
भारतीय बैंकर सेमलानी (फोटो सोशल मीडिया)
Indian Banker Semlani left JPMorgan: यह कहानी है एक भारतीय युवा बैंकिंग प्रोफेशनल की, जो पहले जेपी मॉर्गन में काम करते थे, लेकिन आजकल सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी मोटी सैलरी वाली नौकरी इसलिए छोड़ दी क्योंकि उन्हें वह काम 'रोबोटिक' और बेमतलब लग रहा था। उन्होंने बताया कि उन्होंने एक ऐसी नौकरी के लिए 70% तक कम सैलरी स्वीकार कर ली, जो उनको ज्यादा मायने की लगती है और उनकी फ्लेक्सिबल लाइफस्टाइल से मेल खाती है।
उनका कहना था कि जेपी मॉर्गन जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में काम भले ही सम्मानजनक और अच्छी कमाई वाला था, लेकिन लंबे घंटे, लगातार प्रेशर और पूरी तरह आउटपुट-ड्रिवन माहौल ने उन्हें बुरी तरह से थका डाला था। काम जैसे एक डेली रूटीन बनकर रह गया था, जिसमें न तो सीखने का समय था और न ही अपनी रुचियों को तलाशने की आजादी थी। उन्होंने कहा कि नौकरी में स्थिरता और मोटी सैलरी भी उस मानसिक दबाव की भरपाई नहीं कर पा रही थी, जो उन्हें हर दिन “मशीन” जैसा महसूस करा रही थी।
कई महीनों के सोच-विचार के बाद उन्होंने फैसला किया कि वो ये नौकरी अब नहीं करेंगे। उन्होंने इस्तीफा दे दिया और एक स्टार्टअप के साथ जुड़ गए, जहां उन्हें पैसे तो भले ही कम मिले लेकिन काम करने की आजादी और नए-नए आइडिया पर काम करने का मौका मिला। उनका कहना है कि यह बदलाव तनाव से भागने के लिए नहीं था, बल्कि अपने करियर की दिशा पर फिर से नियंत्रण पाने के लिए था।
उनकी ये कहानी कई युवा प्रोफेशनल्स की ही कहानी है, जो कॉर्पोरेट दुनिया की अपनी परेशानियों से जूझ रहे हैं। वो बताते हैं कि नौकरी छोड़ने का विचार पहली बार उन्हें तब आया जब उन्होंने बैंक के जरिए एक 10-दिन का मेडिटेशन रिट्रीट अटेंड किया था। उन्होंने कहा, "मैंने 2015 में अमेरिकी वीज़ा पर जेपी मॉर्गन में इंटर्न के तौर पर काम करना शुरू किया था। बाद में, मैं भारत वापस आ गया और एसेट मैनेजमेंट विभाग में एसोसिएट बन गया। मेरा ध्यान कॉर्पोरेट जगत में तरक्की की सीढ़ियां चढ़ने पर था।
26 साल की उम्र तक, उन्हें एहसास हो गया था कि उनकी 9 टू 5 वाली नौकरी अब संतोषजनक नहीं रही। जहां उनके दोस्त 30 साल की उम्र तक वाइस प्रेसिडेंट पद तक पहुंचने का लक्ष्य बना रहे थे, वहीं उनका मोहभंग लगातार बढ़ता जा रहा था। उन्होंने बताया कि इस उम्र में ही हर दिन एक जैसा लगता था। मैं सुबह 9 बजे तक ऑफिस पहुंच जाता, उन्हीं मीटिंग्स में जाता, वही काम करता और शाम 7 बजे निकल जाता। इस दौरान मैंने दोस्त और रिश्ते खो दिए। वो बताते हैं कि उन्होंने एक ध्यान साधना शिविर में दाखिला ले लिया। उन्होंने बताया कि 10 दिनों के इस मौन साधना शिविर ने उन्हें सबकुछ साफ-साफ दिखने लगा और लौटकर उन्होंने इस्तीफा दे दिया।
Updated on:
24 Nov 2025 07:31 pm
Published on:
24 Nov 2025 07:26 pm
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