Mathuradheesh Mandir Kota History: कोटा को आमतौर पर शिक्षा नगरी, औद्योगिक शहर और चंबल की नगरी के नाम से जाना जाता है लेकिन धार्मिक दृष्टिकोण से यह शहर कृष्ण भक्ति का एक बड़ा केंद्र भी है। शहर के पाटनपोल क्षेत्र में स्थित मथुराधीश जी मंदिर को वल्लभ संप्रदाय की प्रथम पीठ माना जाता है और इसे श्रद्धालुओं द्वारा अत्यंत पूजनीय माना जाता है।
कहा जाता है कि मथुराधीश जी का प्राकट्य मथुरा जिले के गोकुल स्थित करनावल गांव में श्रीमद् वल्लभाचार्य जी के समक्ष हुआ था। बाद में कई ऐतिहासिक परिस्थितियों के कारण यह विग्रह बूंदी लाया गया और वहां लगभग 60 वर्षों तक पूजा होती रही।
सन् 1737 में कोटा के तत्कालीन मंत्री द्वारकाप्रसाद भटनागर ने अपनी हवेली ठाकुरजी को समर्पित कर दी जहां इन्हें पधराया गया। इसके बाद कोटा के महाराव दुर्जनसाल ने इस क्षेत्र का नाम 'नंदग्राम' रखा। 1953 में एक मनोरथ के लिए विग्रह को बृज ले जाया गया लेकिन 1975 में वापस कोटा लाया गया और यहीं से सेवा पुनः शुरू हुई। वल्लभ संप्रदाय की परंपराओं के अनुसार यहां ठाकुरजी की सेवा बाल स्वरूप में होती है। जन्माष्टमी से पहले 15 दिन तक बधाई गायन, छठी पूजन, नंदोत्सव जैसे आयोजन होते हैं। यहां दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु आते हैं।
अब कोटा के इस ऐतिहासिक मंदिर को चंबल रिवरफ्रंट से जोड़ने के लिए मथुराधीश कॉरिडोर की योजना पर काम चल रहा है। यह परियोजना तीन चरणों में पूरी होगी, जिस पर लगभग 125 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इसमें मल्टीलेवल पार्किंग, 40 फीट चौड़ी सड़क, हेरिटेज विकास और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं विकसित की जाएंगी।
Published on:
16 Aug 2025 08:35 am