मुरैना. श्री दिगंबर बड़े जैन मंदिर में धर्म सभा के दौरान जैन संत मुनि विलोक सागर महाराज ने कहा कि सांसारिक जीवन में सुख और दुख का चक्र घूमता रहता है। जब हमारे अच्छे कर्म उदय में आते हैं तो सुखों की अनुभूति होती है और जब बुरे कर्म उदय में आते हैं तब दुखों की अनुभूति होती है। पुण्य से अच्छे कर्म बनते हैं और पाप से बुरे कर्मों का बंध होता है। कहने का मतलब यह है कि अच्छे कार्यों को पुण्य और बुरे कार्यों को पाप कहा जाता है।
उन्होंने कहा कि जैन दर्शन के अनुसार, पुण्य अच्छे कर्मों को कहते हैं जो सुख लाते हैं और आत्मा को पवित्र करते हैं, जबकि पाप बुरे कर्मों को कहते हैं जो दुख का कारण बनते हैं और आत्मा को अपवित्र करते हैं। पापों में मुख्य रूप से पांच अणुव्रत का उल्लंघन आता है, जैसे हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह। पुण्य के लिए दान, सेवा और धर्म का पालन करना महत्वपूर्ण है। जैन धर्म का लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है। जिसमें पुण्य और पाप दोनों से ऊपर उठना होता है, क्योंकि ये दोनों ही आत्मा को संसार चक्र में बांधते हैं। जैन दर्शन में हिंसा करना, झूठ बोलना, चोरी करना, ब्रह्मचर्य का पालन न करना, आवश्यकता से अधिक संचय करना पाप की श्रेणी में आते हैं। धर्मसभा में मुनि विबोधसागर महाराज ने कहा कि सांसारिक प्राणी बहुत होशियार और चालाक है। जब वह पुण्य करता है तो समझता है कि भगवान सब देख रहे हैं, लेकिन जब पाप करता है तो वह समझता है कि भगवान तो है ही नहीं, कोई कुछ नहीं देख रहा। लेकिन मनुष्य यही भूल करता है। संसार में आपके पुण्य और पाप के अनुसार ही आपको सुख दुख की अनुभूति होती है।
प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के संयोजक डॉक्टर मनोज जैन एवं विमल जैन बबलू द्वारा बताया है कि मुनि विलोकसागर महाराज एवं मुनि विबोध सागर महाराज के सान्निध्य में ज्ञान वर्धक पंच परमेष्ठी प्रतियोगिता का आयोजन 26 सितंबर को शाम 6 बजे से पंचायती बड़ा जैन मंदिर मुरैना में किया जा रहा है। इस प्रतियोगिता का रिजल्ट एवं पुरस्कार वितरण कार्यक्रम 6 अक्टूबर शाम 6 बजे से बड़े जैन मंदिर में होगा। इस प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले सभी प्रतियोगियों को पुण्यार्जक परिवार सम्मानित किया जाएगा।
Published on:
25 Sept 2025 04:38 pm
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