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सरहद से सटे जिले में उच्च प्राथमिक शिक्षा का संकट, सैकड़ों पद अब भी खाली

यह स्थिति सरहदी जिले के बच्चों की बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने की स्थिति बयां कर रही है।

सीमांत जिले की शिक्षा व्यवस्था मे उच्च प्राथमिक स्तर पर शिक्षक पदों की भारी कमी है। जिला शिक्षा विभाग के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि लेवल-2 यानी कक्षा 6 से 8 तक के लिए स्वीकृत 1628 पदों में से केवल 1056 पर ही शिक्षक कार्यरत हैं, जबकि 572 पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं। यह स्थिति सरहदी जिले के बच्चों की बुनियादी शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करने की स्थिति बयां कर रही है। आंकड़े बताते हैं कि शहर और कस्बाई क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में स्थिति ज्यादा खराब है। मोहनगढ़, नाचना और सम ब्लॉक में रिक्तियां 35 प्रतिशत से 50 प्रतिशत के बीच हैं, जिससे इन क्षेत्रों के बच्चों की पढ़ाई पर गहरा असर पड़ रहा है।

शिक्षक बेबस तो छात्र भी परेशान

जिले के कई प्राथमिक विद्यालयों में हालात ऐसे है कि न तो शिक्षक बच्चों को पर्याप्त समय दे पा रहे हैं और न ही छात्रों को व्यक्तिगत मार्गदर्शन मिल रहा है। ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में तो कभी-कभी एक ही शिक्षक एक से अधिक कक्षाएं संभालने को मजबूर हैं। शिक्षक की कमी के कारण कई विद्यालयों में अलग-अलग कक्षाओं के बच्चों को एक ही जगह पढ़ाया जा रहा है। इससे शिक्षण की गुणवत्ता प्रभावित होती हैै। अभिभावक सुखदेवसिंह का कहना है कि शिक्षक न होने के कारण बच्चों का स्कूल जाने का मन नहीं होता। जब पढ़ाने वाला ही नहीं होगा तो बच्चा क्या सीखेगा ?

यह है स्थिति

-भणियाणा ब्लॉक में कुल 253 स्वीकृत पदों में से 153 पर ही शिक्षक कार्यरत हैं और 100 पद खाली हैं।

-फतेहगढ़ में 292 स्वीकृत पदों में से 185 कार्यरत हैं, जबकि 107 पद रिक्त हैं।

-जैसलमेर ब्लॉक में 266 स्वीकृत पदों के मुकाबले 202 शिक्षक काम कर रहे हैं और 64 पद खाली हैं।

-मोहनगढ़ ब्लॉक में 130 स्वीकृत पदों में से 83 भरे हैं, 47 खाली हैं।

-नाचना में 72 स्वीकृत पदों के मुकाबले 34 ही भरे हैं और 38 खाली हैं।

-पोकरण ब्लॉक में 280 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से 187 कार्यरत और 93 रिक्त हैं।

-सम ब्लॉक में 335 पदों में से 212 भरे और 123 रिक्त हैं।

हकीकत: बच्चों की नींव पर असर

सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एसके व्यास बताते हैं कि उच्च प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षक की कमी बच्चों की शैक्षणिक नींव को कमजोर कर देती है। यही वह उम्र होती है, जब बच्चे बुनियादी सोच-विचार की क्षमता विकसित करते हैं। यदि इस स्तर पर शिक्षा अधूरी रह जाती है, तो आगे की पढ़ाई में बच्चों को मुश्किलें झेलनी पड़ती हैं।

समाधान भी संभव

— दूरस्थ इलाकों में सेवा देने वाले शिक्षकों को अतिरिक्त भत्ता और सुविधा दी जाए।

—आधुनिक शिक्षण पद्धतियों का प्रशिक्षण अनिवार्य किया जाए।

-ब्लॉक स्तर पर स्थानीय उम्मीदवारों की भर्ती से पद रिक्त रहने की संभावना घटेगी।