अभिषेक गुप्ता
kota. वैश्विक पहचान बनाने वाले कोटा डोरिया की बुनाई और निर्माण की कमान अब नारी शक्ति के हाथों में आ गई है। जहां पहले इस पुश्तैनी काम में पुरुषों की अहम भूमिका होती थी, वहीं अब कम मजदूरी और सीमित आय के कारण युवा पीढ़ी बुनाई छोड़कर मार्केटिंग या अन्य रोजगार की ओर बढ़ रही है। कोटा डोरिया के विभिन्न परिधानों की बुनाई अब ज्यादातर महिलाएं कर रही हैं। शिक्षा के प्रति बढ़ती जागरूकता और नए अवसरों ने महिलाओं को परंपरागत तौर-तरीकों से आगे बढ़कर इस क्षेत्र में नए आयाम स्थापित करने का मौका दिया है। हालांकि, जीआई टैग और वैश्विक पहचान के बावजूद कोटा डोरिया का व्यवसाय सरकारी स्तर पर अपेक्षित प्रोत्साहन न मिलने से सीमित होता जा रहा है।
सुविधाओं के अभाव में बुनकरों को उचित लाभ नहीं मिल पा रहा है। स्थिति यह है कि हर साल करोड़ों रुपए की नकली कोटा डोरिया साड़ियां बाजार में बिक रही हैं, जिससे असली बुनकरों की आमदनी पर सीधा असर पड़ता है। राज्य सरकार ने कोटा डोरिया को प्रोत्साहन देने के लिए इसे ‘पंच गौरव उत्पाद’ में शामिल किया है, लेकिन बुनकरों का कहना है कि अगर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो इस पारंपरिक कला से नई पीढ़ी का रुझान पूरी तरह खत्म हो सकता है।
केंद्र से जुड़ रहे बुनकर
कोटा डोरिया सामान्य सुविधा केंद्र के कॉर्डिनेटर यूसुफ हुसैन ने बताया कि केंद्र पर छह लूम संचालित हो रहे हैं, जहां कोटा डोरिया साड़ी की बुनाई होती है। इस पेशे में करीब 80 प्रतिशत महिलाएं और 20 प्रतिशत पुरुष जुड़े हुए हैं। युवाओं का रूझान अब ऑनलाइन मार्केटिंग की तरफ बढ़ रहा है। कैथून में 10 हजार से अधिक परिवार इस पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़े हैं और लगभग हर घर में साड़ी बुनने का काम होता है। केंद्र का संचालन ‘कोटा वुमन रिवरऑर्गनाइजेशन’ करती है, जबकि नेशनल हैंडलूम कॉरपोरेशन और विवर्स सर्विस सेंटर, जयपुर यहां विभिन्न योजनाएं चलाते हैं। हुसैन ने बताया कि बदलते दौर में कोटा डोरिया साड़ियों की डिजाइन और लुक अब पूरी तरह ट्रेडिशनल हो गया है। केंद्र से जुड़े 700 बुनकर ई-पहचान कार्ड के लिए आवेदन कर चुके हैं, जिनमें से करीब 500 बुनकरों के कार्ड स्वीकृत भी हो चुके हैं।
डिजाइन का पैटर्न बदला
कोटा डोरिया सामान्य सुविधा केंद्र पर कार्यरत फरीद बताते है कि यहां कोटा डोरिया साड़ी, पंजाबी सूट, बेडशीट, पर्दे, तकिया, टेबल पोस में प्रिंट डिजाइन का कार्य होता है। पहले यह कार्य तेजाब, नाइट्रेट व कॉस्टिक डालकर प्रिंट का कार्य होता था। इससे शरीर को नुकसान भी पहुंचता था, लेकिन पाउडर का उपयोग किया जाने लगा है। जिससे पहनने वालों को नुकसान नहीं होता है।
दो माह में तैयार होती साड़ी
कैथून निवासी 31 वर्षीय बुनकर अफसाना बानो सातवीं तक पढ़ी हैं और बचपन से ही माता-पिता से बुनाई का हुनर सीख चुकी हैं। घर का काम निपटाने के बाद वे कोटा डोरिया साड़ियों की बुनाई में जुट जाती हैं। अफसाना बताती हैं कि डिजाइन के हिसाब से मजदूरी तय होती है, जितनी सुंदर और बारीक डिजाइन, उतनी अधिक मजदूरी। नई डिजाइन की एक साड़ी तैयार करने में करीब दो माह लग जाता है, जिससे घर का खर्च निकल आता है। वे अपनी बेटी मिसबा को भी यह हुनर सीखा रही हैं, ताकि भविष्य में वह भी इस कार्य को कर सके।
ऐसे तैयार होती है बुनकर साड़ी
इफ्ते सामजिया पिछले 12 साल से साड़ी बुनने के काम से जुड़ी हैं। 11वीं तक पढ़ी सामजिया कहती हैं कि यह उनका पुश्तैनी पेशा है, जिसे उन्होंने माता-पिता को देखकर सीखा। वे बताती हैं कि कोटा डोरिया साड़ियों में बॉर्डर जरी और गोल्डन तार से बनाया जाता है तथा कपड़े के रूप में कॉटन का इस्तेमाल होता है। एक साधारण साड़ी तैयार करने में 8 से 10 दिन लगते हैं, जबकि जाल डिजाइन वाली साड़ी में 15 दिन और भारी वर्क वाली साड़ी को तैयार करने में लगभग 2 माह का समय लगता है। इसमें डिजाइन के हिसाब से अलग-अलग मजदूरी मिलती है। नकली कोटा डोरिया पर रोक लगाने के लिए 1999-2000 मे केन्द्रीय कानून भौगोलिक चिह्नितकरण अधिनियम के अन्तर्गत कोटा डोरिया का पेंटेट करवाया गया था। इस कानून के हत कोट डोरिया में नकी उत्पाद बेचना अपराध है। इसके बावजूद नकली कोटा डोरिया बेचा जाता है।
फैक्ट फाइल: कोटा डोरिया
5000 हैण्डलूम चल रहे हाड़ौती अंचल में
10000 बुनकर जुड़े हैं इस काम में
800 साड़ी लगभग प्रतिदिन तैयार होती है कैथून में
80 प्रतिशत काम महिला बुनकर करती है
90 प्रतिशत कोटा डोरिया का निर्यात हो रहा साउथ में
10 दिन औसत समय में एक साड़ी तैयार होती है हैण्डलूम से
Updated on:
07 Aug 2025 01:08 pm
Published on:
07 Aug 2025 01:01 pm