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IIT में फेल, इंटर्नशिप के लिए भी हुए रिजेक्ट… फिर कैसे Lenskart फाउंडर पीयूष बंसल ने खड़ा किया अरबों का साम्राज्य?

Piyush Bansal Success Story: पीयूष बंसल ने अपने कॉलेज की कंप्यूटर लैब में एक सीनियर को कोड लिखते देखा था। वे इतने प्रभावित हुए कि सीनियर से कोडिंग सीखने लगे और कुछ ही दिनों में वे परफेक्ट हो गए।

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Piyush Bansal Success Story

पीयूष बंसल ने माइक्रोसॉफ्ट के सिएटल ऑफिस में भी नौकरी की है।

पीयूष बंसल को आज कौन नहीं जानता। एक सक्सेसफुल बिजनेसमैन, लेंसकार्ट के मालिक और शार्क टैंक इंडिया के 'शार्क'- पीयूष आज उस मुकाम पर हैं, जहां पहुंचना हर किसी के बस की बात नहीं। हालांकि, यहां तक पहुंचने का रास्ता उनके लिए भी आसान नहीं था। पीयूष को कई बार रिजेक्शन का सामना करना पड़ा, लेकिन वह मायूस नहीं हुए। प्रयास करते रहे और अपने जोश-जुनून को खत्म होने नहीं दिया।

पढ़ाई और नौकरी दोनों साथ-साथ की

पीयूष आईआईटी, दिल्ली में पढ़ाई करना चाहते थे। उन्होंने जी-जान लगाकर तैयारी की, मगर सीट हासिल नहीं कर पाए। यह पीयूष बंसल के लिए पहला झटका था। हालांकि, उन्होंने इस असफलता को खुद पर हावी नहीं होने दिया। वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए कनाडा चले गए। घर से दूर एक नए माहौल में खुद को ढालने में पीयूष को परेशानी जरूर हुई, लेकिन वे हर चुनौती का डटकर सामना करने का मन बना चुके थे। इंजीनियरिंग की कठिन पढ़ाई के साथ-साथ उन्होंने रिसेप्शनिस्ट की नौकरी भी की, ताकि कुछ पैसा जुटा सकें।

लाइफ का टर्निंग पॉइंट

पीयूष बंसल की जिंदगी में टर्निंग पॉइंट उस वक्त आया, जब उन्होंने कॉलेज की कंप्यूटर लैब में एक सीनियर को सॉफ्टवेयर कोड लिखते हुए देखा। पीयूष कोडिंग से बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने सीनियर से उन्हें कोडिंग सिखाने का आग्रह किया। इस पर सीनियर ने उन्हें विजुअल बेसिक प्लस पर एक मोटी सी किताब थमा दी। कॉलेज की पढ़ाई और रिसेप्शनिस्ट की नौकरी के बाद जो समय बचता, पीयूष उसमें किताब पढ़ते।

जुनून में बदल गई जिज्ञासा

कोडिंग के प्रति पीयूष की जिज्ञासा जल्द ही जुनून में बदल गई। वह रात-रात भर बैठकर किताब पढ़ने लगे और खुद कोड लिखना शुरू कर दिया। जब पीयूष ने पहला कोड लिखकर सीनियर को दिखाया, तो वह इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने पीयूष को कोडिंग जॉब का ऑफर दे डाला। पीयूष ने रिसेप्शनिस्ट की नौकरी छोड़कर उस ऑफर को एक्सेप्ट कर लिया और एक नए सफर पर निकल पड़े। शुरुआत में यह नौकरी पार्ट-टाइम थी, लेकिन बाद में फुल टाइम हो गई।

असफल हुए, लेकिन करते रहे प्रयास

इसके बाद पीयूष ने माइक्रोसॉफ्ट में इंटर्नशिप के लिए आवेदन किया, लेकिन रिजेक्ट हो गए। हालांकि, उन्होंने इस असफलता को बेहतर तैयारी के अवसर के तौर पर लिया। अगले साल उन्होंने एक बार फिर प्रयास किया और इस बार उनकी मेहनत रंग लाई। वह माइक्रोसॉफ्ट का हिस्सा बने, तीन महीने की यह इंटर्नशिप उनके लिए किसी सपने के पूरा होने जैसी थी। माइक्रोसॉफ्ट में उन्होंने कई प्रतिभाशाली लोगों के साथ काम किया। इतना ही नहीं, वह उन चुनिंदा लोगों में भी शुमार रहे, जिन्हें माइक्रोसॉफ्ट के फाउन्डर बिल गेट्स के घर जाने का मौका मिला।

काम आई माइक्रोसॉफ्ट की सीख

माइक्रोसॉफ्ट के साथ पीयूष बंसल का यह तीन महीने का रिश्ता बाद में और भी ज्यादा मजबूत हो गया। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें माइक्रोसॉफ्ट के सिएटल ऑफिस में नौकरी मिल गई। यहां पीयूष ने सीखा कि समस्याओं को केवल व्यावसायिक नजरिए से नहीं, बल्कि ग्राहक के नजरिए से देखा जाना चाहिए। यही सबक एक सफल बिजनेसमैन बनने में उनके बहुत काम आया। माइक्रोसॉफ्ट में काम करने के दौरान पीयूष ने यह अनुभव किया कि उनके आसपास के कई लोग उनसे ज्यादा समझदार हैं और इस अनुभव ने उन्हें लगातार सुधार करने के लिए प्रेरित किया।

अचानक छोड़ दी नौकरी

पीयूष माइक्रोसॉफ्ट में काम करके खुश थे, लेकिन वह कुछ अपना करना चाहते थे - कुछ ऐसा जो लोगों की जिंदगी को बदल दे। इसी सोच के साथ वह 2008 में भारत लौट आए। हालांकि, एक प्रतिष्ठित कंपनी में जमी-जमाई नौकरी छोड़ने को लेकर उनके पैरेंट्स खुश नहीं थे। पीयूष के पास कुछ कर गुजरने का जुनून तो था, लेकिन कोई ठोस योजना नहीं थी। शुरुआत में उन्होंने अपने कार गैराज को एक ऑफिस में तब्दील दिया और कॉलेज स्टूडेंट्स की आवास संबंधी समस्याओं को हल करने लगे। पीयूष को माइक्रोसॉफ्ट के सिद्धांत: यदि आप ग्राहक पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तो व्यवसाय अपने आप विकसित हो जाएगा, पर यकीन था और वह जानते थे कि इसी राह पर चलकर मंजिल मिलेगी।

क्रांतिकारी बदलाव की नींव

कुछ वक्त बाद पीयूष की मुलाकात बिट्स मेसरा के एक ग्रेजुएट अमित चौधरी से हुई, जो उनकी ही जैसी सोच रखते थे। एक जैसी सोच वाली दो प्रतिभाओं के इस मिलन ने एक क्रांतिकारी बदलाव की नींव रखी। पीयूष गोयल ने महसूस किया कि भारत की लगभग आधी आबादी को चश्मे की जरूरत है, लेकिन बहुत कम लोग ही उसका इस्तेमाल करते हैं। पीयूष को यह समझते देर नहीं लगी की इस बड़ी समस्या का समाधान तलाशकर वह अपनी मंजिल तक पहुंच सकते हैं। इस दौरान, पीयूष को सुमीत कपाही का भी साथ मिला, जिन्होंने इस मिशन में शामिल होने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी।

पीयूष की सफलता का राज

इस तरह, 2011 में लेंसकार्ट का जन्म हुआ। पीयूष बंसल और उनके साथियों का कान्सेप्ट इतना अनोखा था कि निवेशक खुद ही उनसे संपर्क करने लगे। आज लेंसकार्ट चश्मों की दुनिया में न केवल एक बड़ा नाम है, बल्कि एक विश्वास भी है। पीयूष मानते हैं कि उनकी सबसे बड़ी ताकत उनकी मानसिकता है। वह इसलिए सफल हो पाए, क्योंकि वह असफलता से नहीं डरते और निरंतर प्रयास में यकीन रखते हैं। पीयूष कहते हैं, मेरी सबसे बड़ी सीख यही रही कि हमेशा समस्या पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह जानना महत्वपूर्ण है कि क्या वाकई समस्या है और क्या उसे बड़े पैमाने पर हल किया जा सकता है? यदि इसका जवाब हां, तो बिजनेस खुद-ब-खुद विकसित हो जाएगा।