
MP News: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा, संसद ने छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने के बाद भी मप्र में जनजाति की सूची से मुड़िया जनजाति को नहीं हटाया है। इस निर्णय से साफ है कि प्रदेश में इस जनजाति के लोग निवासरत हैं।
इस मत के साथ जस्टिस विवेक जैन की सिंगल बेंच ने हाई पावर कास्ट स्क्रूटनी कमेटी के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मप्र में मुड़िया जनजाति निवासरत नहीं है। कोर्ट ने मामले को हाई पावर कमेटी के समक्ष फिर से भेजने के निर्देश दिए। कोर्ट ने कहा कि कमेटी दावा करने वालों के मामलों पर मानवीय व सामाजिक विशेषताओं के आधार पर विचार करे। यह भी ध्यान रखें, मप्र की सूची से इनको हटाया नहीं गया है।
बैतूल जिले में तत्कालीन हायर सेकेंडरी स्कूल प्राचार्य पूरनलाल मुड़िया सहित प्रदेशभर के 45 लोगों ने 2002 में इस संबंध में याचिका दायर की थी। वहीं, नरसिंहपुर जिले के तत्कालीन असिस्टेंट सर्जन डॉ प्रदीप कुमार मुड़िया ने 2007 में तथा इसके बाद राज्य के विभिन्न स्थानों से 2009, 2016, 2018 व 2024 में अन्य याचिकाकर्ताओं ने याचिकाएं दायर की थीं।
मप्र के विभाजन के बाद सन 2000 में राज्य सरकार के आदिम जाति कल्याण विभाग ने एक आदेश जारी किया। इस आदेश के परिप्रेक्ष्य में मुड़िया जनजाति को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले का बताते हुए याचिकार्ताओं को इसके अंतर्गत नहीं माना गया। इसके खिलाफ याचिकार्ताओं ने हाईकोर्ट की शरण ली। हाईकोर्ट के आदेश पर 2002 में हाई पावर कास्ट स्क्रूटनी कमेटी ने याचिकार्ताओं की जाति की जांच की। इसमें याचिकार्ताओं को मुड़िया की बजाय ओबीसी में आने वाली मुड़हा जाति का बताते हुए याचिकाकर्ताओं के खिलाफ एफआइआर दर्ज करने के निर्देश दे दिए। इस पर फिर हाईकोर्ट की शरण ली गई। कोर्ट ने उन्हें राहत दी।
डॉ प्रदीप मुड़िया व अन्य की ओर से अधिवक्ता ब्रह्मानंद पांडे ने कोर्ट को बताया कि मुड़िया अभी भी मप्र की जनजाति की सूची में 16 नंबर पर है। जांच कमेटी ने इस तथ्य को दरकिनार कर दिया कि एसडीएम, तहसीलदारों व अन्य अधिकारियों की रिपोर्ट में मप्र में मुड़िया जाति के करीब 1200 परिवार हैं। मनमानी तरीके से सब कमेटी बनाई गई।
Published on:
06 Nov 2025 08:16 am
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