
'स्त्री: देह से आगे' संवाद कार्यक्रम में बोलते पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी (फोटो-पत्रिका)
जोधपुर। पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने कहा कि समाज और राष्ट्र की असली शुरुआत मां के गर्भ से होती है। घर में नए जीवन की पहली आहट मां ही महसूस करती है। वही उसे स्वीकार करती है, प्रार्थना करती है और यह भी समझ जाती है कि कौन-सी चेतना उसके भीतर प्रवेश कर रही है। किसी भी योनि से आया जीव मां के गर्भ में मानव रूप ग्रहण करता है। जन्म लेने वाला बच्चा कैसा इंसान बनेगा, इसका आधार मां ही अपने गर्भ में तैयार करती है। ऐसे में समाज के लिए एक संवेदनशील, संस्कारी और जागरूक नागरिक का निर्माण भी मां की ही देन है।
व्यास कैंपस स्थित मधुरम ऑडिटोरियम में शुक्रवार को आयोजित 'स्त्री: देह से आगे' संवाद कार्यक्रम में कोठारी ने भारतीय ज्ञान परंपरा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और सांस्कृतिक आधार पर नारी का विस्तृत विश्लेषण किया। महिलाओं और छात्राओं से खचाखच ऑडिटोरियम में उन्होंने कहा कि जैसे मिट्टी का घड़ा एक बार आकार ले ले तो उसके मूल रूप में बदलाव संभव नहीं होता, उसी तरह मां गर्भस्थ शिशु के संस्कार और व्यक्तित्व की नींव तय करती है। बाद में समाज केवल परिस्थितियों का रंग भरता है, लेकिन मूल आकार मां ही देती है।
उन्होंने कहा कि नारी अपने गर्भस्थ शिशु में न केवल अपने माता-पिता के संस्कारों को ढालती है, बल्कि ससुराल से प्राप्त सीख को भी उसमें पोषित करती है। इसीलिए गर्भ में पल रहा शिशु केवल व्यक्ति नहीं, बल्कि भविष्य का समाज और देश होता है। योग्य, सजग और संवेदनशील मानव निर्माण का बीज सबसे पहले मां के भीतर ही अंकुरित होता है। कार्यक्रम में व्यास ग्रुप के चेयरमैन मनीष व्यास ने भी नारी शक्ति की महत्ता पर अपने विचार साझा किए।
गुलाब कोठारी ने कहा कि मां केवल 9 महीने में जीवात्मा को सुसंस्कारित कर इंसान के रूप में ढाल देती है, जबकि डॉक्टर या इंजीनियर बनने में पांच से छह साल का समय लगता है। यह नारी की अद्भुत क्षमता और सृजन-शक्ति का प्रमाण है।
उन्होंने कहा कि मां का स्वरूप त्याग और करुणा का है। उसे केवल देना आता है। घर में जब सब लोग भोजन कर लेते हैं, तब मां अंत में बचा हुआ भोजन खाती है। देने की यह शक्ति नारी की दिव्यता से जुड़ी है, जो पुरुष के अहंकार में संभव नहीं है।
कोठारी ने कहा कि देवियों के 10-12 हाथ इसलिए दर्शाए जाते हैं क्योंकि नारी के हाथों में सृजन, पोषण, रक्षा और परिवर्तन- सभी शक्तियां निहित हैं। उनके पास अनेक भूमिकाओं को संतुलित करने की क्षमता है। इसी कारण देश में हर गांव में देवी का मंदिर मिलता है और नवरात्र में नौ दिन तक उनकी पूजा होती है।
कोठारी ने महिलाओं को कन्यादान का अर्थ समझाते हुए कहा कि पिता अपने पुत्र को पहले ही बीज के रूप में अपना हिस्सा दे चुका होता है। यही हिस्सा आगे पौत्र को भी मिलता है, लेकिन पुत्री को कुछ नहीं दिया जाता। विवाह के समय कन्यादान के माध्यम से पिता अपने पास बचा हुआ हिस्सा बेटी के साथ ससुराल ट्रांसफर करता है। विवाह में दो आत्मा और दो ऊर्जा एकरूप होती हैं, इसलिए वैदिक मंत्रों द्वारा यह मिलन पवित्र किया जाता है।
Updated on:
21 Nov 2025 07:36 pm
Published on:
21 Nov 2025 07:28 pm
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