बीकानेर। प्रो. श्यामसुंदर ज्याणी पर्यावरणविद् और शिक्षाविद हैं। वे पारिवारिक वानिकी आंदोलन के संस्थापक हैं, जो पारिस्थितिक पुनर्स्थापन और मरुस्थलीकरण से निपटने के उद्देश्य से एक जमीनी स्तर की पहल है। वे वर्तमान में बीकानेर के राजकीय डूंगर कॉलेज में समाजशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और राजस्थान भर में बड़े पैमाने पर वनरोपण अभियानों में लाखों लोगों को संगठित करने के लिए जाने जाते हैं।
ज्याणी का जन्म राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के 12 टीके गांव में एक ग्रामीण कृषक परिवार में हुआ था। उनके प्रयासों को संयुक्त राष्ट्र ने लैंड फॉर लाइफ अवॉर्ड भूमि संरक्षण के सर्वोच्च सम्मान से नवाजा है। वे यूएनईपी और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एनपीयू नेटवर्क में स्टाफ चैंपियन हैं। संयुक्त राष्ट्र के कोप सम्मेलनों में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित हुए।
श्यामसुंदर को इस साल राष्ट्रपति भवन में स्वतंत्रता दिवस ऐट होम समारोह के लिए राष्ट्रपति की ओर से बुलाया गया है। जन पौधशालाओं का नेटवर्क हर साल 2 लाख पौधे निःशुल्क उपलब्ध कराता है। चौधरी चरण सिंह पारिवारिक वानिकी मिशन के तहत एक पेड़ मां के नाम और हरियालो राजस्थान पहल में बीकानेर संभाग में 5 लाख सहजन पौधों का रोपण अगले माह होने जा रहा है।
प्रो. श्यामसुंदर ज्याणी 2003 में डूंगर कॉलेज, बीकानेर से शुरू हुआ यह सफर आज एक सशक्त हरित आंदोलन में बदल चुका है। वे 20 लाख से अधिक परिवारों को पारिवारिक वानिकी से जोड़ चुके हैं। 43 लाख से ज्यादा पौधारोपण अब तक करवा चुके। कॉलेज, स्कूल और राजकीय परिसरों में 208 संस्थागत वनखंड स्थापित करने में योगदान दिया।
बीकानेर के डाबला तालाब क्षेत्र की 207 एकड़ बंजर भूमि को उन्होंने जसनाथी समुदाय के सहयोग से जैव विविधता युक्त पारिस्थितिकी तंत्र में बदल दिया। यहां अब दुर्लभ वन्यजीव लौट आए हैं। यह उनके होलिस्टिक हैबिटैट हीलिंग मॉडल की सफलता का प्रमाण है। इस परियोजना ने बंजर भूमि को एक समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र में बदल दिया। जिससे सामूहिक पर्यावरणीय प्रबंधन की प्रभावशीलता का प्रदर्शन हुआ
Published on:
10 Aug 2025 12:28 pm