LDA Illegal Construction: राजधानी लखनऊ के खुर्रम नगर इलाके में आठ साल पहले अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश पारित होने के बावजूद उस पर कार्रवाई न होने से नाराज़ होकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कड़ा रुख अपनाया है। न्यायालय ने आश्चर्य व्यक्त किया कि LDA द्वारा सील किया गया निर्माण न केवल जस का तस खड़ा रहा, बल्कि उसे विस्तार देते हुए वहाँ शॉपिंग कॉम्प्लेक्स भी बना लिया गया। अदालत ने लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) के उपाध्यक्ष को अगली सुनवाई पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने का आदेश दिया है और संबंधित अधिकारियों व कर्मचारियों पर की गई कार्रवाई का ब्योरा मांगा है।
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश वर्ष 2016 में दाखिल जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया। याचिकाकर्ता हेमंत कुमार मिश्रा ने अदालत से शिकायत की थी कि खुर्रम नगर क्षेत्र में अवैध निर्माण के खिलाफ LDA के सक्षम अधिकारी ने 10 मई 2016 को ध्वस्तीकरण का आदेश दिया था। इसके बावजूद न तो निर्माण ध्वस्त हुआ और न ही जिम्मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई की गई। उल्टा सील तोड़कर निर्माण को पूरा कर शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खड़ा कर दिया गया।
सुनवाई के दौरान LDA के अधिवक्ता ने स्वीकार किया कि विवादित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स अवैध है और इसे एलडीए द्वारा सील भी किया गया था। लेकिन अवैध कब्जेदारों ने सील तोड़कर निर्माण कार्य को आगे बढ़ा लिया और भवन को पूरा कर लिया। इस घटना के संबंध में गुडम्बा थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है।
हाईकोर्ट ने इस पूरे प्रकरण पर गहरी नाराज़गी जताते हुए कहा कि जब ध्वस्तीकरण का आदेश पहले ही दिया जा चुका था तो LDA अधिकारियों ने अब तक कार्रवाई क्यों नहीं की। अदालत ने यह भी पूछा कि जिन अधिकारियों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी अवैध निर्माण रोकने की थी, वे आखिर क्या कर रहे थे?
खंडपीठ ने स्पष्ट कहा कि यदि अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है तो अगली सुनवाई पर संबंधित अधिकारियों के नाम और उनकी भूमिका का पूरा ब्योरा कोर्ट में प्रस्तुत किया जाए।
अदालत ने एलडीए उपाध्यक्ष को अगली सुनवाई पर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए उपस्थित होने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर 2025 को होगी। कोर्ट ने कहा कि वह यह देखना चाहती है कि इतने वर्षों से जारी लापरवाही के लिए किस स्तर पर जिम्मेदारी तय की जा सकती है।
न्यायालय ने इस मामले के प्रतिवादी बनाए गए मो. अनवर सिद्दीकी और फारुक सिद्दीकी को भी नोटिस जारी करने का आदेश दिया। नोटिस की तामील के लिए संबंधित डीसीपी को निर्देशित किया गया है।
कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि रजिस्ट्री इस याचिका को वापस लेने का कोई भी प्रार्थना पत्र स्वीकार नहीं करेगी। इसका अर्थ यह है कि भले ही कोई पक्षकार मामला वापस लेने की कोशिश करे, न्यायालय इस जनहित याचिका को स्वतः संज्ञान में रखकर आगे बढ़ाएगा।
विशेषज्ञों के अनुसार यह आदेश केवल एक अवैध निर्माण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह शहरी विकास प्राधिकरणों की लापरवाही और प्रशासनिक उदासीनता पर भी सीधा प्रहार है। अदालत ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि कानून का उल्लंघन कर किए गए निर्माण को संरक्षण नहीं दिया जा सकता, चाहे उसके पीछे कोई भी राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव हो।
खुर्रम नगर और आसपास के इलाकों में पिछले कई वर्षों से अवैध निर्माण की शिकायतें आती रही हैं।LDA समय-समय पर ऐसे निर्माणों को ध्वस्त करने का दावा करता है, लेकिन वास्तविकता में कई निर्माण ध्वस्तीकरण आदेश के बावजूद खड़े हो जाते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह केवल LDA की आंतरिक निगरानी व्यवस्था की कमजोरी नहीं, बल्कि स्थानीय स्तर पर मिलीभगत और भ्रष्टाचार की ओर भी संकेत करता है।
अब सबकी निगाहें 15 सितंबर की सुनवाई पर टिकी हैं। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह इस मामले को हल्के में नहीं लेगी। यदि जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई तो कोर्ट सीधे एलडीए उपाध्यक्ष से जवाब मांगेगा और आवश्यक होने पर व्यक्तिगत जिम्मेदारी तय की जाएगी। कानूनी जानकारों का कहना है कि अदालत के इस रुख से भविष्य में अवैध निर्माण करने वालों और उन्हें संरक्षण देने वाले अधिकारियों, दोनों पर सख्त कार्रवाई की संभावना बढ़ गई है।
Published on:
19 Aug 2025 03:57 pm