Independence Day 2025 Special Story: अन्याय के विरुद्ध खड़ा होने वाला व्यक्ति ही आने वाली पीढ़ियों के लिए मिसाल बनता है। ऐसे बलिदानी सपूत बार-बार जन्म नहीं लेते। जैसलमेर के सागरमल गोपा ऐसे ही क्रांतिकारी थे।
सागरमल गोपा ने अन्याय के खिलाफ कलम और संघर्ष दोनों से लड़ाई लड़ी और स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अमर हो गए। शहीद सागरमल गोपा के भतीजे बालकृष्ण गोपा बताते हैं कि 3 नवंबर 1900 को एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में जन्मे सागरमल गोपा के पूर्वज जैसलमेर में राजगुरु के पद पर रहे थे और उनके पिता अखेराज भी रियासत में कार्यरत थे। सुख-सुविधाओं से भरे जीवन के बावजूद उनके मन को देशवासियों पर हो रहे अत्याचार ने विचलित कर दिया।
रियासत की आजादी के प्रति उदासीनता और जनता पर हो रहे जुल्म ने उन्हें विद्रोह का रास्ता चुनने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने स्थानीय शासक के दमनकारी रवैये का खुला विरोध किया और रियासतों की अखिल भारतीय परिषद में भी हिस्सा लिया। लोगों में जागरूकता लाने के लिए उन्होंने लेखन को हथियार बनाया।
अक्टूबर 1938 में पिता के निधन के बाद वे घर लौटे। 25 मई 1941 को उन्हें बंदी बना लिया गया। इसके बाद उन्हें कभी रिहा नहीं किया गया। 4 अप्रेल 1946 को उनका निधन हो गया। उनकी स्मृति में 29 दिसंबर 1986 को भारत सरकार ने ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन ’ श्रेणी में डाक टिकट जारी किया और इंदिरा गांधी नहर की एक शाखा का नाम उनके नाम पर रखा गया।
"उनकी गतिविधियों से घबराकर जैसलमेर और हैदराबाद में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया।"
— बालकृष्ण (भतीजे)
Published on:
08 Aug 2025 11:48 am