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मां, बच्चों को संस्कार नहीं दे पाती तो समाज में आती हैं विकृतियां : गुलाब कोठारी

Stree Deh Se Aage : पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने ‘स्त्री: देह से आगे’ विषय विवेचन कार्यक्रम में की नारी के विविध रूपों की व्याख्या।

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भोपाल

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Faiz Mubarak

Oct 30, 2025

Stree Deh Se Aage

'स्त्री: देह से आगे' विषय पर विवेचन कार्यक्रम (Photo Source- Patrika Input)

Stree Deh Se Aage : जब मां अपने बच्चों को संस्कार नहीं दे पाती है, तब समाज में विकृतियां पैदा होती हैं। क्योंकि मां ही गर्भ में पल रही अमानवीय आत्मा को मानवीय बनाती है। मां उसे संस्कारित नहीं करती है तो उसमें पूर्व जन्म के संस्कार पैदा हो जाते हैं। पूर्व जन्म में जरूरी नहीं कि, वो मनुष्य ही हो। पशु, पक्षी आदि कुछ भी हो सकता है। इससे उसे संस्कार नहीं मिलने पर आसुरी भाव प्रकट होते हैं, जो पूरी उम्र देश और समाज का अहित करते हैं।

आज समाज में जो चिंताएं पैदा हो रही हैं, उसका एक ही निवारण है कि स्त्री अपनी भूमिका को समझ ले और पूरे देवत्व को शरीर में धारण कर ले। ऐसा हुआ तो भारत फिर विश्वगुरु बन सकता है। ये विचार पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने बुधवार को मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 'स्त्री: देह से आगे' विषय पर विवेचन कार्यक्रम में व्यक्त किए।

'शरीर से नहीं, आत्मा से जीती है मां'

आयोजन श्रद्धेय कर्पूर चंद्र कुलिश के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में एलएनसीटी यूनिवर्सिटी भोपाल के ऑडिटोरियम में किया गया। कार्यक्रम में मध्य प्रदेश शासन के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल भी मौजूद रहे। कोठारी ने कहा कि, मां शरीर से नहीं, आत्मा से जीती है और वो आखिरी पंक्ति में होती है, लेकिन बच्चे को संस्कारित करने का कठिन काम करती है।

जब मां…

गुलाब कोठारी ने कहा- 'जो बीज अपने फल खाना चाहता है, वो कभी पेड़ नहीं बन सकता। पेड़ बनने के लिए बीज को जमीन में गड़ना पड़ता है। मां बीज है, जो जमीन में गड़कर पेड़ बनी है। उसके फल और छाया दूसरे लोग ही भोगते हैं। मां साधारण हस्ती नहीं हो सकती। एक मां पति को भी पुत्र बना रही है, क्योंकि वे एक ही रूप हैं। बच्चा भी पति का ही रूप है।' बता दें कि, कार्यक्रम में विषय प्रवर्तन और आभार प्रदर्शन पत्रिका भोपाल के स्थानीय संपादक महेंद्र प्रताप सिंह ने किया।

विवाह में मंत्रों से जुड़ती हैं आत्माएं

कोठारी ने कहा कि हमारा शरीर मंत्रों से, पंचमहाभूतों से बना है। इसलिए सभी अनुष्ठान मंत्रों से जुड़े हैं। हमारी संस्कृति में विवाह दो शरीरों का नहीं, आत्माओं का मिलन होता है। यह दोनों आत्माएं अदृश्य हैं और प्राण रूप हैं। प्राण को मंत्रों के सहारे जोड़ा जाता है। इसलिए हमारे यहां सात जन्म का विवाह होता है। विज्ञान भी यह मानता है कि हमारे जीन में सात पीढ़ियों के गुण होते हैं। सोम सदा अग्नि में आहूत होता है। यह सारा मंत्रों का खेल है। पुरुष के पास बीज है, लेकिन स्त्री के पास नहीं है।

विवाह में…

कन्या के हिस्से का बीज उसके पिता में रह जाता है, जबकि पुरुष का बीज पिता पुत्र को दे देता है। इसलिए विवाह के समय पिता बैठकर मंत्रों के जरिए यह बीज दूल्हे के प्राणों से जोड़ता है। मंत्रों में प्राणों को जोड़ने की शक्ति है। इसी को कन्यादान कहते हैं। ये उसके प्राणों का ट्रांसफर है, जो पति के साथ जुड़ता है। विवाह के पहले कन्या अपने शरीर के लिए जी रही थी, लेकिन इसके बाद शरीर का धर्म मां-बाप के यहां छूट गया। अब नए प्राणों का जीवन शुरू होता है। यहां से उसकी आत्मा जीती है और उसके सपने बदल जाते हैं।

'…हमारा शरीर ही मां है'

जब घर में नया मेहमान प्रवेश करता है, तो नारी को ही सबसे पहले पता चलता है। इसके साथ ही उसका व्यवहार बदल जाता है। स्वभाव, संस्कार, शिक्षा आदि मां के अंदर पैदा होने लगते हैं। इसके बाद नए मेहमान को इस घर में रहने लायक इंसान बनाया जाता है। मां अपने शरीर से ही संतान के शरीर का निर्माण करती है। इसीलिए अगर बच्चा विदेश में कष्ट में हो तो मां को आभास हो जाता है। इसलिए मां भले ही शरीर रूप में मौजूद न हो, लेकिन हमारा शरीर ही मां है।

'अग्नि व सोम ही करते हैं विश्व का निर्माण'

'ब्रह्मांड में दो एलिमेंट होते हैं- एक मैटर और दूसरा एनर्जी। खासियत है कि, ये कभी खत्म नहीं होते। रूप बदलते रहते हैं। मैटर एनर्जी बन जाता है और एनर्जी मैटर बन जाती है। इस प्रकार मूल में एक ही तत्व है। गीता में भी दो ही तत्व बताए गए हैं- ब्रह्म और माया। इन्हें अग्नि और सोम भी कहा जाता है। अग्नि गर्म होकर ऊपर उठता है और सोम बन जाता है। वापस नीचे आने लगता है फिर अग्नि बन जाता है, लेकिन तत्त्व एक ही है। हमारा दर्शन कहता है कि अग्नि और सोम ही विश्व का निर्माण करते हैं। दोनों एक ही हैं। अग्नि को पुरुषत्व कहते हैं, जिसकी आकृति केंद्र है। जिसकी आकृति केंद्र नहीं है, उसे रिक्त कहते हैं। रिक्त से सृष्टि नहीं हो सकती। आकृति नहीं है तो वो सोम है। इसी को हम अर्धनारीश्वर भी कहते हैं।'

'जिसमें अग्नि कम है, वह नारी हो जाती है। व्यवहारिक जीवन में इससे नई दृष्टि मिलती है। पुरुष में बाहर अग्नि और ऊष्णता है, लेकिन भीतर वह सोम है। अग्नि में आहूत होते हैं, वह यज्ञ कहलाते हैं। स्त्री बाहर सोम है, लेकिन भीतर अग्नि है। सोम में स्नेहन है और मृदुता है। अग्नि जहां तोड़ता है, वहीं सोम जोड़ता है। लड़के स्वच्छंद हैं, उनके ऊपर कोई रोक-टोक नहीं है। उनके पौरुष भाग का पोषण घर में हो रहा है, लेकिन स्त्री भाग का पोषण नहीं हो रहा है। आग्नेय तत्व के पोषण से उसकी ऊष्णता और आक्रामकता बढ़ती जा रही है। कन्या पक्ष के पोषण में स्वतंत्रता है, लेकिन स्वच्छंदता नहीं है। कन्याभोज का कारण भी यही है, क्योंकि कन्या देश का भविष्य देगी, देश को गर्व करने वाली संतान देगी। इसलिए उसका स्थान मां-बाप से भी बड़ा है। वह जन्म से मातृत्व का भाव लेकर पैदा हुई और उसी के साथ बड़ी होती है। वह अपने शरीर का निर्माण करती जाती है, सभी अनुष्ठानों, परंपराओं का अध्ययन करते हुए बड़ी होती है। तीसरा निजी पक्ष है-महिला बनकर दूसरे घर जाना, एक परिवार को खड़ा करना। इस प्रकार उसकी सौम्यता बढ़ती जाती है, लेकिन पुरुष भाव घटता जाता है।'