लड़ाकू विमान मिग-21 की विदाई (फोटो सोर्स : ANI)
भारत (India) का पहला सुपरसोनिक फाइटर जेट जिसे बाद के समय में उड़ता ताबूत करार दिया गया, आज चंडीगढ़ के आसामान में आखिरी बार उड़ान भरेगा। चंडीगढ़ एयरपोर्ट पर भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) के MiG 21 को रिटायर कर दिया जाएगा। 63 साल की सर्विस के बाद यह फाइटर जेट्स रिटायर हो रहा है। चंडीगढ़ में MiG 21 के विदाई समारोह को लेकर भव्य तैयारी की गई है। रक्षामंत्री राजनाथ सिंह भी इस मौके पर मौजूद रहेंगे।
पैंथर्स नाम से मशहूर 23 स्क्वाड्रन ने भारत के हर छोटे-बड़े युद्ध में हिस्सा लिया। मिग 21 ने 60 सालों तक देश की सेवा की। सोवियत यूनियन (USSR) द्वारा निर्मित इस फाइटर जेट की 1960 के दशक में तूती बोलती थी। भारत को जब साल 1962 में चीन के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा तो तत्कालीन भारत सरकार को एक अत्याधुनिक फाइटर जेट की कमी महसूस हुई।
दरअसल, उस दौरान पाकिस्तान अमेरिकी गुट सीटो और सेंटो का सदस्य बन चुका था। अमेरिका सहित पश्चिमी देश उसे नए तकनीकों से लैस हथियार मुहैया करा रहे थे। अमेरिका ने पाकिस्तान को F-104 स्टारफाइटर फाइटर जेट मुहैया कराए। इससे उत्तर में चीन के साथ-साथ पूर्व और पश्चिमी से भी भारत पर आक्रमण का खतरा बढ़ने लगा। तब बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था।
ऐसे अहम मौके पर भारतीय वायुसेना के अधिकारियों ने सरकार को USSR निर्मित मिग 21 खरीदने की सलाह दी। जो सुपरसोनिक रफ्तार से उड़ान भरता था और अपनी रफ्तार से अमेरिकी निर्मित F-104 स्टारफाइटर फाइटर जेट को कड़ी टक्कर दे सकता था।
सरकार ने वायुसेना के अधिकारियों के सलाह पर अमल करते हुए मिग 21 की खरीदारी को मंजूरी दी। 1963 में सोवियत संघ (अब रूस) ने मिग-21 विमानों का अपना पहला बेड़ा भारत भेजा। मिग-21 जेट को पहली बार 1963 में भारतीय वायु सेना में शामिल किया गया था।
भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होने के दो साल बाद ही मिग 21 को युद्ध में उतरना पड़ा। पाकिस्तान ने पश्चिमी मोर्चे पर जंग छेड़ दी। इस युद्ध में मिग-21 ने पहली लड़ाकू भूमिका निभाई, लेकिन कम संख्या में शामिल होने और अपर्याप्त पायलट प्रशिक्षण के कारण इसकी भूमिका सीमित रही। मिग 21 ने 1965 की लड़ाई में हलवारा हवाई क्षेत्र के ऊपर पाकिस्तानी F-86 सेबर विमानों से मुकाबला किया।
मिग-21 ने इसके कुछ ही साल बाद अपना दमखम पूरी तरह से दिखाया। साल 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में मिग 21 ने निर्णायक भूमिका अदा की। इसने पाकिस्तानी क्षेत्र में घुप अंधेरी रात में, कम ऊंचाई पर हमले किए। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार एक हमले के मिशन में, मिग-21 की एक टुकड़ी ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में ढाका में गवर्नर हाउस पर हमला किया और छत के वेंटिलेटर से रॉकेट दागे। इस दौरान पाकिस्तान के F104 स्टारफाइटर जेट को मार गिराया।
फिर 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान ऑपरेशन सागर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पहाड़ी इलाकों में पाकिस्तानी ठिकानों के खिलाफ टोही, जमीनी हमले के अभियानों और लड़ाकू हवाई गश्त के लिए उच्च ऊंचाई की चुनौतियों से निपटा। इतना ही नहीं, पुलवामा हमले के बाद ऑपरेशन बालाकोट के दौरान जब पाकिस्तानी वायुसेना के फाइटर जेट भारतीय सीमा में दाखिल हुए तो विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान ने 27 फरवरी को मिग-21 बाइसन उड़ाते हुए घुसपैठ कर रहे पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को रोका। साथ ही, एक F16 फाइटर जेट को मार गिराया।
धीरे-धीरे वक्त से साथ उसका महत्व घटने लगा। तकनीकी खामी के कारण मिग 21 कई बार हादसों का शिकार हो गया। इसके बाद मिग 21 को उड़ता ताबूत का नाम दे दिया गया। मिग 21 के रिटायर होने के बाद भारतीय वायुसेना में लड़ाकू विमानों के स्क्वाड्रन की संख्या घटकर 29 हो जाएगी। जो कि 1960 के दशक के बाद सबसे कम है।
रक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि कोई भी फाइटर जेट भारतीय वायुसेना में इतने लंबे समय तक नहीं जुड़ा रहा। वायुसेना के 93 साल के इतिहास में दो-तिहाई से अधिक समय तक भारतीय वायुसेना के बेडे़ में मिग 21 शामिल रहा। इसने 1965 की लड़ाई से ऑपरेशन सिंदूर तक अपना योगदान दिया है।
Published on:
26 Sept 2025 12:20 pm
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