
धौलपुर.जयपुर में गत दिनों स्कूली बाल वाहनियों में सुरक्षा मानकों को जांचने जज सहित आला अधिकारी सडक़ों पर उतर आए और वाहनों पर कार्रवाई की। लेकिन धौलपुर जिले में जिम्मेदार आंखें मंंूदे हुए हैं। जहां कंडम वाहनों से बच्चों को ढोया जा रहा है। ऑटो हो या वेन इनमें बच्चों को जानवरों की तरह ढूंस-ढूंस कर भरा जा रहा है और जिम्मेदार सब देखकर भी खामोश हैं। इनमें कई वाहन तो ऐसे हैं कंडम होने के साथ-साथ इन पर नंबर प्लेट तक अंकित नहीं होती।
सुप्रीम कोर्ट और राज्य सरकार के सख्त आदेशों के बाद भी निजी स्कूल संचालक बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ करने से बाज नहीं आ रहे। स्कूल संचालक अभी भी ऐसे बाल वाहनों का प्रयोग कर रहे हैं जो बिल्कुल कंडम हालत में हैं। इसके अलावा अनुभवी ड्राइव, परमिट, फिटनेस, बीमा, लाइसेंस किसी भी चीज का पालन नहीं किया जा रहा। कुछ स्कूलों वाहनों को छोड़ दें तो इन वाहनों में फस्र्ट एड बॉक्स, फायर एक्सटिंग्विशर और इमरजेंसी गेट तक नहीं हैं। ऐसी स्थिति में इन वाहनों से भविष्य संवारने जा रहे बच्चे कब किसी दुर्घटना का शिकार हो जाएं यह कहा नहीं जा सकता। निजी विद्यालय में छात्रों को आने और ले जाने के लिए कुछ खुद के वाहन रखे गए हैं और कुछ वाहन महीने के हिसाब से लगाएं गए हैं जिनमें अधिकांश वाहनों को परिवहन विभाग कंडम घोषित कर चुका है।
पत्रिका की आंखों देखी:ढूंस-ढूंस कर भरे बच्चे
धौलपुर शहर सहित जिले भर में सैकड़ों निजी विद्यालयों का संचालन किया जा रहा है। जो बच्चों के भविष्य की बड़ी-बड़ी बातें जरूर करते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी की चिंता शायद ही उनको हो। बुधवार को पत्रिका की टीम ने निजी स्कूलों के वाहनों में बच्चों के लाने और ले जाने की स्थिति को देखा तो स्थिति गंभीर निकली। कई ऐसे वाहनों में बच्चों को ढोया जा रहा था जो कि कंडम स्थिति में था, इन वाहनों से बच्चों को लाना और ले जाना तो दूर किसी भी प्रकार का परिवहन तक नहीं किया जा सकता। इसके बाल वाहनियों और ऑटों में संख्या से अधिक बच्चों को ढूंस-ढूंस कर ले जाया जा रहा था। देखा जाए तो एक वाहन में सात बच्चों को बैठारने की अनुमति होती है, लेकिन ऑटो और टमटम में 15 से 20 बच्चों को जानवरों की तरह भरकर ले जाया जा रहा था। जो कि इन नौनिहालों की जिंदगी के साथ सरासर नाइंसाफी है।
किसी भी गाइडलाइन का पालन नहीं
निजी स्कूलों के बाल वाहनियों के लोकर गाइड लाइन जारी हैं। जिसका पालन हर हालत में स्कूलों को करना होता है। इसके तहत वाहनों में फस्र्ट एड बॉक्स, फायर एक्सटिंग्विशर और इमरजेंसी गेट के साथ वाहनों में जीपीएस सिस्टम के अलावा सीसीटीवी होना भी आवश्यक है। परंतु निजी स्कूलों में अभी भी छोटे वैन व आटो रिक्शा प्रयोग में लाए जा रहे हंै। जिनमें जीपीएस व सीसीटीवी कैमरा तो दूर इन वाहनों की फिटनेस भी अच्छी नहीं है, लेकिन स्कूल संचालकों की लापरवाही इन मानकों को पूरा नहीं कर पा रही है।
जयपुर में कार्रवाई तो धौलपुर में क्यों नहीं?
सोमवार की अल सुबह जयपुर में जज सहित आला अधिकारी बच्चों की सुरक्षा को लेकर सडक़ों पर उतर आए और सुबह-सुबह बाल वाहनियों को एक-एक कर चेक किया गया। यह कार्रवाई राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के निर्देशन में की गई। कार्रवाई के दौरान कई वाहन ऐसे मिले जो कि कंडम हालत में थे, तो कई वाहनों में क्षमता से अधिक बच्चों को ढोया जा रहा था। कहने का तात्पर्य यह है कि यह कार्रवाई राज्य की राजधानी में हो सकती है तो धौलपुर जिले में क्यों नहीं, मगर यहां जिम्मेदार सब देखकर भी अनजान बने हुए हैं और मासूम बच्चे रोजाना अपनी जान को हथेली पर रखकर सफर करने को मजबूर हैं।
बाल वाहिनियों के लिएसुरक्षा उपाय:
वाहनों में सीसीटीवी कैमरे, प्राथमिक उपचार किट और अग्नि शमन यंत्र लगाना अनिवार्य है।
नियमित जांच: प्रशासन को नियमित रूप से बाल वाहिनियों की जांच करनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे नियमों का पालन कर रही है।
परमिट और फिटनेस: बाल वाहिनी परमिट वाले वाहनों का ही उपयोग किया जाना चाहिए और अनफिट और पुराने वाहनों को बंद किया जाना चाहिए।
ड्राइवर/सहयोगी: बाल वाहिनी चालक और सहयोगी को निर्धारित वर्दी पहननी होगी।
Published on:
04 Dec 2025 06:44 pm
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