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रफ्तार बढ़ी और दूरियां सिमटीं…भाप के इंजन से वंदे भारत तक का रेल सफर

इतिहास के जानकार बताते है कि वर्ष 1891 में जोधपुर-बीकानेर रेलवे लाइन खंड के रूप में मीटर गेज बीकानेर को प्राप्त हुई थी। इसी के साथ 134 साल पहले बीकानेर के लोगों ने रेल यात्रा का अनुभव लेना शुरू किया।

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भविष्य में ऐसा नजर आएगा बीकानेर का रेलवे स्टेशन।

भविष्य में ऐसा नजर आएगा बीकानेर का रेलवे स्टेशन।

यह 134 साल पहले वर्ष 1890 के आस-पास का समय था। देश छोटी-छोटी रियासतों में बंटा था। बीकानेर जैसे दुर्गम रेतीले इलाके में एक से दूसरी जगह आवागमन के लिए ऊंटों की सवारी का साधन था। तब देश में महानगरों में भाप के इंजन मीटरगेट रेल पटरी पर दौड़ने शुरू हो गए थे। इसी कालखंड में बीकानेर रियासत में ऐतिहासिक यात्रा का श्रीगणेश हुआ। तत्कालीन रियासत ने बीकानेर से जोधपुर के बीच रेल लाइन बिछाकर इस 250 किलोमीटर की दूरी को सिमटा कर रख दिया। कई दिनों में होने वाला दो रियासतों के बीच की यात्रा घंटों में सिमट गई। बीकानेर देश की उन गिनी-चुनी रियासतों में शुमार हुआ, जहां रेलगाड़ी का आगमन हुआ। तब से रफ्तार का यह सिलसिला आज तक जारी है। भाप के इंजन की जगह इलेक्ट्रोनिक इंजन के साथ ट्रेनें दौड़ने लगी है। अब वंदे भारत जैसी आधुनिक ट्रेन यहां से चल रही है।

बीकानेर परकोटे के बाहर आज जो ब्रॉडगेज की रेल पटरी दिखती है, उसी जगह पर मीटर गेट की लाइन बिछाई गई थी। पहली बार भाप के इंजन से ट्रेन बीकानेर से जोधपुर के बीच चली, तब लोग उत्सुकता से इसे देखने पहुंचे थे। हर नजर में उस समय ट्रेन की एक बार सवारी करने का सपना था। आज वह पीढ़ी नहीं रही लेकिन बाद की पीढ़ियों ने बुजुर्गों से किस्से जरूर सुने है। 80 वर्षीय केशव कुमार शर्मा बताते है कि उनके दादा ने कई बार रेलगाड़ी के आगमन के समय के किस्से साझा किए थे। उनके बचपन के दिनों तक भी एक से दूसरी जगह आवागमन का मुख्य साधन रेल ही हुआ करती थी।

इतिहास…1891 में रेल की शुरुआत

इतिहास के जानकार बताते है कि वर्ष 1891 में जोधपुर-बीकानेर रेलवे लाइन खंड के रूप में मीटर गेज बीकानेर को प्राप्त हुई थी। इसी के साथ 134 साल पहले बीकानेर के लोगों ने रेल यात्रा का अनुभव लेना शुरू किया। अब रेलवे ने विरासतों को सहेजने के उद्देश्य से शताब्दी समारोह मनाने का निर्णय किया है। इसके तहत उत्तर पश्चिम रेलवे के बीकानेर स्टेशन पर स्टेशन महोत्सव का आयोजन कर रहा है।

1924 में स्वतंत्र रेल प्रशासन की स्थापना

साहित्यकार राजेन्द्र जोशी के अनुसार आजादी से पहले बीकानेर राज्य में रेलों का विकास बड़ौदा को छोड़कर अन्य राज्यों की तुलना में अधिक रहा। रेल पटरी की लंबाई प्रति हजार प्रति वर्ग किलोमीटर 56 किमी थी। जो जोधपुर, मैसूर, ग्वालियर और हैदराबाद से भी अधिक थी। बीकानेर में 1 नवंबर 1924 को स्वतंत्र रेल प्रशासन की स्थापना हो गई थी। इसके साथ ही रेल सुविधाएं, रनिंग शेड की स्थापना की गई। वर्ष 1891 में जोधपुर -बीकानेर मीटर गेज रेलवे लाइन मिली थी। 1924 में जोधपुर रेलवे और बीकानेर रेलवे दो अलग-अलग प्रणालियों में विभाजित हो गया।

नहर के साथ-साथ रेल का भी विस्तार
सीनियर फैलो डॉ. रीतेश व्यास ने बताया कि ‘बीकानेर नरेश का संक्षिप्त परिचय’ पुस्तक के अनुसार 1924 के पहले बीकानेर तथा जोधपुर रेलवे का प्रबंध एक साथ रहा।

बीकानेर रेलवे को जोधपुर से अलग करने के लिए तत्कालीन महाराजा ने जोधपुर नरेश को पत्र लिखा। सभी विषयों पर चर्चा के बाद दोनों राज्यों ने रेल प्रबंधन अलग कर लिया। उस दौर में बीकानेर जंक्शन बहुत बड़ा था। यहां से एक लाइन उत्तर में बठिंडा 260 मील दूर तक बिछी हुई थी। दूसरी लाइन हिसार तक जाती थी। जो बीकानेर को दिल्ली से जोड़ती थी। तीसरी लाइन दक्षिण में जोधपुर तक थी। बीकानेर रेलवे स्टेशन का निर्माण वर्ष 1891 में शहर के एक प्रसिद्ध व्यापारी ने 3 लाख 46 हजार रुपए का योगदान देकर पूरा कराया था। बीकानेर और बठिंडा के बीच पहली रेल सेवा जोधपुर-बीकानेर रेलवे के हिस्से के रूप में स्थापित की गई थी। जिसे 1901-02 में बठिंडा तक विस्तार दिया गया था।

अब हाइटेक होगा रेलवे स्टेशन
रेलवे की ओर से बीकानेर स्टेशन को हाईटेक बनाने का काम भी शुरू कर दिया गया। कुछ समय से इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है। रेलवे की ओर से यहां यात्री सुविधाओं को बढ़ाने के लिए बीकानेर स्टेशन पर 471 करोड़ रुपए की लागत सेअमृत भारत स्टेशन योजना के तहत स्टेशन का निर्माण कराया जा रहा है। इसमें आधुनिकता के साथ स्थानीय कला एवं संस्कृति का समावेश रखा जाएगा।