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Rajasthan : राजस्थान के थार में तेजी से लुप्त हो रही है चूहों की प्रजातियां, चौंकाने वाली है वजह

Rajasthan : राजस्थान के थार से चौंकाने वाली खबर। थार में तेजी से लुप्त हो रही चूहों की प्रजातियां। चौंकाने वाली है वजह, जानें।

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Rajasthan Rat species are rapidly disappearing in Thar reason is shocking

थार में लुप्त होते चूहे। फोटो - AI

Rajasthan : थार मरुस्थल के पारिस्थितिकी संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले छोटे स्तनधारी जिरबिल, जिर्ड और फील्ड माउस तेजी से खत्म होने लगे है। इसका प्रमुख सिंचाई, कृषि विस्तार, सिंचाई परियोजनाएं और कीटनाशकों के बढ़ते प्रयोग और भूमि उपयोग में बदलाव ने इन जीवों के प्राकृतिक आवासों को प्रभावित किया है।

पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार पिछले कुछ दशकों से लगातार बदलती भूमि-स्थितियां और मानव हस्तक्षेप इनके अस्तित्व पर नया दबाव बनाने से परपरागत खाद्य श्रृंखला गड़बड़ा चुकी है।

थार की प्रमुख प्रजातियां

भारतीय मरुस्थली जिर्ड, भारतीय जेरबिल (एंटीलोप रैट), हेयरीफुटेड जेरबिल, शॉर्ट-टेल्ड बैंडिकूट रैट तथा लिटिल इंडियन फील्ड माउस।

प्रमुख खतरे

1- सिंचाई और कृषि विस्तार से रेतीले आवासों का ह्रास।
2- भूमि परिवर्तन से परपरागत बिलों का नष्ट होना।
3- कीटनाशक और रोडेन्ट-कंट्रोल उपायों से प्रत्यक्ष हानि।
4- फसल-पैटर्न बदलाव से खाद्य उपलब्धता प्रभावित।

मुख्य प्रवृत्तियां और खतरे

1- जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर क्षेत्र के मरुस्थल में सिंचाई, कृषि विस्तार और फसल-पैटर्न में बदलाव के कारण ‘खुले रेतीले मैदान’ तेजी से कम हो रहे हैं।
2- रेतीले टीलों और विशिष्ट आवासों में रहने वाली प्रजातियां प्रभावित हो रही हैं। कृषि में कीटनाशकों और चूहा-नियंत्रक दवाओं का उपयोग बढ़ने से छोटे स्तनधारियों पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के प्रभाव पड़ रहे हैं।
3- यदि कीट-प्रजातियों की संया घटती है, तो कीट-भक्षी स्तनधारियों जैसे हेजहॉग, जिरबिल आदि के लिए भोजन-स्रोत भी सिकुड़ सकता है।

समन्वित नीति की जरूरत

थार का पारिस्थितिक संतुलन केवल टीलों और पौधों पर नहीं, बल्कि इन छोटे लेकिन महत्वपूर्ण स्तनधारियों पर भी निर्भर है, जो मरुस्थल की जैव विविधता की असली पहचान हैं। भूमि-उपयोग परिवर्तन, सिंचाई विस्तार और प्राकृतिक शुष्कता में कमी जैसी परिस्थितियों के कारण इन प्रजातियों की उपस्थिति में बदलाव आ सकता है। कृषि व पर्यावरण विभागों में समन्वित नीति बनाने की जरूरत है।
डॉ. दाऊलाल बोहरा, पर्यावरणविद् एवं पक्षी विशेषज्ञ