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जिला अस्पताल में 7 करोड़ की लागत से निर्मित कोविड आईसीयू में लाखों के उपकरण खस्ताहाल, सोलर और सीवेज प्लांट भी जर्जर

लाखों रुपए मूल्य के उपकरण कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं और अस्पताल प्रबंधन की उदासीनता के कारण वार्ड के सुचारू संचालन का सपना अधूरा रह गया है।

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covid-19 ward

कोविड आईसीयू

कोरोना महामारी के दौरान जिला अस्पताल में सात करोड़ की लागत से निर्मित कोविड आईसीयू वार्ड आज अनुपयोगी स्थिति में पहुंच गया है। लाखों रुपए मूल्य के उपकरण कबाड़ में तब्दील हो चुके हैं और अस्पताल प्रबंधन की उदासीनता के कारण वार्ड के सुचारू संचालन का सपना अधूरा रह गया है।

मंत्री ने दिए थे वार्ड को चालू करने के निर्देश

कोरोना काल में कोविड आईसीयू की स्थापना के समय 20 पलंग के लिए वार्ड तैयार किया गया था। इसमें केंद्रीय मंत्री वीरेंद्र कुमार ने निरीक्षण के दौरान इसे सुचारू रूप से चालू करने के निर्देश सिविल सर्जन को दिए थे, लेकिन देखरेख के अभाव में वार्ड की स्थिति बिगड़ती चली गई। वार्ड में एएचयू (वार्ड को ठंडा करने वाली मशीन) करीब 70 लाख की लागत से स्थापित की गई थी, लेकिन पाइप सहित अन्य आवश्यक सामग्री कहां है, इसका स्पष्ट जवाब किसी के पास नहीं है।

ये हुए खराब

मशीन की मोटर, ऑटोमेटिक पैनल और आउटडोर यूनिट पर घास उग आई है। मेनिफोल्ड 7 करोड़ की लागत से बनाए गए कोविड आईसीयू की हालत खस्ता है। सेंट्रल ऑक्सीजन मशीन का भी अता-पता नहीं है। इलेक्ट्रिक पैनल, इलेक्ट्रिक बोर्ड और एयर कंप्रेशर मोटर सहित सभी मशीनें अपने स्थान से गायब हैं। करीब डेढ़ लाख रुपए की लागत से स्थापित यूपीएस बैकअप सिस्टम, जिसमें 20 बैटरियां शामिल थीं, अब अनुपयोगी हो गई है। वार्ड में लगे पूरे सिस्टम की मोटर गायब हो चुकी है।

सीवेज प्लांट में नहीं हुआ सुधार

अस्पताल परिसर में सीवेज प्लांट भी अपनी हालत खस्ता होने के कारण कबाड़ में तब्दील हो चुका है। वर्ष 2018 में जहरीले पानी का उपचार करने के लिए एक से सवा करोड़ रुपए की लागत से प्लांट स्थापित किया गया था, लेकिन तकनीकी खामियों और देखरेख की कमी के कारण यह काम नहीं कर रहा। प्लांट की नींव इतनी नीचे बनी कि बारिश का पानी तीन माह तक जमा रहता है। वर्षों से बंद पड़े सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को प्रबंधन की लापरवाही ने कबाडख़ाना बना दिया है।

सोलर प्लांट हुआ बेकार

सोलर प्लांट की स्थिति भी आश्चर्यजनक है। अस्पताल में पुराने नैदानिक भवन में 20 किलोवाट का सोलर प्लांट 45 लाख रुपए की लागत से स्थापित किया गया था। यह प्लांट पुराने भवन में ट्रामा, मेल, फीमेल, महिला सर्जिकल और बच्चों के वार्ड को बिजली सप्लाई करता था। इससे बिजली जाने पर पंखे और ट्यूब लाइटें चालू रहती थीं। नए पांच मंजिला भवन बनने के बाद सोलर प्लांट को नए भवन में नहीं शिफ्ट किया गया और न ही नए भवन में इसकी लाइन जोड़ी गई। यदि ऐसा किया गया होता तो 20 किलोवाट की लोड क्षमता बचाई जा सकती थी और बिजली बिल में भी कमी आती।

सूची से मिलान होगा

डॉ. आरपी गुप्ता सीएमएचओ छतरपुर ने बताया कि जिला अस्पताल में कोविड वार्ड के सभी उपकरण सुरक्षित हैं। उपकरण गायब होने की कोई पुष्ट जानकारी नहीं है, लेकिन यदि ऐसा पाया जाता है तो सूची से मिलान कराया जाएगा। सोलर प्लांट और सीवेज प्लांट की वर्तमान स्थिति की भी जानकारी ली जाएगी।