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दीनबन्धु महराज भगवान कृष्ण का यह नाम क्यू पड़ा, जानिए

ब्राह्मण धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने तक के लिए भी तैयार: रवि शास्त्री

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दमोह

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Samved Jain

Nov 11, 2025

3 Krishna Mantra, कृष्ण, कृष्ण मंत्र, ॐ श्री कृष्णाय शरणं मम, Lord Krishna Mantra In Hindi

Krishna mantra for success|फोटो सोर्स – Freepik

दमोह. स्थानीय जबलपुर नाका स्थित राजा पटना बैंक के पास चल रही श्रीमद् भागवत कथा के सातवें दिवस में कथा व्यास आचार्य पंडित रवि शास्त्री ने सुदामा चरित्र पर कथा सुनाते हुए कहा कि वह वाणी धन्य है, जो भगवान का गुण वर्णन करती है। वही हाथ सच्चा हाथ है जो भगवान की सेवा करता है। वही सच्चा मन है जो जड़ चेतन सभी मे परमात्मा का दर्शन करता है। वही कान सच्चे है जो भगवान की पवित्र कथाओं को श्रवण करते है। राजा परीक्षित शुकदेव महराज से कहते है, गुरुदेव वैसे तो भगवान के अनन्त नाम है, मुझे इनका एक नाम बहुत पसन्द आया वह है। दीनबन्धु महराज भगवान का यह नाम क्यू पड़ा? क्या भगवान कृष्ण ने किसी दीन हीन को भी अपना बन्धु बनाया था। क्या श्री शुकदेव महाराज को सुदामा याद आ गए। राजा परीक्षित को कथा श्रवण कराते समय शुकदेव महराज दो बार समाधिस्थ हो गए थे। एक ब्रह्मा मोह लीला में, दूसरी बार सुदामा का प्रसंग आने पर बचपन के दो मित्र गुरुकुल से विदा होने के बाद अलग-अलग राह पर चल पड़े। एक मथुरा और उसके बाद द्वारिकाधीश बन गए। दूसरे घर गृहस्थी बसा करके भगवान के परम भक्त बन गए। परम भागवत सुदामा का पावन परिचय देते समय शुकदेव महराज कहते है कि राजन भगवान कृष्ण के परम प्रिय अभिन्न हृदय मित्र सुदामा महराज है। शुकदेव ने सुदामा के लिए इतने विशेषता के विशेषण गिना दिए कि मूल परिचय देना ही भूल गए। न नाम बताया न काम बताया न धाम। केवल उनकी विशेषता बताई। कैसे है सुदामा ये ब्रम्ह बेत्ता ब्राम्हण है, परम श्रेष्ठ ब्रम्हज्ञानी है। इन्द्रियों के विषयों से एकदम विरक्त रहने वाले ब्राम्हण है, जिसका चित्त कभी अशान्त नहीं होता। वह ऐसे प्रशान्त आत्मा है इतने पर भी सन्तुष्टि नहीं हुई तो जिसकी इन्द्रिया सर्वथा उसके वशीभूत हो इतना सुन्दर परिचय दिया है। भागवत का सूत्र है जो असन्तुष्ट रहता है वही दरिद्र है। सुदामा तो प्रत्येक परिस्थित में संतुष्ट है। भोजन प्रसादी मिला तब भी नहीं मिला तब भी। कुछ है तब भी घर में फांके है तब भी पर जो गृहलक्ष्मी होती है उसे आपकी भी चिन्ता होती है। बच्चों की भी चिन्ता होती है सुशीला को घर की चिन्ता लगी रहती थी। घर की आवश्यकताओं से चिंतित रहती थी। दोनों का जीवन किसी तरह से चल रहा था। सुदामा जी का जीवन यापन का एकमात्र आसरा था, खेतों में कटाई के बाद गिरे हुए दानों को बीनकर गुजारा करना। सुदामा ने कभी भिक्षा नहीं मांगी ब्राम्हण दान लेता है पर भिक्षा नही मांगता। भिक्षा मंँगने वाले के अन्दर ब्राम्हणत्व नहीं रह जाता।