Independence Day Special Story: बात 1971 के युद्ध की है जब भारतीय फौज की बटायिल ईएमई 336 के प्लाटून ने लाहौर पर कब्जा कर लिया था। हमारे रणबांकुरों के आगे पाकिस्तानी सैनिक हथियार छोड़कर भाग गए थे। उस युद्ध में लाहौर तक तिरंगा ले जाने वाले फौजी हवलदार मेजर खेमकरण सराठे आज भी इंडियन आर्मी की बहादुरी के किस्से अपना सीना चौड़ा करके गर्व से सुनाते हैं। उन्हें सेना ने उन्हें पूर्वी और पश्चिमी मेडल से सम्मानित किया है। उन्हें सेना की तरफ से मेजर जी की पदवी दी गई है।
मेजर सराठे (Major Khemkaran Sarathe) ने बताया कि युद्ध की घोषणा होने के बाद सागर से 150 जवानों की हमारी बटालियन रवाना की गई थी। पठानकोट में विश्राम भोजन करने के बाद फौज ने पाकिस्तान में दाखिल होना शुरू किया। तीन घंटे की भीषण लड़ाई के बाद हमारी बटालियन का पाकिस्तान के सियालकोट पर कब्जा हो गया था। इसके बाद हम बकराकोट, हमीरपुर, डोंगरगांव में कब्जा करते हुए लाहौर पहुंच गए। यहां हमने बड़ा हमला किया था। पाकिस्तानी सैनिक हथियार छोडकर भाग रहे थे।
उन्होंने आगे कहा कि हम तिरंगा फहराने की तैयारी में थे। पठानकोट से चली हमारी 150 सैनिकों की बटालियन में 143 जवान शहीद हो गए थे। बचे हुए 7 सैनिक अपनी जान की परवाह किए बिना लगातार हमले कर रहे थे। इसी दौरान पाक फौज के आत्मसमर्पण की सूचना आ गई। इसके बाद हम लोग वापस भारत लौट आए। मुझे हवलदार से मेजर के पद से सम्मानित किया। सराठे कहते हैं युद्ध के दृश्य आज भी आंखों के सामने घूमते हैं। सेनी की बहादुरी देखकर आज भी गर्व होता है। (mp news)
सराठे बताते हैं कि हम लाहौर में भीषण गोलाबारी कर रहे थे। इसी बीच पाकिस्तानी सेना ने लगभग 200 गोवंश को हमारी तरफ भगाया। उन्हें मालूम था कि भारतीय जवान गाय पर हमला नहीं करते हैं। इसकी आड़ लेकर कई पाक सैनिक भाग गए।
मेजर सराठे ने बताया हमने पाक सेना के पांच ट्रक हथियार जब्त किए थे। इसके अलावा उनकी तोपों और अन्य सैन्य सामग्री हमारे पास थी। जब्त की गई पाकिस्तानी तोपें आज भी भारत में जहां तहां खड़ी हैं। (mp news)
Published on:
14 Aug 2025 01:29 pm