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जयपुर में आरोग्य मंदिरों का सच: बदले सिर्फ नाम, सेवाएं और डॉक्टरों की कमी जस की तस, यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज के दावे धरे रह गए

केंद्र सरकार की यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज योजना के तहत 8,645 अस्पतालों को ‘आयुष्मान आरोग्य मंदिर’ में बदलने का दावा खोखला निकला। जांच में सामने आया कि ज्यादातर केंद्रों पर सिर्फ नाम बदले गए, सुविधाएं पहले जैसी ही रहीं।

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Jaipur Arogya Mandirs

अस्पतालों का चेहरा, कागजों में बदला... (फोटो- पत्रिका)

जयपुर: केंद्र सरकार की योजना के तहत यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए प्रदेश में 8,645 अस्पतालों को आयुष्मान आरोग्य मंदिरों में बदलने का दावा चिकित्सा विभाग ने किया था। इन आरोग्य मंदिरों पर 12 प्रकार की विशेष सेवाएं, डिजिटल हेल्थ रिकॉर्ड, नर्सिंग स्टॉफ, वेलनेस गतिविधियां और आधुनिक जांच सुविधाएं देने की बात की गई थी।


लेकिन जमीनी हकीकत में ऐसा कुछ नहीं किया गया। पत्रिका संवाददाता जब जयपुर शहर के विभिन्न केंद्रों पर पहुंचे तो उन्होंने पाया कि इन अस्पतालों के नाम तो बदल दिए गए, मगर सुविधाओं में कोई खास बदलाव नहीं हुआ। इन केंद्रों के आसपास रहने वाले लोगों ने कहा, कुछ महीने पहले नाम बदल दिया, लेकिन सुविधाएं पहले जैसी ही हैं।


आरोग्य मंदिरों के तौर पर बर्न-स्ट्रोक-मेंटल-ईएनटी-ओरल-शिशु-प्रौढ़-किशोर स्वास्थ्य देखभाल के दावे भी झूठे निकले। शिशु, स्त्री एवं प्रसूति रोग, ईएनटी, नेत्र रोग विशेषज्ञ कहीं नहीं मिले। यहां तक की ओपीडी समय में डॉक्टर भी नदारद थे।


झालाना बस्ती : पता नहीं डॉक्टर कहां


स्टॉफ को पता नहीं, डॉक्टर कहां हैं? एप्रिन पहने आरयूएचएस का इंटर्न मरीज देख रहा था। यहां महिलाओं के इलाज के लिए एक दो दिन निजी गायनी डॉक्टरों को बुलाया जाता है। शिशु देखभाल के नाम पर यहां गुरुवार को पहले की तरह ही टीकाकरण होता है।


आजाद नगर, कच्ची बस्ती : कुछ नया नहीं


घाट की गुणी टनल सर्किल से पहले दाईं और करीब 100 मीटर अंदर केंद्र के गेट पर आरोग्य मंदिर चस्पा है। मगर भीतर नया कुछ भी नहीं है। स्टॉफ ने बताया कि कुछ महीने पहले यह आरोग्य मंदिर बना है।

स्थानीय लोगों ने बताया कि यहां बीपी शुगर की ही जांच होती है। पत्रिका टीम जब पहुंची तो यहां कोई डॉक्टर भी नहीं था। पहले यह जनता क्लीनिक था, उसे ही आरोग्य मंदिर में बदला गया है।


गांधीनगर : नाम बदला, हाल वही


आइएएस अफसरों के घरों से सटा यह केंद्र चमकदार था। गांधीनगर के इस शहरी केंद्र में दीवारों की चमक और नई पट्टिका जरूर नजर आई, लेकिन सेवाएं वही पुरानी। बस नाम बदला। सुविधाएं यहां भी पहले जैसी ही हैं।

आमागढ़ बस्ती


केंद्र के बाहर आयुष्मान आरोग्य मंदिर का बोर्ड भी नहीं था। स्टॉफ ने बताया कि बाहर आरोग्य मंदिर का निशान बनना है, नाम नहीं लिखा। स्थानीय लोगों ने बताया कि सुविधाएं पहले जैसी ही हैं, कुछ नहीं बदला। इस समय कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। फॉर्मासिस्ट और लैब टेक्नीशियन नहीं हैं। एएनएम से ही दवा वितरित करवाई जाती है।


आरोग्य मंदिरों में ये मिलनी थी सुविधाएं


-गर्भावस्था और नवजात एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाएं।
-बचपन, किशोर एवं प्रौढ़ स्वास्थ्य सेवाएं।
-परिवार नियोजन, गर्भ निरोधक एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं।
-कम्यूनिकेबल बीमारियों का प्रबंधन।
-मामूली बीमारियों के लिए ओपीडी सेवाएं।
-नेत्र, नाक, कान, गला, मुख रोग सेवाएं।
-जलने और आघात सहित इमरजेंसी सेवाएं।
-मानसिक स्वास्थ्य रोगों की स्क्रीनिंग और बुनियादी प्रबंधन।


नहीं मिलता डॉक्टर


झालाना की इस बस्ती में अधिकांशतया डॉक्टर नहीं मिलते। मैं तो गांधीनगर के अस्पताल से दवा लिखवाता हूं, दवा यहां झालाना भी मिल जाती है। आरोग्य मंदिर कब बना, मुझे पता नहीं है।
-नंदलाल, झालाना बस्ती


पहले जैसा अस्पताल


यहां तो बीपी और शुगर की ही जांच होती है। अस्पताल तो पहले जैसा ही चल रहा है। नाम जरूरत कुछ महीने पहले बदला है।
-सलमान, आमागढ़ बस्ती