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प्रोफेसर बोले कॉलेजों में पढऩे वाले 30 प्रतिशत छात्र कंप्यूटर वाले भैया के भरोसे चुनते हैं विषय

मध्य प्रदेश में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लागू हुए तीन वर्ष का समय हो चुका है। कर्नाटक के बाद एनईपी लागू करना वाला यह देश का दूसरा राज्य है। तीन साल बाद प्रदेश की शिक्षा व्यवस्था में क्या बदलाव आया। वर्तमान स्थिति क्या है और किस तरह के सुधार की जरूरत है। इन तमाम मुद्दों को लेकर पत्रिका ने टॉक शो के माध्यम से भोपाल के अलग-अलग कॉलेजों में पढ़ाने वाले प्रोफेसर से चर्चा की।

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जिसमें कुछ हैरत करने वाले तथ्य भी सामने आए। प्रोफेसर ने बताया कि शिक्षा में बदलाव जरूरी है। होना भी चाहिए, लेकिन प्रदेश में एनईपी को लागू करने से पहले संसाधन जुटाना जरूरी था। आज एक-एक स्ट्रीम में 12-12 विषय हो गए हैं। मेजर, माइनर, ओपन इलेक्टिव। स्थिति यह है कि लगभग ३० प्रतिशत बच्चे तो कक्षाओं के ऐसे होते हैं, जिन्हें यह भी पता नहीं होता कि उन्होंने कौन-कौन से विषयों का चयन किया है। विद्यार्थी आज भी कंप्यूटर वाले भैया के भरोसे विषय चुन रहे हैं। पेश है बातचीत के कुछ अंश...
कोर्स चुनने से पहले काउंसलिंग जरूरी है। युवा जल्दबाजी में विषय चुन लेते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत शिक्षा में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। युवाओं के लिए इतने सारे विकल्प दे दिए गए हैं कि उन्हें खुद समझ नहीं आ रहा है, क्या करना चाहिए।
डॉ. चंद्रभान मकोड़े
12वीं कक्षा में विद्यार्थियों की काउंसलिंग होना चाहिए। उन्हें क्या बनना है। उनका रुझान किस तरफ है। इसी के साथ यह बहुत जरूरी है कि छात्र की क्षमता कितनी है। विषय चुनने से पहले इन सब पर गौर करने की आवश्यकता है।
डॉ. उमाशंकर पटेल
राष्ट्रीय शिक्षा नीति की शुरूआत स्कूल स्तर से होना चाहिए थी। इससे बच्चे कॉलेज में पहुंचने तक बदलाव को अच्छी तरह से समझ पाते। आज कॉलेजों में बिना संसाधन दर्जनों कोर्स शुरू कर दिए, जिन्हें पढ़ाने वाला कोई नहीं है।
डॉ. आनंद शर्मा
इस साल यूजी फोर्थ ईयर में प्रवेश दिया जाएगा। लेकिन यह केवल रिसर्च फील्ड वाले छात्रों के लिए ही होगा। साथ ही एक समस्य यह भी है कि इसमें प्रवेश लेने के लिए छात्र को यूजी थर्ड ईयर में ७५ प्रतिशत अंक जरूरी हैं। इसे लेकर छात्रों की असमंजय की स्थिति है।
डॉ. रितेश सिंगारे
पहले विद्यार्थी कोई एक कोई विषय चुनकर आगे बढ़ते थे, आज स्थिति यह कि कॉलेज के कई विद्यार्थियों के नहीं पता कि उन्होंने विषय कौन-कौन से लिए हैं। कई बच्चे तो कंप्यूटर वाले भैया के भरोसे विषय चुन लेते हैं और परीक्षा भी दे देते हैं।
डॉ. प्रवीण तामोट
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भविष्य की अच्छी संभावनाएं हैं। छात्र ग्लोबल स्तर पर पहचान बना सकता है। जरूरी है कि विद्यार्थी को सही मार्ग दर्शन मिले। अभी तो विद्यार्थी मेजर-माइनर और ओपन इलेक्टिव में ही उलझे हैं।
डॉ. रोली शुक्ला
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत कई तरह के रोजगार परख कोर्स शुरू किए गए हैं। यह उनके स्किल डेवलपमेंट के लिए बहुत अच्छा है। लेकिन इन कोर्स को पढ़ाने के लिए कॉलेजों में टीचर नहीं हैं। छात्रों को ही नहीं पता कि उनका विषय कौन सा है।

डॉ. सवीता भार्गव
स्किल डेवलपमेंट में लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कई सारे विकल्प दिए गए हैं। इसके आधार पर शिक्षा व्यवस्था में बदलाव भी किए जा रहे हैं। कई छात्र पहले से अपडेट होते हैं, तो कुछ को समझ नहीं आ रहा है। इसके लिए स्कूलों में भी शिविर लगाकर विद्यार्थियों को जानकारी दी जा रही है।
डॉ. अणिमा खरे
बच्चों को हाईस्कूल में ही विषय चयन के संबंध में जानकारी देना जरूरी है। १२वीं के बच्चों के प्रवेश प्रक्रिया की जानकारी देने के लिए कॉलेज चलो अभियान भी चलाया जा रहा है, लेकिन यह साल भर चलना चाहिए। ताकि छात्रों का कॉन्सेप्ट क्लियर हो।
डॉ. अमरदीप सिंह
फिजिकल एजुकेशन की स्थिति काफी खराब है। प्रथम वर्ष में यदि हजार बच्चे प्रवेश लेते हैं, तो फाइनल तक पहुंचते-पहुंचते इनकी संख्या 400-500 ही रह जाती है। इसके लिए कॉलेजों न तो शिक्षक हैं और न व्यवस्थाएं। योगा के लिए भी शिक्षक नहीं हैं।
डॉ. चंद्रशेखर धाकड़
राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने में बहुत जल्दबाजी की गई। आज विद्यार्थियों को ढेर सारे ऑप्शन दे दिए। न छात्रों को कुछ समझ आ रहा और न शिक्षकों को। आधे से ज्यादा कॉलेज प्रभारी प्राचार्यों के भरोसे हैं। विषय खोलने से पहले शिक्षकों की व्यवस्था होना चाहिए।
डॉ. कैलाश त्यागी
यूजी फोर्थ ईयर को लेकर स्थिति अब भी स्पष्ट नहीं है। इसका सिलेबस भी अभी तैयार नहीं हुआ है। कौन-कौन से छात्र इसमें प्रवेश ले सकते है। कौन नहीं ले सकता। ७५ प्रतिशत से कम अंक वाले कहां जाएंगे यह भी तय नहीं।
डॉ. अरविंद देशमुख
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