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कभी शहर की लाइफ लाइन थीं ये नदियां, अब बह रहा गंदा पानी, बांधों पर अतिक्रमण

विश्व जल दिवस : स्वर्ण रेखा व मुरार नदी को जरूरत है पुराने स्वरूप में लाने की

कभी शहर की लाइफ लाइन थीं ये नदियां, अब बह रहा गंदा पानी, बांधों पर अतिक्रमण
कभी शहर की लाइफ लाइन थीं ये नदियां, अब बह रहा गंदा पानी, बांधों पर अतिक्रमण

ग्वालियर. कभी शहर की लाइफ लाइन रहीं स्वर्ण रेखा और मुरार नदी अब गंदे नाले के रूप में तब्दील हो गई हैं। रियासत कालीन इन नदियों में कभी साफ पानी बहता था, जिससे आसपास के कुएं, बावड़ी हमेशा भरे रहते थे। लेकिन अब इनमें शहरभर के नालों की गंदगी बह रही है और इनके बांधों पर अतिक्रमण हो गया है।
नदियों के कैचमेंट एरिया में भी धड़ल्ले से अवैध उत्खनन हो रहा है। दोनों नदियों के दुर्दशा पर अफसरों द्वारा ध्यान नहीं दिए जाने पर न्यायालय में याचिका दायर की गई है। स्वर्ण रेखा को लेकर विश्वजीत रतौनिया ने याचिका दायर की है, जिसमें अभी सुनवाई चल रही है और अफसरों को लगातार फटकार लगाई जा रही है। वहीं मुरार नदी के मामले में अफसरों को नोटिस भेजे गए हैं। हालांकि केंद्र सरकार के नमामि गंगे प्रोजेक्ट में मुरार नदी को शामिल कर कार्य कराया जा रहा है, लेकिन नदी के आसपास से गंदगी, अतिक्रमण, अवैध उत्खनन रोकना आज भी जिला प्रशासन, निगम व पुलिस के लिए चुनौती बना हुआ है।


12.33 किलोमीटर लंबी मुरार नदी में मिल रहा नालों का पानी
रमौआ बांध से जड़ेरूआ बांध तक 12.33 किलोमीटर क्षेत्र में मुरार नदी के विकास के लिए नमामि गंगे प्रोजेक्ट के प्रथम चरण का कार्य चल रहा है। पहले चरण में 39 करोड़ 24 लाख रुपए स्वीकृत हो चुके हैं और दूसरे चरण में 124 करोड़ 29 लाख रुपए मिलने हैं। 12.33 किलोमीटर लंबी नदी में नालों व सीवर लाइनों का गंदा पानी मिल रहा है। इससे नदी में जगह-जगह गंदगी पड़ी है।

मुरार नदी में चल रहा यह काम
मुरार नदी के सौंदर्यीकरण के लिए रमौआ बांध से नेशनल हाइवे पुल तक 750 मीटर में काम चल रहा है। इसके अलावा हुरावली पुल से काल्पी ब्रिज पुल, शहीद गेट पुल के पास, नदी पार टाल के पास और रमौआ के पास रैबीयन बॉल व पत्थर की दीवार बनाई जानी है। कंपनी को 12.50 किलोमीटर एरिया में 22 करोड़ के काम करना हैं। जुलाई तक काम पूरा होने की उम्मीद है।

स्वर्ण रेखा में साफ पानी बहाना अभी भी सपना
स्वर्ण रेखा नदी को पुनर्जीवित करना और उसमें साफ पानी बहाना अभी भी दूर की कौड़ी है। हालांकि न्यायालय द्वारा एक साल से अफसरों को प्लान तैयार करने के लिए कहा जा रहा है, उसके बाद भी कोई विशेष बदलाव दिखाई नहीं दे रहे हैं। 13.65 किलोमीटर लंबी स्वर्ण रेखा नदी पर अब तक नगर निगम, जलसंसाधन, वन विभाग व स्मार्ट सिटी सहित अन्य विभाग मिलकर करीब 200 करोड़ रुपए खर्च कर चुके हैं, उसके बाद भी स्वर्ण रेखा गंदगी से भरी हुई है।

बांधों पर अतिक्रमण व अवैध उत्खनन
एमपी वाटर स्ट्रक्चर रिपेयरिंग प्रोजेक्ट (एमपी डब्ल्यूएसआरपी) के तहत स्वर्ण रेखा में साफ पानी बहाने के लिए 46 करोड़ रुपए में पांच बांध बनाए गए थे। इनमें मामा का बांध, वीरपुर बांध, रायपुर, गिरवाई व हनुमान बांध शामिल हैं। लेकिन अफसरों की लापरवाही से यह सभी बांध अब गंदगी से पटे हैं। बांधों के आसपास अतिक्रमण हो गए हैं। इन बांधों के साथ ही नदियों के कैचमेंट एरिया में भी अवैध उत्खनन से लगातार जल का स्तर गिरता जा रहा है।