
लखनऊ में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का संबोधन: परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, सत्य वही है कि हम बने रहते हैं (फोटो सोर्स : Information Department )
RSS chief Mohan Bhagwat: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को लखनऊ में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में धर्म, अध्यात्म, कर्तव्य और जीवन के मूल सत्यों पर आधारित गहन विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि “अर्थ और काम की कोई कमी नहीं होती, लेकिन धर्म का पालन करने वाला हजारों वर्षों तक जीवित रहता है।” भागवत का संबोधन श्रोताओं से जुड़ा, जिसमें उन्होंने अध्यात्म और कर्तव्य के कई उदाहरणों के माध्यम से जीवन के गहरे सत्य समझाए।
भागवत ने कहा कि युगों-युगों से धर्म ग्रंथों से जो ज्ञान स्थिर हुआ है, उसका सार श्रीमद्भगवद्गीता में निहित है। उन्होंने महाभारत के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए अर्जुन के भ्रम, मोह और कर्तव्यबोध को आज के संदर्भों से जोड़ते हुए कहा कि “अर्जुन जैसा प्रखर और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला व्यक्ति भी जब मोहग्रस्त हो सकता है, तब हम जैसे सामान्य मनुष्य का भ्रमित होना स्वाभाविक है। इसलिए गीता का उपदेश केवल एक योद्धा के लिए नहीं, बल्कि पूरे मानव समाज के लिए है।”
मोहन भागवत ने कहा कि अर्जुन जैसा योद्धा,जो जीवन में बड़े से बड़े निर्णय बिना विचलित हुए लेता रहा,जब अपने ही परिजनों के विरुद्ध युद्ध भूमि में खड़ा हुआ, तो वह मोह में पड़ गया। उसी समय श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेश मानव जाति का मार्गदर्शन करने वाले बन गए। उन्होंने कहा कि अर्जुन आसानी से मोहग्रस्त होने वाला व्यक्ति नहीं था। लेकिन जब वह डगमगाया, तब गीता का ज्ञान दिया गया। यह बताता है कि जीवन में परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन हों, धैर्य और कर्तव्य को नहीं छोड़ना चाहिए। भागवत ने बताया कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि सृष्टि किसने बनाई है और किसने इसे समेटना है, यह चिंता तुम्हारी नहीं है। तुम्हारा कर्तव्य युद्ध करना है। भागवत ने इसे जीवन का बड़ा संदेश बताते हुए कहा कि व्यक्ति को अपनी जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए।
संबोधन के दौरान भागवत ने राजा जनक की प्रसिद्ध कथा सुनाई और कहा कि यह प्रसंग दिखाता है कि दुनिया की परिस्थितियाँ क्षणभंगुर हैं। उन्होंने विस्तार से कहा कि राजा जनक एक बार जंगल में भूखे-प्यासे भटक रहे थे। उन्हें कहीं थोड़ा चावल मिला, लेकिन तभी एक चील आकर उसे भी लेकर उड़ गई। इस पर राजा के मुंह से चीख निकल गई और उनकी नींद खुल गई। जब नौकर-चाकर दौड़कर आए और पूछा कि क्या हुआ, तब राजा ने बताया कि सपना इतना वास्तविक था कि उसने उसे सच महसूस किया।
भागवत ने कहा कि कोई यह नहीं बता पा रहा था कि कौन-सा अनुभव वास्तविक है,सपना या वर्तमान। तब महर्षि याज्ञवल्क्य ने कहा कि उस समय सपना भी सच था, यह वर्तमान भी सच है और कुछ समय बाद यह भी सच नहीं रहेगा। परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, लेकिन सत्य यह है कि हम बने रहते हैं। उन्होंने समझाया कि दुनिया में हर अनुभव बदलता रहता है, लेकिन आत्मा और चेतना शाश्वत हैं।
मोहन भागवत ने अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद का उदाहरण देते हुए कहा कि कई बार व्यक्ति कठिन परिस्थितियों से बचने के लिए भागना चाहता है। उन्होंने कहा कि अर्जुन ने कहा कि युद्ध करूंगा तो हानि होगी, सृष्टि को नुकसान होगा। इस पर कृष्ण ने कहा,तुम भाग रहे हो। सृष्टि का निर्माण करने वाला और उसे समेटने वाला परमात्मा है। तुम्हारे हिस्से का काम केवल अपना कर्तव्य निभाना है। भागवत ने कहा कि यह संदेश हर युग में प्रासंगिक है। जब समस्याएं सामने आए, तब व्यक्ति को दाएं-बाएं देखने के बजाय समस्या से सीधा सामना करना चाहिए। उन्होंने कहा कि परेशानी से आँख मिलाकर रखो। उससे मुंह मत मोड़ो।
मोहन भागवत ने कहा कि मनुष्य के जीवन में अर्थ, काम और भौतिक उपलब्धियों की कमी नहीं है। लेकिन जीवन को स्थिर, संतुलित और दीर्घ बनाता है धर्म। उन्होंने कहा कि धर्म वह आधार है जिस पर जीवन खड़ा होता है। अर्थ और काम क्षणिक सुख देते हैं, लेकिन धर्म का पालन जीवन को हजारों वर्षों तक जीवित रखने वाला तत्व है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्म का मतलब केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि वह व्यवस्था है जो समाज और जीवन को संतुलित बनाए रखती है।
आरएसएस प्रमुख ने गीता को केवल धार्मिक ग्रंथ न मानकर मानव जीवन का सार बताया। उन्होंने कहा कि गीता में मानव जीवन के सभी प्रश्नों का उत्तर है,कर्तव्य, ज्ञान, कर्म, भक्ति और आत्मबोध। यह केवल एक युद्ध का संवाद नहीं, बल्कि मानव मन के संघर्षों का समाधान है। भागवत ने कहा कि मनुष्य जब कर्तव्य, भय, मोह और संघर्षों में उलझ जाता है, तब गीता उसे सही दिशा देती है। उन्होंने कहा कि आज की दुनिया में जहां तनाव, प्रतिस्पर्धा और भ्रम बढ़ रहे हैं, वहां गीता की प्रासंगिकता और भी अधिक है।
संबोधन के अंतिम चरण में भागवत ने फिर कहा कि दुनिया की हर समस्या, परिस्थितियाँ और उतार-चढ़ाव अस्थायी हैं। उन्होंने कहा कि परिस्थितियाँ आती-जाती रहती हैं, लेकिन हम बने रहते हैं। स्थायी वही है जो भीतर है-हमारी चेतना, हमारा धर्म, हमारा सत्य। उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे भ्रम में न पड़ें, चुनौतियों से घबराएं नहीं और अपने कर्तव्य का पालन करते रहें।
अपने पूरे संबोधन में भागवत ने भारतीय दर्शन, सांस्कृतिक दृष्टि और आध्यात्मिक सिद्धांतों के माध्यम से जीवन के बड़े प्रश्नों पर गहरी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आत्मविश्वास, सत्य और कर्तव्य के मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कभी नहीं डगमगाता। उन्होंने कहा कि आज भारत विश्व में नई भूमिका निभा रहा है, इसलिए हर नागरिक को अपनी जिम्मेदारियों का बोध होना चाहिए।
Published on:
23 Nov 2025 11:10 pm
बड़ी खबरें
View Allलखनऊ
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
