करीब तीन दशक पहले बसी शील कॉलोनी शहर की बड़ी रहवासी बस्ती का तमगा तो हासिल कर चुकी है। लेकिन जिस उम्मीदों के साथ इस कॉलोनी में लोग बसे थे उन्हें वह सहूलियतें नहीं मिलीं हैं। यहां रहने वाले मानते हैं कॉलोनी के हालात रोज बिगड़ रहे हैं यहां सडक़ें टूटीं हैं, सीवर जाम है बिजली के खंभे लगे हैं लेकिन स्ट्रीट लाइट नहीं जलती है यह रोजमर्रा की समस्याएं हैं।
शील नगर कॉलोनी निवासी संजय शर्मा कहते हैं, पिछले साल तो बरसातों में तो यह कॉलोनी जलमग्न थी। घरों में पानी भरा था, जिनके मकान दो मंजिला हैं वह दूसरी मंजिलों पर शिफ्ट हो गए थे एक मंजिल मकान में रहने वालों को पानी से जूझना पड़ा था। गनीमत है इस बार पानी नहीं भरा लेकिन जो समस्याएं है वह रोज परेशान कर रही हैं। संजय बताते हैं कॉलोनी में दाखिल होने के दो रास्ते हैं। दोनों की हालत खस्ता है।
एक रास्ते की सडक़ गायब हो चुकी है, उसमें गड्ढे और पानी ही पानी है। बची खुची कसर भारी वाहन इस रास्ते को रौंद कर खराब कर रहे हैं। वैसे तो कॉलोनी में भारी वाहनों की एंट्री का कोई मतलब नहीं है। लेकिन दिन के समय पुलिस की वसूली से बचने के लिए आए दिन भारी वाहन चालक कॉलोनी में गाडिय़ां खड़ी करते हैं। यह गाडिय़ां रास्ता तो घेरती है कॉलोनी की सडक़ भी खराब कर रही हैं।
देवेन्द्र सिंह यादव कहते हैं गाइडलाइन के हिसाब से कॉलोनी में जमीन की कीमत 4 हजार रुपया वर्ग फीट है जबकि सौदे इससे ज्यादा दाम पर होते हैं। उन्होंने भाईयों के साथ कॉलोनी में जमीन में खरीदी है। अब मकान बनवा रहे है। बिल्कुल बाजू के प्लॉट में गोबर और पानी भरा है। देवेन्द्र कहते हैं कि कॉलोनी में चार-पांच डेयरी हैं। जबकि रिहायाशी बस्ती में डेयरी संचालक पर रोक है लेकिन शील नगर में यह कानून नहीं चलता। डेयरी संचालक आधी रात को या सुबह- सुबह गोबर भर नाले, खाली प्लॉट में डेयरी वाले गोबर पटकते हैं। इसके अलावा आसपास की कॉलोनी में रहने वाले भी यहां कचरा फेंकते हैं।
कॉलोनी निवासी जितेन्द्र दंडौतिया का कहना है नाम बड़े और दर्शन छोटे यह कहावत शायद कॉलोनी के लिए ही बनी है। बिजली के खंभों की तरफ इशारा करते हुए जितेन्द्र कहते हैं यहां खंभे लगे हैं लेकिन ज्यादातर पर स्ट्रीट लाइट नहीं है। जिन पर लगी है उन पर जलती नहीं है। तमाम बार शिकायतें की है लेकिन कॉलोनी की गलियां अंधेरे में ही हैं।
Published on:
14 Aug 2025 08:22 pm