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Independence Day:आजादी के इन दीवानों की विरासत सरहद पार क्यों छूट गई ? क्या भारत मांगेगा हक ?

Freedom Fighters Memorials in Pakistan: शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की ऐतिहासिक यादगारें अब पाकिस्तान में हैं।

भारत

MI Zahir

Aug 11, 2025

Freedom Fighters Memorials in Pakistan
शहीद भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु। (फोटो: X Handle Raj Babbar.)

Freedom Fighters Memorials in Pakistan: ऐ मेरे वतन के लोगो! जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो कुर्बानी ! कवि प्रदीप का लिखा और लता मंगेशकर का गाया यह गीत सभी भारतीयों में देश प्रेम का जज्बा ताजा कर देता है। आजादी की सालगिरह के मौके पर ,हम वतन पर मर मिटने वाले उन जांबाज जवानों को नहीं भूल सकते,जिन्होंने देश को आजादी दिलाने की खातिर अपनी जान कुर्बान कर दी। इनमें शहीद भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु का नाम प्रमुख (Bhagat Singh history Independence Day)है। ये तीनों शहीद न सिर्फ आज़ादी की लड़ाई के प्रतीक हैं, बल्कि आज भी युवा पीढ़ी के आदर्श हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन तीनों महान क्रांतिकारियों (Indian freedom fighters in Pakistan) से जुड़ी कई ऐतिहासिक जगहें अब पाकिस्तान में हैं? जी हां! देश के विभाजन के साथ इन तीनों शहीदों की यादगारें भी पाकिस्तान में ही रह गईं। जानिए किस शहीद की यादगार (Pakistan historical sites) कहां पर है :

शहीद भगतसिंह और उनकी यादगार (Bhagat Singh memorial)

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर (अब फैसलाबाद, पाकिस्तान) के बंगा गांव में हुआ था। वह एक प्रखर क्रांतिकारी थे जिन्होंने अपने सिद्धांतों के लिए जान दे दी। यह मकान आज भी वहां मौजूद है और इसे पाकिस्तान सरकार ने एक ऐतिहासिक धरोहर घोषित किया हुआ है। हालांकि इसकी हालत समय के साथ बिगड़ती जा रही है।

  • कई जगह दीवारों का प्लास्टर उखड़ चुका है।
  • छत और लकड़ी की खिड़कियां जर्जर हो चुकी हैं।
  • स्थानीय प्रशासन ने इसे स्मारक बनाने की कोशिश की, लेकिन रखरखाव बेहद सीमित है।
  • कुछ वर्षों पहले भारत और पाकिस्तान के एक्टिविस्ट्स ने मिलकर इसे म्यूज़ियम में बदलने की मांग की थी, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई।

आज कहां है यादगार: भगत सिंह का पैतृक घर लायलपुर में स्थित है।

लाहौर का शादमान चौक (जहां उन्हें फांसी दी गई) अब भगत सिंह चौक के नाम से जाना जाता है।

मियांवाली जेल, जहां उन्हें कैद में रखा गया था, पाकिस्तान में मौजूद है।

शहीद सुखदेव और उनकी यादगार

सुखदेव थापर का जन्म 15 मई 1907 को लुधियाना में हुआ था। वे भगत सिंह के घनिष्ठ मित्र और क्रांति के लिए समर्पित सेनानी थे। उस जगह पर अब शादमान चौक है।

  • हर साल यहां स्थानीय संगठनों द्वारा शहीद दिवस पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम होते हैं।
  • भगत सिंह मेमोरियल फाउंडेशन, लाहौर इस आयोजन में अग्रणी भूमिका निभाता है।
  • पाकिस्तान में कई बार इस चौक का नाम "भगत सिंह चौक" रखने की मांग उठी, लेकिन धार्मिक और राजनीतिक कारणों से नामकरण नहीं हो सका।
  • इस स्थान पर आज भी कैंडल मार्च और शांति सभाएं होती हैं, लेकिन सुरक्षा के चलते आयोजन सीमित रहते हैं।

आज कहां है यादगार: सुखदेव को लाहौर में ही भगत सिंह और राजगुरु के साथ फांसी दी गई थी।

उनकी फांसी का कक्ष और समाधि स्थल अब पाकिस्तान के लाहौर सेंट्रल जेल परिसर में आता है।

पूंछ हाउस (Poonch House), लाहौर – भगत सिंह गैलरी

दिसंबर 2024 में पाकिस्तान की पंजाब सरकार ने पूंछ हाउस में "भगत सिंह गैलरी" की शुरुआत की।

  • गैलरी में भगत सिंह की दुर्लभ तस्वीरें, कोर्ट केस से जुड़े दस्तावेज और स्वतंत्रता संग्राम की झलकियां मौजूद हैं।
  • यह पाकिस्तान में किसी शहीद भारतीय स्वतंत्रता सेनानी की पहली गैलरी है।
  • गैलरी आम लोगों के लिए खोली गई है, लेकिन इसके बारे में प्रचार बेहद कम है।

लायलपुर (फैसलाबाद) में भगत सिंह का स्कूल

  • भगत सिंह की स्कूली पढ़ाई लायलपुर (अब फैसलाबाद) के एक स्कूल में हुई थी।
  • स्कूल की इमारत आज भी मौजूद है लेकिन काफी जर्जर हो चुकी है।
  • कक्षाओं में पर्याप्त व्यवस्था नहीं है और सरकार की ओर से संरक्षण प्रयास सीमित हैं।

शहीद राजगुरु और उनकी यादगार (Sukhdev Rajguru legacy)

राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र के पुणे ज़िले में हुआ था। वे ब्रिटिश अधिकारी सॉन्डर्स की हत्या में शामिल थे।

आज कहां है यादगार: राजगुरु को भी भगत सिंह और सुखदेव के साथ लाहौर में फांसी दी गई।

सुखदेव और राजगुरु से जुड़ी स्मृतियां

  • चूंकि सुखदेव और राजगुरु पंजाब और महाराष्ट्र से थे, इसलिए पाकिस्तान में उनका कोई प्रमुख पैतृक स्थल नहीं है।
  • हालांकि, फांसी स्थल लाहौर जेल को इनकी शहादत की याद में बराबर दर्जा दिया जाता है।
  • भगत सिंह के साथ इन दोनों को भी श्रद्धांजलि दी जाती है।

क्या भारत इन स्थलों को धरोहर के रूप में मान्यता दिला सकता है ?

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को यूनेस्को या सांस्कृतिक कूटनीति के ज़रिये इन स्थलों को संरक्षित करवाने की दिशा में काम करना चाहिए। शहीदों की कुर्बानी सिर्फ एक देश की नहीं, बल्कि मानवता के हक में दी गई कुर्बानी थी। नमन है उन वीरों को जिन्होंने हमें स्वतंत्रता का सूरज दिखाया।