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Anandpal Encounter: आनंदपाल सिंह एनकाउंटर प्रकरण में नया मोड़, कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, यहां जानें

न्यायालय ने कहा कि पुलिस का उद्देश्य एक आदतन अपराधी को पकड़ना था और यह स्पष्ट है कि मृतक की ओर से भी गोलीबारी हुई थी। इसलिए इस कार्रवाई को ड्यूटी से जुड़ा मानकर संवेदनशीलता से देखा जाना चाहिए था।

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Anandpal encounter case

आनंदपाल सिंह। फाइल फोटो- पत्रिका

जोधपुर। जिला सत्र न्यायालय, जोधपुर महानगर ने अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीबीआई मामलात) अदालत के उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें गैंगस्टर आनंदपाल सिंह एनकाउंटर प्रकरण में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करते हुए पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया था।

न्यायालय ने कहा कि अधीनस्थ अदालत ने वैज्ञानिक और फोरेंसिक साक्ष्यों को सही तरह से परखे बिना यह निष्कर्ष निकाल लिया कि यह नकली मुठभेड़ का मामला था, जबकि रिकॉर्ड में उपलब्ध साक्ष्य इसके विपरीत हैं। सत्र न्यायाधीश अजय शर्मा ने कहा कि सीबीआई ने विस्तृत जांच कर रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें यह पाया गया कि घटना वास्तविक मुठभेड़ थी। जांच में घटनास्थल से 32 एके-47 राइफल की गोलियों के खोल मिले थे।

बयान में गंभीर विरोधाभास

कोर्ट ने कहा कि मृतक के पास से हथियार बरामद हुए और कमांडो सोहन सिंह के शरीर से निकली गोली का मिलान भी एके-47 की गोली से हुआ। इन तथ्यों को अनदेखा करते हुए अधीनस्थ अदालत ने आदेश पारित किया, वो तथ्य और कानून दोनों के लिहाज से गलत था। न्यायालय ने यह भी कहा कि अधीनस्थ अदालत ने गवाह रूपेन्द्र पाल के बदले हुए बयान पर भरोसा कर लिया, जबकि सीबीआई के सामने 2018 में और अदालत में 2023 में दिए गए उसके बयान में गंभीर विरोधाभास था।

दोषी ठहराना उचित नहीं

छह साल बाद अचानक खुद को प्रत्यक्षदर्शी बताना स्वाभाविक नहीं माना जा सकता। जब वैज्ञानिक रिपोर्ट और बैलिस्टिक विश्लेषण किसी निष्कर्ष की पुष्टि नहीं करते तो केवल मौखिक बयान के आधार पर किसी पुलिस अधिकारी को दोषी ठहराना उचित नहीं है। सत्र न्यायालय ने आदेश में यह भी कहा कि जब कोई सरकारी अधिकारी अपने कर्तव्य के दौरान कार्रवाई करता है और वह कार्रवाई सीधे उसकी ड्यूटी से जुड़ी होती है तो ऐसे मामलों में अभियोजन की अनुमति आवश्यक होती है।

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इस घटना में पुलिस टीम का उद्देश्य एक आदतन अपराधी को पकड़ना था और यह स्पष्ट है कि मृतक की ओर से भी गोलीबारी हुई थी। इसलिए इस कार्रवाई को ड्यूटी से जुड़ा मानकर संवेदनशीलता से देखा जाना चाहिए था। न्यायालय ने कहा कि अधीनस्थ अदालत ने केवल कुछ बिंदुओं के आधार पर सतही रूप से क्लोजर रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया, जो न्यायसंगत नहीं था। इसलिए 24 जुलाई 2024 का आदेश रद्द कर दिया।