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250 रुपये में इलाज, डॉक्टरों ने ऐसे लौटाई 13 मरीजों की आंखों की रोशनी

MP News: गर्भ में शिशुओं के जिस कवच को प्रसव के बाद अनुपयोगी समझा जाता था, उसी झिल्ली (एमनियोटिक मेम्ब्रेन) से डॉक्टरों ने 13 मरीजों की आंखों की रोशनी लौटा दी। कार्बाइड गन से घायल बच्चे-बड़ों की आंखों को एम्स भोपाल (AIIMS Bhopal) के डॉक्टरों ने महज 250 रुपए के मामूली खर्च से ही ठीक कर दिया।

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MP News एम्स भोपाल में 250 रुपए में ही डॉक्टरों ने कर दिया इलाज (फोटो सोर्स : AIIMS Bhopal Facebook)

MP News: गर्भ में शिशुओं के जिस कवच को प्रसव के बाद अनुपयोगी समझा जाता था, उसी झिल्ली (एमनियोटिक मेम्ब्रेन) से डॉक्टरों ने 13 मरीजों की आंखों की रोशनी लौटा दी। कार्बाइड गन से घायल बच्चे-बड़ों की आंखों को एम्स भोपाल (AIIMS Bhopal) के डॉक्टरों ने महज 250 रुपए के मामूली खर्च से ही ठीक कर दिया। 13 घायलों की 80 फीसदी रोशनी भी लौट आई। इनमें से 12 मरीजों को डिस्चार्ज भी कर दिया गया। खास यह है कि निजी अस्पताल में इसी इलाज के लिए मरीजों को 45 से 60 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते। एम्स के नेत्र विशेषज्ञों ने बताया, झिल्ली को गर्भनाल (प्लेसेंटा) भी कहा जाता है।

पहले शिशुओं के जन्म के बद इसे अनुपयोगी समझा जाता था। अब यह आंखों की पारदर्शिता बनाए रखने में काम कर रही है। यह जीवित पट्टी घाव भरने में भी मददगार है। प्रसव के बाद इस झिल्ली को सुरक्षित रखा जाता है।

फैक्ट फाइल

  • मप्र के सरकारी अस्पतालों में सिर्फ एम्स और जीएमसी में ऐसे इलाज की सुविधा।
  • गर्भनाल सुरक्षित रखकर मरीजों का कर रहे इलाज, रिजल्ट भी सकारात्मक

प्राकृतिक पट्टी जैसी काम करती है झिल्ली

जीएमसी की नेत्र विशेषज्ञ डॉ. अदिति दुबे ने बताया, एमनियोटिक झिल्ली गर्भनाल की सबसे अंदरूनी, बहुत पतली, पारदर्शी और लचीली परत होती है। इसमें स्वाभाविक रूप से विकास बढ़ाने वाले तत्व, सूजन कम करने वाले प्रोटीन और घाव भरने वाले घटक पाए जाते हैं। यह झिल्ली आंख पर प्राकृतिक पट्टी की तरह काम करती है।

ऐसे होता है एमनियोटिक मेम्ब्रेन से इलाज

आंखों में चोट, इन्फेक्शन या पटाखों से आंखों की ऊपरी सतह झुलसने पर दवा से इलाज होता है। घाव के ठीक न होने पर एमनियोटिक मेम्ब्रेन ग्राफ्टिंग की जाती है। सबसे पहले डिलेवरी के बाद नवजात को इससे अलग किया जाता है। फिर स्टरलाइज कर नॉर्मल स्लाइन से साफ करते हैं। फिर एंटीबायोटिक या सॉल्यूशन से साफ किया जाता है। इसके बाद आंखों के क्षतिग्रस्त हिस्से को साफ कर टांकों के जरिए इसकी ग्राफ्टिंग की जाती है। इससे घाव जल्द भरते हैं। एम्स भोपाल के सर्जन डॉ. समेंद्र खुरकुर ने बताया कि नवजात शिशुओं के जन्म के बाद उनके गर्भनाल को पहले फेंक दिया जाता था। अब यही आंखों की गंभीर समस्याओं में दवाई का काम कर रही है।