वो पिछले ढाई दशक से मुम्बई में रहते हैं। जिनकी आत्मा कवि व लेखक की है और शरीर अभिनय का है। वह आज भी जोधपुर सिर्फ अपने दोस्तों के साथ भोजन करने और उनके साथ गप्पें लगाने आते हैं। यह है शैलेश लोढ़ा। इस बार स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने लोढ़ा जोधपुर आए तो पत्रिका ने उनसे कई विषयों पर बातचीत की और उन्होंने भी बेबाक होकर ट्रम्प टेरिफ, जोधपुर अपणायत, वेब सीरिज और तारक मेहता शो छोड़ने जैसे कई मुद्दों पर खुलकर बातचीत की। उनसे हुई बातचीत के प्रमुख अंश…।
सवाल - बॉलीवुड साउथ की कॉपी कर रहा है, क्या ऑरिजिनल कंटेंट में पिछड़े हैं।
जवाब - दर्शक को सिनेमा से क्या चाहिए, जब वह टिकट खरीद कर जाता है तो उसे कोई सरोकार नहीं कि कंटेंट कॉपी है या साउथ का है, उसे मनोरंजन चाहिए। ज्ञान व शिक्षा बाय प्रोडक्ट है। सिनेमा का मूल काम मनोरंजन है। बात यह है कि जहां से कॉपी करते हैं तो उसे क्रेडिट देना चाहिए।
सवाल - क्या वेब सीरिज से सिनेमा या टीवी को खतरा है?
जवाब - मनोरंजन अपना स्वरूप बदलता है, लॉर्न्ग टर्म में नुकसान जरूर है। पहले दंगल, कव्वाली, नौटकियां होती थी, लेकिन वह धीरे-धीरे बदला। यह ओटीटी व यूट्यूब इंसान का समय खत्म कर रहे हैं। हर आदमी फोन पर ही कंटेंट कंज्यूम कर रहा है। ग्राहक नहीं है तो दुकानदार, सफर करते हुए यात्री भी कंटेंट कंज्यूम कर रहा है। यदि उस समय हम कंटेंट नहीं देख रहे होते तो किसी से बात कर रहे होते, कुछ सोच रहे होते और लोगों से मिल रहे होते, मतलब समाज खत्म कर दिया है।
सवाल - तारक मेहता शो छोड़ने का गम है?
जवाब - बिलकुल नहीं, मैंने एक सेकंड भी नहीं लगाया, ऐसा काम करना ही क्यों कि बाद में दुख हों। मैं इतना बड़ा नहीं कि मुझे लोग मिस करें, लेकिन जो मेरे पास मैसेज आते हैं उससे पता चलता है कि मिस करते हैं। आत्मसम्मान बड़ी चीज है।
इसी पर कुछ पंक्तियां हैं ‘आप कहते हैं कि क्या हमारे जज्बात में रखा है, हां कुछ नहीं हमारे ख्यालात में रखा है, और कुछ रखा हो न रखा हो, हमनें लाखों लोगों को अपनी औकात में रखा है।’ अभी बहुत ऑफर आते हैं, एक बड़े शो का ऑफर आया, लेकिन मैं वह कर नहीं पाउंगा। भाग्यशाली अभिनेताओं में से हूं जिन्होंने अलग-अलग सीरियल के पांच हजार एपिसोड किए हैं।
सवाल - क्या समय के साथ हिंदी भाषाओं का ह्रास हुआ?
जवाब - कविता मेरी आत्मा है, अभिनय मेरा शरीर। बाल कवि बैरागी, अशोक चक्रधर की कई कृतियां अच्छी लगती है। भाषा का ह्रास नहीं हुआ, समय बदला है। यह सामयिक होती है, मेरी खुद ही भाषा जब में 13 वर्ष का था तो अलग थी, आज में खुद लिखता हूं सच सच बताना यार मिस करते हो कि नहीं…। गंभीरता की परिभाषा समाज ने कुछ ऐसी गढ़ी कि जो लोग मुस्कुराते नहीं है और जो चुप रहते हैं वह गंभीर है।
सवाल - अब जो स्टैंप अप कॉमेडी का स्तर गिरा है, उसके बारे में क्या कहेंगे
जवाब - इनके बारे में न ही बात करें तो बेहतर है। इस पर मेरी कुछ पंक्तियां हैं कि भाषाएं निर्धन हुई, गाली हुई अमीर, यह कैसा समय आ गया, सोच रहे कबीर।
सवाल - अमरीका लगातार आंख दिखा रहा और टैरिफ की धमकी दे रहा, क्या इससे हमारा रोजगार छिनेगा?
जवाब - भारत ने एक राष्ट्र के तौर पर अच्छा काम किया है, हम दबाव में नहीं आए। 140 करोड़ लोगों देश है, हम बड़ा बाजार है। यह आपदा में अवसर है और हम नई शक्ति बन कर उभरेंगे। कैसे ट्रम्प कह सकता है डेड है, हम चौथी बसे बड़ी इकोनॉमी है। ईश्वर जब एक दरवाजा बंद करता है तो दूसरा खोल देता है। यहां के उद्यमी है नए रास्ते खोल देंगे।
सवाल - क्या पिछले कुछ सालों में हमारी संस्कृति में बदलाव आया है क्या ?
जवाब - हमारी शहर की गलियों में पहले सुकून और शांति थी, अब व्यावसायी करण काफी हो गया है। विकास यदि प्लानिंग से हुआ है तो ठीक, लेकिन वह झाड़ की तरह रहा है तो विकास नहीं। बचपन के जोधपुर को बहुत मिस करते हैंं। पहले हम दोस्त और रिश्ते बनाते थे, अब लोग सिर्फ कॉन्टेक्ट बनाते हैं। मैं आज भी जोधपुर सिर्फ अपने दोस्तों से मिलने आता हूं।
सवाल - एआइ अपणायत जो चल रही है वह काफी हद तक नुकसान पहुंचाएगी?
जवाब - एआइ के पास भावनाओं का कोई विकल्प नहीं। एआइ का स्वरूप बना सकता है, लेकिन उसमें ममता नहीं डाल सकता। हम तकनीक के गुलाम होकर रह गए। पहले जब सहजता थी, सादगी थी, बंदगी थी, यह वाटस्एप, फेसबुक व इंस्टाग्राम नहीं थे तो जिंदगी थे। एआइ कैसे हमारे मिर्ची बड़े व मावे की कचौरी का स्वाद बता पाएगा।
Updated on:
18 Aug 2025 10:16 pm
Published on:
18 Aug 2025 10:13 pm