
जयपुर में बोलते हुए सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत (फोटो-पत्रिका)
जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में विकास तो तेजी से हो रहा है, लेकिन मनुष्य की प्रतिकार शक्ति (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कमजोर होती जा रही है। जो मनुष्य पहले आबोहवा के उतार-चढ़ाव को सह लेता था, वह आज नाजुक हो गया है।
भागवत ने कहा कि विश्व की केवल 4 प्रतिशत आबादी 80 प्रतिशत संसाधनों का उपयोग करती है, जबकि 96 प्रतिशत लोग इससे वंचित हैं। जैसे-जैसे विकास बढ़ा है, अमीर और अमीर, गरीब और गरीब होते जा रहे हैं। विकास और प्रगति की बातें बहुत होती हैं, लेकिन आज भी बड़ी आबादी मूल सुविधाओं से वंचित है।
भागवत शनिवार को जयपुर के सवाई मानसिंह स्टेडियम के इंडोर परिसर में आयोजित दीनदयाल स्मृति व्याख्यान (वर्तमान वैश्विक परिदृश्य एवं एकात्मक मानव दर्शन) में बोल रहे थे। कार्यक्रम की प्रस्तावना एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान के अध्यक्ष डॉ. महेश चन्द्र शर्मा ने रखी। उन्होंने कहा कि सुख-सम्पन्नता बढ़ी है, विज्ञान ने खूब तरक्की की है, लेकिन हालात ऐसे हैं कि कई बीमारियों की दवाइयां आज भी नहीं है।
एकात्म मानव दर्शन को 60 वर्ष हो चुके हैं। नाम नया हो सकता है, लेकिन विचार पुराना ही है। इसकी प्रासंगिकता आज पहले से अधिक है। दुनिया जिन सवालों के जवाब तलाश रही है, वे भारत की सोच और दर्शन में मौजूद हैं।
भारत की योग्यता, प्रमाणिकता पर सारी दुनिया भरोसा करती है। दुनिया हमारे डॉक्टर, इंजीनियर और हमारे व्यापारी खोजती है।
भारत धर्म के आधार पर ही आगे बढ़ेगा। धर्म यानी जीवन का अनुशासन, जो शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा… इन चारों के विकास की बात करता है। उन्होंने पतंजलि योगसूत्र, योग भाष्य जैसे ग्रंथों के अध्ययन की आवश्यकता भी बताई।
भागवत ने कहा कि दुनिया में जिस तरह का आक्रामक राष्ट्रवाद बढ़ा, उसी ने दो बड़े युद्ध खड़े किए। पहला और दूसरा विश्वयुद्ध इसी राष्ट्रवाद के कारण हुआ। व्यक्ति का विकास तो हो रहा है, लेकिन राष्ट्रवाद की बढ़ती प्रतिस्पर्धा से महायुद्ध जैसी परिस्थितियां भी पैदा होती हैं, लेकिन भारत का राष्ट्रवाद समाहित करने वाला है, किसी को दबाने वाला नहीं।
आज दुनिया भर से लोग संघ को समझने भारत आ रहे हैं। वे कहते हैं हमारे यहां परिवार टूट रहे हैं, शांति नहीं है। ऐसी व्यवस्था की जरूरत है जो परिवार, समाज और राष्ट्र को जोड़े।
भागवत ने कहा कि सरकार सबका साथ-सबका विकास की बात करती है तो हमें भी शरीर, मन, बुदि्ध और आत्मा को साथ लेकर सबका विकास करना है। एकात्मवाद की भी यही सोच है।
Published on:
15 Nov 2025 10:31 pm
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