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संस्कृत केवल भाषा नहीं, यह सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया : गुलाब कोठारी

राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा कि प्राचीन काल में नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में हजारों छात्र विदेशों से पढ़ने आते थे। आज भी वही ग्रंथ उपलब्ध हैं, पर अब वैसा आकर्षण क्यों नहीं? इसका कारण है ज्ञान का विज्ञान भाव से अभिव्यक्त न हो पाना।

gulab kothari
फोटो पत्रिका

जयपुर। संस्कृति को संस्कृत से समझना पड़ेगा। संस्कृत में अपार संभावनाएं हैं। आज की समस्याओं का हल संस्कृत में ढूंढना पड़ेगा। इसे केवल भाषा समझना भूल है। यह सृष्टि निर्माण की प्रक्रिया है। इसमें आत्मा और ईश्वर के संबंध के रहस्य हैं। यदि आज भारत की संस्कृति जीवित है तो उसका कारण संस्कृत की अविच्छिन्न परंपरा है। यह बात बुधवार को जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय में संस्कृत दिवस के तहत आयोजित संस्कृत सेवा सम्मान समारोह में राजस्थान पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कही। उन्होंने कहा कि हमें भारतीय संस्कृति का पल्ला पकड़े रहना है और यह पल्ला है संस्कृत। इसे कभी नहीं छोड़ना है। आज समाज में संस्कृति और संस्कृत को स्थापित करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संस्कृति ही हमें बताती है कि स्त्री ही लक्ष्मी रूप है। मां की दिव्यता को संस्कृत ने ही स्थापित किया है।

संस्कृत को वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समझें

कोठारी ने कहा कि प्राचीन काल में नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालयों में हजारों छात्र विदेशों से पढ़ने आते थे। आज भी वही ग्रंथ उपलब्ध हैं, पर अब वैसा आकर्षण क्यों नहीं? इसका कारण है ज्ञान का विज्ञान भाव से अभिव्यक्त न हो पाना। कोठारी ने कहा कि संस्कृत को हमने केवल भाषा मानकर सीमित कर दिया, जबकि यह तो विचार, चेतना और संस्कृति की वाहक है।

शब्दों में गहराई से विज्ञान छिपा है। जैसे “हृदय” शब्द केवल शरीर का अंग नहीं, बल्कि आत्मिक केंद्र है। उन्होंने कहा कि गीता, वेद और उपनिषदों में दिए गए शब्दों का वैज्ञानिक विश्लेषण किया जाए तो वह आधुनिक विज्ञान से कहीं आगे निकलते हैं। उन्होंने बताया कि सृष्टि की रचना में 'मृगु' (पदार्थ) और 'अंगिरा' (ऊर्जा) की भूमिका है, और यही दोनों शक्तियां ब्रह्मांड को संचालित कर रही हैं। संस्कृत का अध्ययन तभी सार्थक है जब हम इसे वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समझें।

संस्कृत के वैज्ञानिक स्वरूप को आधुनिक शिक्षा से जोड़े

समारोह की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रामसेवक दुबे ने कहा कि संस्कृत भाषा न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रंथों की जननी है, बल्कि यह विज्ञान, गणित, चिकित्सा और दर्शन जैसे विविध क्षेत्रों में भी अत्यंत समृद्ध है। उन्होंने कहा कि आज आवश्यकता है कि हम संस्कृत के वैज्ञानिक स्वरूप को आधुनिक शिक्षा से जोड़े और नई पीढ़ी को इसकी महत्ता से अवगत कराएं। संस्कृत की उपेक्षा केवल एक भाषा की नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों की उपेक्षा होगी। उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालयों और शिक्षकों से आह्वान किया कि वे संस्कृत को जन-जन तक पहुंचाने में सेतु बनें।

'संस्कृत सेवा सम्मान' प्रदान किया

समारोह में प्रो. अर्चना भार्गव (अध्यक्ष - संस्कृत विभाग, सम्राट पृथ्वीराज चौहान राजकीय महाविद्यालय, अजमेर), डॉ. अशोक कुमार झा (सह आचार्य, राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय, महापुरा), डॉ. मधुबाला शर्मा (अध्यक्ष - साहित्य विभाग, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर) और डॉ. विजय कुमार दाधीच (सहायक आचार्य - शिक्षा विभाग, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली) को 'संस्कृत सेवा सम्मान' प्रदान किया गया। विश्वविद्यालय में उत्कृष्ट कार्य के लिए उप कुलसचिव डॉ. सुभाष शर्मा का भी सम्मान किया गया। समारोह का संचालन शास्त्री कोसलेंद्रदास ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सह संयोजक डॉ. देवेंद्र कुमार ने किया। मंगलाचरण डॉ. नारायण होसमने और संस्कृत दिवस समारोह की जानकारी डॉ. राजधर मिश्र ने दी।