12 अगस्त 2025,

मंगलवार

Patrika LogoSwitch to English
मेरी खबर

मेरी खबर

शॉर्ट्स

शॉर्ट्स

ई-पेपर

ई-पेपर

दक्षिण में छाया लहरिया का रंग, घूमर पर थिरके कदम, राजस्थानी संस्कृति हुई साकार

कर्नाटक के शिवमोग्गा में राजस्थान मूल की राजपूत समाज की महिलाओं ने पारंपरिक लहरिया महोत्सव में रंग और रौनक बिखेर दी। घूमर की थाप ने पल भर में मरूधरा की गलियों में पहुंचा दिया। कार्यक्रम में दूर-दूर तक राजस्थान की खुशबू बिखेर दी।

शिवमोग्गा (कर्नाटक) में आयोजित लहरिया महोत्सव में राजस्थान मूल की महिलाएं परम्परागत वेशभूषा में।
शिवमोग्गा (कर्नाटक) में आयोजित लहरिया महोत्सव में राजस्थान मूल की महिलाएं परम्परागत वेशभूषा में।

संस्कृतियों के संगम की सुन्दर मिसाल
लहरिया महोत्सव में शामिल राजपूत समाज की महिलाएं पारंपरिक लहरिया परिधान, चांदी-लाख के गहनों और राजस्थानी शृंगार से सजी-धजी नजर आईं। शहर के शुभम होटल में आयोजित महोत्सव ने न केवल राजस्थान के रंग दक्षिण में बिखेरे, बल्कि संस्कृतियों के संगम की सुंदर मिसाल भी पेश की। महोत्सव में महिलाओं की रंग-बिरंगी पोशाकें, मीठी राजस्थानी बोली और आत्मीयता से भरे स्वागत ने माहौल को ऐसा बना दिया मानो दक्षिण में नहीं, बल्कि किसी राजस्थानी हाट-बाजार में बैठे हों। कार्यक्रम ने साबित कर दिया कि दूरी चाहे कितनी भी हो, संस्कृति की डोर दिलों को हमेशा जोड़े रखती है। राजस्थान मूल की दीपा सोलंकी, कैलाश वाघेला, अनीता परिहार एवं भंवर धवेचा ने दीप प्रज्ज्वलन किया।

पधारो म्हारे देश…
महोत्सव का खास आकर्षण घूमर की सामूहिक प्रस्तुति रही। जिसने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। राजस्थान मूल की पूरण कंवर, डिंपल राठौड़, प्रेमा राणावत, दीपू चौहान, अनीता परिहार एवं हेमलता चांपावत ने घूमर की बेहतरीन प्रस्तुति दी। इसके अलावा अन्य राजस्थानी लोकगीतों और नृत्यों ने भी रंग जमाया। महिलाओं की अपने पारंपरिक अंदाज में पधारो म्हारे देश…, केसरिया बालम… जैसे लोकगीतों पर दी गई प्रस्तुतियों ने अपनेपन और संस्कृति की महक से भर दिया। राजस्थान मूल की हेमलता चांपावत, कैलाश वाघेला, अनीता परिहार एवं प्रेमा राणावत ने समारोह का संचालन किया।

लहरिया हमारी पहचान और विरासत
महोत्सव के आयोजक मंडल की प्रमुख सदस्य राजस्थान मूल की कैलाश वाघेला ने कहा, इस महोत्सव का उद्देश्य नई पीढ़ी को राजस्थान की परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर से जोडऩा है। राजस्थान का लहरिया हमारी पहचान और हमारी विरासत है। राजस्थान के लोकनृत्य और लोककलाएं अपने आप में मिसाल हैं।

राजस्थान के रीति-रिवाज अपने आप में अनूठे
अनीता परिहार ने कहा, राजस्थान वीरों की धरती रही है और आज भी इसकी झलक हर कला और संस्कृति में दिखाई देती है। राजस्थान का खान-पान, वेशभूषा और रीति-रिवाज अपने आप में अनूठे हैं। यहां के पहनावे में खासकर राजपूती पोशाक अपनी शान और गौरव को दर्शाती है।

घूमर महिला सशक्तिकरण का प्रतीक
हेमलता राठौड़ ने कहा, राजस्थान का पहनावा अपने आप में अद्वितीय है और यहां की मीठी बोली में अपणायत का भाव छिपा है। घूमर केवल नृत्य नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण और सामूहिक एकता का प्रतीक है। राजस्थान की मेहमाननवाजी की कोई तुलना नहीं है।