिक डॉ. गीता नरहरि ने बताया कि वर्चुअल ऑटिज्म की एक वजह परमेसिव पैरेंटिंग हैं। यह वह पैरेंटिंग है, जहां पैरेंट्स बच्चों को बहुत लाड़ देते हैं, लेकिन उनका नियंत्रण कम होता है। ऐसे पैरेंट्स का सोचना होता है कि हमें कंप्यूटर या मोबाइल नहीं मिला, लेकिन हम बच्चे को दे सकते हैं, तो देते हैं। इससे बच्चे की मेंटल और फिजिकल अलर्टनेस कम हो रही है।

अब स्पीच डिले की समस्या आम

चाइल्ड एंड एडोलसेंट साइकेट्रिस्ट डॉ. समीक्षा साहू के अनुसार ऑटिज्म की एक वजह ज्यादा देर तक स्क्रीन देखना भी है। हमारे पास जितने भी बच्चे आते हैं, उनमें से हर दूसरे-तीसरे बच्चे में स्पीच डिले की समस्या है। हमीदिया में शुक्रवार को चाइल्ड ओपीडी में चालीस-पचास बच्चे देखती हूं, तो उसमें से करीब 20 बच्चे ऑटिज्म पीड़ित होते हैं। यह गंभीर समस्या है।