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अज्ञान दुखों का मूल, आत्मबोध ही समाधान: विज्ञान देव महाराज

लखनऊ में आयोजित एक दिवसीय “जय स्वर्वेद कथा एवं ध्यान साधना सत्र” में संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने कहा कि अज्ञान सभी दुखों का मूल है और आत्मबोध ही इसका समाधान। उन्होंने विहंगम योग साधना के महत्व को बताते हुए मन पर नियंत्रण को शांति का एकमात्र मार्ग बताया।

लखनऊ

Ritesh Singh

Aug 08, 2025

Vijnan Dev Maharaj in Lucknow      फोटो सोर्स : Patrika 
Vijnan Dev Maharaj in Lucknow      फोटो सोर्स : Patrika 

अज्ञान ही सभी दुखों का मूल कारण है और आत्मबोध ही उसका एकमात्र समाधान।” यह गहन संदेश विहंगम योग संत समाज के संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने लखनऊ के डिप्लोमा इंजीनियर्स एसोसिएशन परिसर में आयोजित एक दिवसीय “जय स्वर्वेद कथा एवं ध्यान साधना सत्र” में हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए दिया।

महाराज ने कहा कि मानव जीवन की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि हम स्वयं को ही भूल जाते हैं, यही आत्मविस्मृति सभी कष्टों का मूल है। जब इंसान अपने असली स्वरूप को भूल जाता है, तो मन, इंद्रियों और इच्छाओं का नियंत्रण खो बैठता है, जिससे जीवन में अशांति और दुःख का विस्तार होता है।

मन पर नियंत्रण की आवश्यकता

विज्ञान देव महाराज ने कहा कि आज समाज में बढ़ रही विसंगतियों के पीछे सबसे बड़ा कारण है, मन पर नियंत्रण का अभाव। उन्होंने यूनेस्को की एक प्रस्तावना का हवाला देते हुए कहा, “युद्ध की प्राचीरें कुत्सित मन से निकलती हैं।” अर्थात्, जब मन में द्वेष, अहंकार और अशांति होती है, तभी संघर्ष और हिंसा का जन्म होता है। उन्होंने बताया कि ईश्वर ने मानव को असीम शक्तियों से युक्त अंतःकरण प्रदान किया है। लेकिन यह शक्ति तभी सार्थक होती है जब हम मन को साध लेते हैं। “यदि मन में अशांति होगी तो विश्व में शांति की कल्पना भी व्यर्थ है। इसलिए, आंतरिक शांति प्राप्त करने के लिए ध्यान-साधना आवश्यक है।”

विहंगम योग साधना का महत्व

महाराज ने श्रोताओं को विहंगम योग की साधना का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि यह साधना केवल मानसिक तनाव को दूर नहीं करती, बल्कि आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप का बोध कराती है। ध्यान की नियमित साधना से मन निर्मल होता है और व्यक्ति अपने भीतर बसे परमात्मा के साक्षात्कार की दिशा में अग्रसर होता है। प्रवचन के अंत में महाराज ने स्वयं उपस्थित श्रद्धालुओं को विहंगम योग साधना का अभ्यास कराया। उन्होंने “ॐ” मंत्र के महत्व पर विशेष जोर देते हुए कहा, “ॐ ब्रह्मांड की मूल ध्वनि है, जो सर्वत्र गुंजायमान है। प्रतिदिन इसका जप करने से मन-मस्तिष्क शुद्ध और शांत होता है।”

जय स्वर्वेद कथा में दोहों की संगीतमय प्रस्तुति

लगभग दो घंटे तक चली “जय स्वर्वेद कथा” में स्वर्वेद के दोहों की संगीतमय प्रस्तुति ने वातावरण को भक्ति और आध्यात्मिकता से भर दिया। मंत्रमुग्ध श्रोताओं ने पूरे समय ध्यान और भक्ति में स्वयं को डुबोए रखा।

संकल्प यात्रा का उद्देश्य

आयोजकों ने बताया कि यह कार्यक्रम “समर्पण दीप अध्यात्म महोत्सव” का एक हिस्सा है, जो विहंगम योग संत समाज के 102वें वार्षिकोत्सव एवं 25,000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है। संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने 29 जून 2025 को कश्मीर की धरती से “संकल्प यात्रा” का शुभारंभ किया था। यह यात्रा कश्मीर, जम्मू, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात और राजस्थान होते हुए अब उत्तर प्रदेश के लखनऊ पहुंची है।

स्वर्वेद महामंदिर में भव्य आयोजन

यात्रा का समापन 25 और 26 नवंबर 2025 को वाराणसी के स्वर्वेद महामंदिर परिसर में होने वाले भव्य 25,000 कुण्डीय स्वर्वेद ज्ञान महायज्ञ के साथ होगा। इस अवसर पर देशभर से लाखों साधक और श्रद्धालु एकत्र होंगे, जो ध्यान-साधना और आध्यात्मिक प्रवचनों का लाभ लेंगे। आयोजकों ने बताया कि इस संकल्प यात्रा का उद्देश्य है अधिक से अधिक लोगों को आध्यात्मिक साधना से जोड़ना, ताकि वे अपने जीवन में शांति, आनंद और आत्मबोध प्राप्त कर सकें।

श्रद्धालुओं का अनुभव

कार्यक्रम में शामिल श्रद्धालुओं ने कहा कि महाराज की वाणी ने उनके जीवन के प्रति दृष्टिकोण को बदल दिया है। कई लोगों ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि साधना के अभ्यास से मानसिक शांति और आत्मिक शक्ति की अनुभूति हुई है।

मुख्य संदेश

संत प्रवर विज्ञान देव महाराज ने अपने प्रवचन में स्पष्ट किया कि अज्ञान ही सभी दुःखों का मूल है। आत्मबोध से ही जीवन में स्थायी शांति संभव है। मन पर नियंत्रण, ध्यान-साधना और ईश्वर के नाम का नियमित स्मरण ही मुक्ति का मार्ग है। यह कार्यक्रम न केवल एक आध्यात्मिक आयोजन था, बल्कि जीवन को सार्थक और सुखद बनाने का मार्गदर्शन भी। महाराज का संदेश था ,“स्वयं को पहचानो, मन को साधो, और जीवन को ईश्वर के सान्निध्य में व्यतीत करो।”