विज्ञान और वेद दोनों ही बताते हैं कि सृष्टि मैटर और एनर्जी पर आधारित है। गीता इसे पुरुष और प्रकृति कहती है और घर में यह स्त्री-पुरुष के रूप में दिखता है। फिर आखिर ऐसा क्या हुआ कि स्त्री का सम्मान लगातार घटता जा रहा है? महिलाओं पर अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं? उनके पीछे के कारणों पर चर्चा नहीं होती। हर कोई बस समाधान की बात करता है।
पत्रिका समूह के प्रधान संपादक गुलाब कोठारी ने समाज के सामने यह प्रश्न रखा है। वह 22 अगस्त को मुंबई में ‘इनर वूमन’ यानी ‘स्त्री: देह से आगे’ विषय पर व्याख्यान दे रहे थे। उन्होंने महिलाओं की स्थिति और समाज में नारीत्व के महत्व पर गहन विचार साझा किए।
कोठारी ने कहा, ‘भारत के शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, वहीं देवता निवास करते हैं। लेकिन आज समाज में नारी की चर्चा तो होती है, नारीत्व की नहीं। हर प्राणी में नारी का अंश है, मगर स्त्री भाव को हम भूल गए हैं। यही कारण है कि समाज आक्रामक होता जा रहा है।’
राष्ट्रीय महिला आयोग द्वारा आयोजित दो-दिवसीय कार्यक्रम के पहले दिन अपने विचार साझा करते हुए उन्होंने शिक्षा और परवरिश पर भी सवाल उठाए। उनके अनुसार, आज की शिक्षा केवल करियर और पैसे कमाने तक सीमित हो गई है। अच्छा इंसान बनने और समाज के लिए जीने की सीख कहीं पीछे छूट गई है। इस वजह से व्यक्ति केवल अपने ऊपर फोकस करता है। समाज के बारे में नहीं सोचता। उसे हर चीज कम लगने लगी है। वह अभावग्रस्त बन गया है और लेने की प्रवृत्ति बन गई है। अभाव को मृत्यु कहते हैं, देने वाला ही इतिहास में जाना जाता है। जो देना नहीं जानता, वह बड़ा कैसे होगा!
प्रधान संपादक कोठारी ने परवरिश पर सवाल उठाते हुए कहा कि आज घर में जिस तरह हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं, वह महिलाओं के प्रति खराब रवैये के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार है। हर व्यक्ति आधा पुरुष और आधा स्त्री है। पुरुष में पुरुष का भाग ज्यादा है और स्त्री में स्त्री का भाग ज्यादा है, बस दोनों के बीच में यह अंतर है। घर में जब लड़का बड़ा हो रहा होता है तो घर वाले उसके संस्कारों पर ज्यादा ध्यान नहीं देते। उसे हर तरह की स्वतंत्रता होती है। वह मर्यादाओं को तोड़ सकता है, घर की सीमाओं को लांघ सकता है। उसे नियंत्रित नहीं किया जाता। इससे उसका जो आधा भाग है, स्त्री वाला, वो खाली पड़ा है। उसमें महिलाओं के गुण नहीं होते। वह इसी आधे गुण के साथ जीवन जीकर दुनिया से चला जा रहा है। इससे समाज में आक्रामकता आती है।
स्त्री चंद्रमा के साथ चलती है, उसका मन चंद्रमा से बनता है, उसकी शीतलता चंद्रमा से आती है। सारी चीजें कुदरत के साथ-साथ चलती हैं, लेकिन हमने कुदरत के उन नियमों को तोड़ना शुरू कर दिया या भूल गए।
कोठारी ने कहा कि मां ही समाज में दिव्यता और अच्छे संस्कारों का आधार है। एक मां अपने बच्चे को अपनी भावनाओं और संस्कारों से नेक इंसान बनाती है। यह किसी और शक्ति के वश की बात नहीं है। देवता तक भी यह नहीं कर सकते।
मां की महानता बताते हुए उन्होंने कहा, ‘सृष्टि का शाश्वत नियम है कि दूसरों के लिए जीना है, लेकिन आज हर आदमी अपनी ही चिंता में बूढ़ा हो रहा है। एक मां कभी अपने लिए नहीं जीती। वह अपने परिवार, पति, बच्चे के लिए जीती है। मां और औरत की परिभाषा शरीर नहीं है। अगर इसे शरीर से जोड़ दिया तो आप कितना भी कमा लें, कितने ही बड़े हो जाएं, जीवन में सुख नहीं आ सकता है।’
उन्होंने कहा कि सारे शास्त्र स्त्री को देवी कहते हैं। नारी की पूजा इसलिए होती है, क्योंकि उसे दिव्यता के आधार पर देखा जा रहा है। संतान में दिव्यता और उससे समाज में दिव्यता सिर्फ और सिर्फ मां की दिव्यता से आ सकती है।
उन्होंने महिलाओं से आह्वान किया कि वे अपनी दिव्यता को पहचानें। उन्होंने कहा, ‘मां की असली पहचान उसकी दिव्यता है, देने की शक्ति है, न कि मांगने की। अगर महिलाएं इसे गांठ बांध लें तो वे भी सुखी रहेंगी और समाज भी सुखी रहेगा।’
कार्यक्रम में राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने कहा कि देश भर में विभिन्न राज्यों के महिला आयोग महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम कर रहे हैं। अगर सभी राज्य मिलकर काम करें तो और अच्छे परिणाम हासिल किए जा सकते हैं। उन्होंने ‘तेरे मेरे सपने’ जैसे विवाह पूर्व परामर्श केंद्रों को राज्यों में बढ़ाए जाने की भी बात कही।
देश भर के सभी राज्य महिला आयोगों के क्षमता निर्माण कार्यक्रम ‘शक्ति संवाद’ का उद्घाटन महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ने किया।उन्होंने कहा कि दुनिया के तमाम देश विकसित तभी बन पाए, जब उन्होंने लैंगिक समानता को महत्व दिया। भारत में भी केंद्र और महाराष्ट्र सरकार स्त्री लक्षित योजनाओं पर लगातार जोर दे रही है।
Updated on:
23 Aug 2025 09:46 am
Published on:
23 Aug 2025 12:53 am