
गत 14 अक्टूबर को जैसलमेर से जोधपुर जा रही निजी बस के थईयात के पास आग की चपेट में आने से 28 जनों की मौत हुई थी। यह हादसा पूरे देश में शोक का विषय बना। इसके बाद 24 अक्टूबर को हैदराबाद से बेंगलुरु जा रही बस में लगी आग में 20 से अधिक यात्री जिंदा जल गए। वहीं सोमवार को जयपुर में भी बस में करंट लगने से आग भडक़ उठी और दो यात्रियों की मौत हो गई। इन लगातार हादसों के बावजूद निजी बसों की स्थिति में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ है। पत्रिका की टीम ने जैसलमेर और पोकरण में निजी बसों की जांच की, तो लापरवाही के कई उदाहरण सामने आए। जैसलमेर के एयरफोर्स मार्ग स्थित निजी बस स्टैंड पर कुछ बसों में सुधार जरूर दिखा, लेकिन सुरक्षा इंतजाम अब भी अधूरे हैं। सीमावर्ती क्षेत्र में स्लीपर व एसी बसों की संख्या अधिक है। कुछ बसों में अग्निशमन यंत्र लगे हैं, लेकिन कई में यह अभी तक नहीं लगाए गए हैं हैं। प्राथमिक उपचार की कोई सुविधा नहीं है। अधिकांश एसी बसें पूरी तरह बंद रहती हैं, जिनमें केवल आगे मुख्य द्वार और पीछे आपातकालीन द्वार होता है। नियम के अनुसार हर खिडक़ी पर हैमर होना चाहिए, पर किसी बस में नहीं मिला।
स्लीपर बसों में क्षमता से अधिक सवारियां भरी जा रही हैं। सिंगल स्लीपर में चार तो डबल में छह से सात यात्री बैठाए जाते हैं। इससे बसों में घुटन भरी स्थिति बन जाती है। कई यात्रियों ने बताया कि सफर के दौरान उल्टी, मतली और मोशन सिकनेस जैसी समस्या आम हो गई है।
नियमों के अनुसार बसों में सीमित सामान ही ले जाया जा सकता है, लेकिन हकीकत अलग है। जैसलमेर से अहमदाबाद, सूरत, पुणे और मुंबई जाने वाली बसों में लगेज का अंबार रहता है। डिग्गी, सीटों और छत तक पर सामान लदा होता है। ग्रामीण रूटों की बसों में तो सब्जी, दूध और अन्य सामान भरे रहते हैं, जिससे यात्रियों को बैठने की भी जगह नहीं मिलती।
जैसलमेर के एयरफोर्स मार्ग पर निजी बस स्टैंड के आसपास आम रास्ता बसों से घिरा है, जिससे मार्ग संकरा हो गया है और हादसे का खतरा बना रहता है। यात्रियों के लिए पानी, शौचालय, बैठने और छाया की सुविधा नहीं है। पोकरण में जोधपुर रोड स्थित केन्द्रीय बस स्टैंड और रावणा राजपूत समाज की भूमि पर बने निजी स्टैंड में भी यही हाल है। सीसीटीवी कैमरे नहीं हैं, विश्राम गृह जीर्ण-शीर्ण स्थिति में है और यात्रियों को दुकानों व होटलों की छाया का सहारा लेना पड़ता है।
लगातार हो रहे हादसों से यात्री डरे हुए हैं, लेकिन रोडवेज की बसें कम चलने के कारण मजबूरी में निजी बसों का ही सहारा लेना पड़ रहा है। यात्री सूर्या विश्नोई का कहना है कि क्षमता से अधिक सवारियां भरी जाती हैं, बसों में हैमर या अग्निशमन यंत्र नहीं होते। यात्री मनोहरसिंह ने बताया कि ग्रामीण इलाकों से चलने वाली बसों में लगेज इतना भरा रहता है कि यात्रियों को पैर रखने तक की जगह नहीं मिलती पत्रिका स्टिंग में यह भी नजर आया कि हालिया हादसों के बावजूद बस संचालक और जिम्मेदार विभाग लापरवाही से बाज नहीं आ रहे हैं। यात्री अमोलखदास सोलंकी ने बताया कि जब तक सख्त कार्रवाई और नियमित जांच नहीं होगी, यात्रियों की जान यूं ही जोखिम में पड़ती रहेगी।
Published on:
28 Oct 2025 11:14 pm
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