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Nithari Case:सुरेंद्र कोली के परिवार ने काटी कलंक की सजा, सब कुछ हो गया तहस-नहस

Nithari Case:सुप्रीम कोर्ट ने निठारी कांड के आरोपी सुरेंद्र कोली को बरी कर दिया है। लेकिन मां और पत्नी गांव वालों के सामने उसकी बेगुनाही साबित नहीं कर पाए। निठारी कांड से उसके परिवार पर ऐसा कलंक लगा कि पत्नी और बच्चों को गांव जबकि मां को ये दुनिया ही त्यागनी पड़ी। उसका घर अब खंडहर में तब्दील हो चुका है।

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The family of Nithari case accused Surendra Koli has been shattered and his house has become a ruin

सुरेंद्र कोली का उत्तराखंड स्थित घर खंडहर में तब्दील हो गया है

Nithari Case:निठारी कांड ने पूरे देश को झंकझोर कर रख दिया था। साल 2006 में हुए उस कांड ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले को भी शर्मशार कर दिया था। दरअसल, निठारी कांड में जिस सुरेंद्र कोली का नाम सामने आया था वह मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के स्याल्दे ब्लॉक में मंगरूखाल गांव का रहने वाला है। निठारी कांड के बाद मंगरूखाल गांव पूरे देश में चर्चाओं में आ गया था। माता कुंती देवी और पिता शाकरू राम के चार लड़के हैं। इनमें सुरेंद्र कोली सबसे बड़ा है। सुरेंद्र ने सातवीं तक की पढ़ाई की और काम के लिए दिल्ली चला गया था। उसके बाद वह निठारी गांव के पास सेक्टर -31, नोएडा में व्यवसायी मोनिंदर सिंह पंढेर के घर पर काम करने लगा था। उसी दौरान दिल दहलाने वाला निठारी कांड देश के सामने आया। उस कांड का कलंक सुरेंद्र के परिवार को भुगतना पड़ा था। अब सुप्रीम कोर्ट ने सुरेंद्र को बरी करने के आदेश दिए हैं। लेकिन सुरेंद्र का परिवार पूरी तरह बिखर चुका है। मां दुनिया छोड़ चुकी है। पत्नी बच्चों को लेकर किसी दूसरे राज्य में बस गई है। निठारी कांड के आरोपी रहे सुरेंद्र कोली की पत्नी का संघर्ष भी कम नहीं था। दो बच्चों को साथ लेकर उसने उनका भविष्य आगे बढ़ाने की ठानी। गांव में जिल्लत भरी जिंदगी से बाहर निकली और करीब 10 साल से पत्नी दोनों बच्चों के साथ हरियाणा में रह रही है। इस दौरान न तो वह न कभी पति मिलने गई और न ही वापस गांव लौटी। अब पत्नी और दो बच्चों का क्या रुख होगा। इस पर किसी को कोई जानकारी नहीं है। उसका घर खंडहर में तब्दील हो चुका है। आज उसकी रिहाई की खबर पर खुशी मनाने वाला भी कोई नहीं है।

परिवार को सहनी पड़ी दुत्कारें

निठारी कांड के बाद सुरेंद्र के परिवार को गांव वालों की दुत्कारें सहनी पड़ी। सुरेंद्र जब जेल गया तब उसकी एक बेटी थी और बेटा पत्नी के गर्भ में था। इसके बाद से परिवार के मुसीबत के दिन शुरू हो गए। पूरे घटनाक्रम से अनजान सुरेंद्र की मां, पत्नी और बच्चों को लोग दुत्कारने लगे। यहां तक कि बच्चों को स्कूल में दाखिला तक नहीं मिला। करीब आठ साल तक गांव में ही जिल्लत भरी जिंदगी जीते रहे। साल 2014 में एकाएक खबर मिली कि सुरेंद्र को फांसी की सजा सुनाई गई है। खबर सुन पत्नी बच्चों और सास को लेकर दिल्ली चली गई। इसके बाद वह नहीं लौटी। गांव लौटी मां ने बेटे के इंतजार में तीन साल पहले दम तोड़ दिया था। भाइयों ने भी गांव से पूरी तरह से नाता तोड़ लिया। अब सुरेंद्र का घर भी खंडहर में तब्दील हो चुका है। गांव में सुरेंद्र की रिहारी के खूब चर्चे हैं,  लेकिन खुशी मनाने वाला कोई नहीं है।

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डेथ वारंट पर भी हो चुके थे दस्तखत

सुरेंद्र कोली के लिए पूर्व जिला पंचायत सदस्य नारायण सिंह रावत ने कानूनी लड़ाई में मदद की। रावत बताते हैं कि साल 2014 में फांसी की सजा सुनाए जाने के बाद सुरेंद्र का डेथ वारंट साइन हो गया था। इस बीच उन्होंने एडवोकेट रविंद्र सिंह गड़िया और इंद्रा जय सिंह से बात कर रात में कोर्ट खुलवाई। तर्क रखा कि सुरेंद्र 14 मामलों में आरोपी है। एक मामले में अगर उसे फांसी की सजा हो गई तो अन्य 13 मामलों में कैसे इंसाफ मिलेगा। इस पर कोर्ट ने फिर से सुनवाई के आदेश जारी किए। नारायण सिंह रावत ने बताया कि 2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुरेंद्र को दोषी मानते हुए फांसी की सजा सुना दी थी। इस पर मां कुंती देवी के अलावा पत्नी शांति अपनी 13 साल की लड़की और आठ साल के लड़के को लेकर दिल्ली पहुंचे। उन्होंने सभी को सुरेंद्र से मिलवाया। इसके बाद मां गांव लौट आई तो पत्नी अपनी पहचान छुपाकर वहीं नौकरी करने लगी और बच्चों का दाखिला स्कूल में कराया।