ग्वालियर. नामांतरण में होने वाले भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए सरकार ने साइबर तहसील की व्यवस्था शुरू की है। इसके तहत रजिस्ट्री होने पर स्वत: ही नामांतरण की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी और 15 दिन में नामांतरण के दस्तावेज पक्षकार के पास पहुंच जाएंगे। लेकिन साइबर तहसील के तहत प्रकरण दर्ज होने के बाद भी दस्तावेज की मूल कॉपी मांगी जा रही है। यदि सात दिन में पक्षकार दस्तावेज पेश नहीं करता है, तो नामांतरण का आवेदन निरस्त हो जाएगा। साइबर तहसील के तहत सरकार की जो मंशा है, उसको पलीता लग रहा है। हरीश सेन ने मस्तूरा में जमीन खरीदी थी। पूरा खेत बिका था। पूरा सर्वे नंबर का विक्रय होने की वजह से नामांतरण साइबर तहसील पर पहुंच गया था। इनके नामांतरण में कोई आपत्ति नहीं थी, फिर भी आवेदन ऑफलाइन पहुंच गया। आरसीएमएस पर इसे दर्ज किया गया। 2 अगस्त को नामांतरण निरस्त कर दिया। लेकिन सुनवाई से पहले पक्षकार को सूचना नहीं दी। न नामांतरण खारिज करने की जानकारी दी गई। मुकेश राजपूत का भी साइबर तहसील पर नामांतरण गया था, लेकिन ट्रांसफर होकर तहसील आ गया। हालांकि उन्होंने दस्तावेज पेश कर दिए।
-साइबर तहसील के दो प्रारूप लागू किए गए हैं। पहले प्रारूप में उन्हीं दस्तावेज के नामांतरण हो रहे थे, जिनमें खेत का पूरा सर्वे नंबर बिका है, किसी भी तरह की कोई आपत्ति नहीं है।
-प्रारूप-2 में जमीन का कुछ हिस्सा बिकने पर भी नामांतरण की प्रक्रिया शुरू जाएगी। सिर्फ आपत्ति या कोर्ट केस वाले ही नामांतरण ऑफलाइन निराकृत किए जाएंगे।
-साइबर तहसील के तहत पंजीयन विभाग के यहां रजिस्ट्री होने पर स्वत: ही नामांतरण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
दस्तावेज पूरे नहीं होंगे। इस वजह से साइबर तहसील से मामला तहसीलदार के पास पहुंचा होगा। रिकॉर्ड देखने के बाद ही वास्तविक स्थिति बता सकेंगे।
रुचिका चौहान, कलेक्टर
Published on:
20 Aug 2024 06:28 pm