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“चाकी वाला गांव” गढ़ रहा मूर्तियां, पूरे देश में डिमांड…..

मारोठ (नागौर). कस्बे के पास अरावली की पहाड़ियों के बीच बसे गांव भूणी की आबादी लगभग 4000 है। इस “चाकी वाले गांव” में करीब 100 परिवार अपनी परंपरागत हस्तकला से पत्थर की मूर्तियां बनाकर उसे जीवंत रूप दे रहे हैं। यहां की मूर्तियों की देशभर में मांग है। इसे परिष्कृत और रोजगारपरक बनाने के लिए प्रशिक्षण और मदद की दरकार है।

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भूणी में कलाकारों की ओर से तैयार की गई मूर्तियां

-भूणी गांव की परंपरागत मूर्ति कला के विकास के लिए सुविधाओं और प्रशिक्षण की दरकार

मारोठ (नागौर). कस्बे के पास अरावली की पहाड़ियों के बीच बसे गांव भूणी की आबादी लगभग 4000 है। इस “चाकी वाले गांव” में करीब 100 परिवार अपनी परंपरागत हस्तकला से पत्थर की मूर्तियां बनाकर उसे जीवंत रूप दे रहे हैं। यहां की मूर्तियों की देशभर में मांग है। इसे परिष्कृत और रोजगारपरक बनाने के लिए प्रशिक्षण और मदद की दरकार है। जिससे इसे अंतरराष्ट्रीय मंच मिल सके।

मूर्तिकारों ने बताया कि उनके पूर्वज लगभग 200 वर्ष पूर्व हाथ से चलने वाली चाक (घट्ठी) बनाते थे। उस समय यह गांव “चाकी वाला गांव” नाम से प्रसिद्ध था। यहां की बनी चाकियां आसपास के क्षेत्रों में खूब प्रचलित थीं। लेकिन समय के साथ हाथ की चाकियों की जगह बिजली से चलने वाली मोटरयुक्त चक्कियों ने ले ली। उसके बाद गांव के कारीगरों ने मूर्तियां तराशने का कार्य शुरू किया। आज यहां के कलाकारों ने अपनी मूर्तिकला के दम पर अपने गांव और क्षेत्र को पूरे जिले, राज्य और देश में अलग पहचान दिलाई है। यहां निर्मित मां काली और शिव परिवार की मूर्तियां देशभर में प्रसिद्ध हैं।

कई राज्यों में आपूर्ति

गांव में लगभग 30 प्रतिशत परिवारों का मुख्य व्यवसाय हाथ से काले एवं सफेद संगमरमर के पत्थरों पर मूर्तियां तराशना है। यहां की मूर्तियां राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा, असम, दिल्ली सहित देश के अनेक हिस्सों में भेजी जाती हैं। गांव के प्रसिद्ध मूर्तिकार गणेश कुमावत, लक्ष्मण स्वामी, गिरधारीलाल स्वामी, कानाराम प्रजापत और ओमप्रकाश कुमावत किसी भी प्रकार की वैष्णव मूर्तियां, बस्ट, स्टैच्यू तथा नंदी की प्रतिमाएं इस कुशलता से बनाते हैं कि उन्हें देखकर वास्तविकता का एहसास होता है। गांव की हर गली में स्थित कला केंद्रों में शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, नंदी, शिवलिंग, दुर्गा, भैरव, सीताराम, हनुमान, राधाकृष्ण, लक्ष्मी, सरस्वती, तिरुपति बालाजी, परशुराम, महावीर, काली माता के साथ-साथ शहीदों और महापुरुषों की मूर्तियां कुशलता से निर्मित की जाती हैं।

यह है प्रमुख कलाकृतियां

मांगीतुंगी (महाराष्ट्र) में भूणी के कलाकारों द्वारा निर्मित 108 फुट ऊंची विशाल मूर्ति, जो पर्वत को काटकर बनाई गई, भारत की सबसे बड़ी मूर्तियों में से एक है। इसे चतुरदास स्वामी और 50 कारीगरों ने चार वर्षों की मेहनत से बनाया था। इसके अलावा जयपुर के बेनाड़ में 21 फुट ऊंची महावीर स्वामी की मूर्ति, कुचामन सिटी के कन्नौई पार्क में डॉ. भीमराव अम्बेडकर की अष्टधातु प्रतिमा (निर्माता ओमप्रकाश कुमावत) तथा मारोठ जनकल्याण गोपाल गौशाला में सवा ग्यारह फुट की भगवान महावीर की प्रतिमा (निर्माता गिरधारीलाल स्वामी) भी इसी गांव की विशेष कारीगरी का परिणाम हैं।

मदद की दरकार

हितेश जैन ने बताया कि पत्थर की धूल के कारण कारीगरों में सिलिकोसिस, अस्थमा और टीबी जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं। गांव में अब तक 14 लोगों को सिलिकोसिस की पुष्टि हुई है और करीब 40 से 45 लोग इसके गंभीर खतरे से जूझ रहे हैं। सरकार को इन मूर्तिकारों के स्वास्थ्य और संरक्षण पर तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।