
COPD Deaths in India (Photo- gemini ai)
COPD Deaths in India: भारत में एक अजीब-सी बीमारी अपने पैर पसार रहा है। यह शोर नहीं करती, लेकिन लोगों की सांसें धीरे-धीरे छीन रही है। इस बीमारी का नाम है COPD (क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज)। यह न हवा में दिखती है, न तुरंत महसूस होती है, लेकिन असर इतना गहरा कि भारत को दुनिया का सबसे बड़ा बोझ उठाना पड़ रहा है। WHO के आंकड़ों के अनुसार, देश में 50–55 मिलियन लोग इस बीमारी से जूझ रहे हैं और हर साल करीब 15 लाख मौतें हो रही हैं। यह सिर्फ आंकड़ा नहीं एक धीमी, लगातार बढ़ती राष्ट्रीय त्रासदी है।
दिल्ली और आसपास के इलाकों में तो डर हवा में ही घुला हुआ है। AQI 300 से 500 के बीच झूलता रहता है, कई दिनों में 540 तक पहुंच जाता है। लोग इसे सीजनल बोलकर नजरअंदाज कर देते हैं, जबकि यह सीजन अब सालभर रहने लगा है। गाड़ियों का धुआं, फैक्ट्री की चिमनियां और हर साल की पराली सब मिलकर हवा को जहरीला बना रहे हैं। इसी का नतीजा है कि COPD की रफ्तार अब अस्थमा, टीबी और निमोनिया से भी आगे निकल गई है।
दिल्ली के डॉ. हरीश भाटिया बताते हैं कि पहले COPD ज्यादातर बुजुर्ग स्मोकर्स में देखा जाता था, लेकिन अब 20–35 साल के ऑफिस जाने वाले युवाओं की सांसें भी छोटी होने लगी हैं। वे कहते हैं, “बहुत से लोग तो कभी सिगरेट छूते भी नहीं, लेकिन थोड़ी सी वॉक के बाद हांफने लगते हैं। हवा इतनी खराब हो चुकी है कि फेफड़े बिना शोर किए धीरे-धीरे खराब होते जा रहे हैं।” सबसे दुखद बात यह है कि स्पायरोमेट्री जैसे बेसिक टेस्ट अब भी हर क्लिनिक में नहीं होता, इसलिए ज्यादातर लोग तब तक अनजान रहते हैं जब तक फेफड़ों की आधी क्षमता जा नहीं चुकी होती।
WHO के आंकड़े बताते हैं कि 70 साल से कम उम्र में होने वाली COPD मौतों का 90% हिस्सा गरीब और मध्यम आय वाले देशों में होता है। भारत में लाखों महिलाएं जो सालों तक लकड़ी, कोयला या गोबर के चूल्हे पर खाना बनाती हैं, उनकी सांसों में अनजाने में ही जहर भरता रहता है। उज्ज्वला योजना से मदद मिली है, लेकिन अभी भी करोड़ों घरों में बायोमास का धुआं रोज फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।
फोर्टिस नोएडा के डॉ. राहुल शर्मा के अनुसार हल्की सांस फूलना, बार-बार खांसी, सीने में भारीपन, ज्यादा थकान ये सब COPD के शुरुआती संकेत हो सकते हैं। वे कहते हैं, “सांस फूलना सामान्य नहीं है। फेफड़ों का टेस्ट समय रहते करवाना जरूरी है, वरना नुकसान रुक नहीं पाता।” मेदांता लखनऊ के डॉ. आशीष शुक्ला बताते हैं कि भारत में होने वाले सारे क्रॉनिक रेस्पिरेटरी रोगों में से 76% बोझ अकेले COPD का है।
Published on:
21 Nov 2025 10:16 am
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