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कथा का मर्म समझें तभी मिलेगा असली सार, आत्मानुरंजन का माध्यम बने कथा, भीतर उतरे तो बदल दे जीवन

लगातार साढ़े चार दशकों से देशभर में कथा के माध्यम से समाज को दिशा देने वाले कथा वाचक पुष्करदास महाराज का कहना है कि कथाएं केवल सुनने भर के लिए नहीं, बल्कि आत्मा को पोषण देने और जीवन को दिशा देने के लिए हैं। हुब्बल्ली में भागवत कथा कर रहे राजस्थान के उदयपुर से आए कथा वाचक पुष्करदास महाराज ने राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में वर्तमान सामाजिक हालात, परिवार व्यवस्था, युवा पीढ़ी और हमारी परम्पराओं पर खुलकर अपने विचार रखे। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत का सार:

कथावाचक पुष्करदास महाराज
कथावाचक पुष्करदास महाराज

प्रश्न: आजकल कथाएं तो बहुत हो रही हैं, इनकी प्रभावशीलता पर आप क्या कहना चाहेंगे?
पुष्करदास महाराज:
कथाओं का समाज में संदेश कम जा रहा है। केवल कथा के रूप में जा रहा है, पर यह तत्वार्थ के रूप में जाना चाहिए। कथा केवल मनोरंजन प्रधान न होकर आत्मानुरंजन प्रधान होनी चाहिए। कथा का सही रूप समझना जरूरी है।

प्रश्न: परिवार व्यवस्था के संदर्भ में आपका क्या संदेश है?
पुष्करदास महाराज:
परिवार में यदि सामंजस्यता बनी रहेगी तो परिवार टूटेंगे नहीं। आज हर किसी को अधिक स्वतंत्रता चाहिए, लेकिन अधिक स्वतंत्रता के खतरे भी अधिक हैं। एक परिवार के साथ मिलकर रहने से मान, सम्मान और इज्जत बनी रहती है। बच्चों में अच्छे संस्कार आते हैं, तीन पीढिय़ों का उद्धार होता है और दाम्पत्य जीवन भी अच्छा बना रहता है।

प्रश्न: समाज में स्वार्थ और रिश्तों में खटास पर आपकी क्या राय है?
पुष्करदास महाराज:
आज व्यक्ति पर स्वार्थ हावी हो गया है। बेटियों के विवाह के बाद उनके पीहर पक्ष की दखलंदाजी अधिक होने से वे ससुराल में बहू के रूप में टिक नहीं पातीं। यदि पीहर पक्ष का हस्तक्षेप बंद हो जाए तो कोई बुजुर्ग माता-पिता वृद्धाश्रम नहीं जाएंगे। बेटी की शादी एक तय उम्र में हो और उसका घर बसाओ, यही उचित है।

प्रश्न: मोबाइल और आधुनिक तकनीक के प्रभाव को आप कैसे देखते हैं?
पुष्करदास महाराज:
मोबाइल का दुरुपयोग अधिक हो रहा है। बच्चों में संस्कारों की कमी के लिए मुख्य रूप से मोबाइल जिम्मेदार है।

प्रश्न: खान-पान और जीवनशैली पर आपका क्या कहना है?
पुष्करदास महाराज:
आजकल पीजा-बर्गर, मैगी जैसा भोजन आम हो गया है। लोग जल्दी पेट भरना चाहते हैं, पर यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और आलस्य पैदा करता है। सात्विक भोजन कम हो गया है। हमारा दिया-बाती और पूजा-पाठ भी कम हो गया है, जबकि घूमने-फिरने का शौक बढ़ रहा है। इसका असर भविष्य पर पड़ेगा।

प्रश्न: सनातन धर्म और परम्पराओं पर आप क्या कहना चाहेंगे?
पुष्करदास महाराज:
यदि हम सनातन धर्म से जुड़े हैं तो अपनी परम्परा को निभा रहे हैं। कोरोना काल में लोगों ने रामायण-महाभारत अधिक देखी और एक साथ बैठकर देखी। इससे हमारी संस्कृति की महानता का बोध हुआ और समय का सदुपयोग भी हुआ।

प्रश्न: आपने अब तक कितनी कथाएं की हैं और किन-किन विषयों पर?
पुष्करदास महाराज:
पिछले 45 वर्षों में देशभर में 1200 से अधिक कथाएं करा चुका हूं। वर्ष 1980 से लगातार कथाएं कर रहा हूं। श्रीमद्भागवत कथा, रामकथा, गौभागवत कथा, नानीबाई का मायरा, गीता सत्संग, मीरा चरित्र, गोपी गीत और सत्यनारायण भगवान की कथाएं की हैं।