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RTI पर मंडरा रहा संकट, आयोगों में 4 लाख से अधिक अपीलें लंबित

सूचना का अधिकार (RTI) कानून को 20 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन सूचना आयोगों में लंबित मामलों के कारण इसकी प्रभावशीलता बेहद कम हो गई है। एनजीओ रिपोर्ट के अनुसार, कई राज्यों में अपीलों के निपटारे में दशकों लग सकते हैं।

3 min read

भारत

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Devika Chatraj

Oct 20, 2025

RTI

सूचना का अधिकार को 20 साल पूरे (File Photo)

लोकतंत्र की मजबूती और प्रशासनिक पारदर्शिता का प्रतीक बने सूचना का अधिकार (RTI) कानून को लागू हुए पूरे 20 साल हो चुके हैं, लेकिन इसकी हकीकत बेहद निराशाजनक है। केंद्रीय और राज्य सूचना आयोगों में आयुक्तों की भारी कमी के कारण ये संस्थाएं लगभग निष्क्रिय हो चुकी हैं। देशभर के 29 आयोगों में 4 लाख 13 हजार 972 से अधिक अपीलें और शिकायतें लंबित हैं, जबकि कई आयोग पूरी तरह बंद पड़े हैं। एनजीओ सतर्क नागरिक संगठन (SNS) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, अगर यही हाल रहा तो कुछ राज्यों में अपीलों का फैसला आने में 29 साल तक लग सकते हैं।

हर साल लाखों आवेदन दाखिल

आरटीआई कानून 12 अक्टूबर 2005 को लागू हुआ था, जिसने आम नागरिक को सरकारी सूचनाओं का अधिकार दिया। हर साल लगभग 40 लाख आरटीआई आवेदन दाखिल होते हैं, लेकिन अंतिम अपील इकाई के रूप में काम करने वाले सूचना आयोगों की हालत खस्ता है। एसएनएस ने 29 आयोगों में 146 आरटीआई आवेदनों के जरिए जुटाई गई जानकारी के आधार पर जारी 'रिपोर्ट कार्ड ऑन द परफॉर्मेंस ऑफ इंफॉर्मेशन कमीशन्स इन इंडिया, 2024-25' में खुलासा किया है कि 1 जुलाई 2024 से 7 अक्टूबर 2025 के बीच छह आयोग पूरी तरह निष्क्रिय रहे, जहां सभी आयुक्त पद खाली थे। इनमें झारखंड और हिमाचल प्रदेश के आयोग आज भी बंद पड़े हैं।

निष्क्रिय आयोगों का बोझ

नागरिकों का इंतजार अनिश्चितकालीन रिपोर्ट के अनुसार, जुलाई 2024 से जून 2025 तक 27 आयोगों में 2,41,751 अपीलें और शिकायतें दर्ज हुईं, लेकिन केवल 1,82,165 का निपटारा हो सका। निपटान दर इतनी धीमी है कि बैकलॉग कम होने के बजाय बढ़ रहा है। एसएनएस ने मासिक निपटान दर और मौजूदा लंबित मामलों के आधार पर अनुमान लगाया है कि तेलंगाना में 1 जुलाई 2025 को दाखिल अपील का फैसला 2054 में यानी 29 साल बाद आएगा। इसी तरह त्रिपुरा में 23 साल, छत्तीसगढ़ में 11 साल, मध्य प्रदेश और पंजाब में सात साल लगेंगे। 18 आयोगों में एक अपील के निपटारे में एक साल से ज्यादा समय लगेगा।

सरकार की तरफ से कोई कदम नहीं उठाया गया

केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) की स्थिति भी चिंताजनक है। 13 सितंबर 2025 को मुख्य सूचना आयुक्त हीरालाल सांभरिया का कार्यकाल समाप्त होने के बाद आयोग बिना प्रमुख के चल रहा है। आठ आयुक्त पद पहले से खाली हैं, और केवल दो आयुक्तों के भरोसे काम हो रहा है। जून 2025 तक यहां 24,102 मामले लंबित थे, जो सितंबर तक बढ़कर 26,800 हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार नियुक्तियों में देरी पर नाराजगी जताई है, लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

निपटान के मामले में ये राज्य आगे

निपटान में महाराष्ट्र आगे, लेकिन लंबित मामलों का निपटारे के मामले में महाराष्ट्र सूचना आयोग शीर्ष पर है। 1 जुलाई 2024 से 30 जून 2025 के बीच 27 आयोगों में सबसे ज्यादा 38,410 मामलों का निपटारा महाराष्ट्र ने किया। उसके बाद उत्तर प्रदेश (30,552), कर्नाटक (26,802), तमिलनाडु (22,336) और केंद्रीय आयोग (18,931) का स्थान रहा। हालांकि, लंबित मामलों की सूची में भी महाराष्ट्र टॉप पर है।

राज्य/केंद्रलंबित मामले (30 जून 2025 तक)
महाराष्ट्र95,340
कर्नाटक47,825
तमिलनाडु41,059
छत्तीसगढ़34,147
बिहार29,919
ओडिशा19,239
उत्तर प्रदेश18,424
तेलंगाना18,192
मध्य प्रदेश17,490
पंजाब14,376
आंध्र प्रदेश13,591
झारखंड7,728
राजस्थान7,028
केरल6,512
हरियाणा5,542
पश्चिम बंगाल4,954
गुजरात3,175
उत्तराखंड1,688
केंद्रीय सूचना आयोग24,102
कुल4,13,972

यह आंकड़े एसएनएस रिपोर्ट से लिए गए हैं, जो दर्शाते हैं कि महाराष्ट्र में 1 लाख से ज्यादा मामले अटके हैं, जबकि केंद्रीय स्तर पर भी हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे।

विशेषज्ञों की चिंता

आरटीआई कमजोर हो रहा, सुधार जरूरीआरटीआई कार्यकर्ता अंजली भारद्वाज ने कहा, "20 साल बाद भी सूचना आयोगों की कार्यप्रणाली कानून के प्रभावी क्रियान्वयन में सबसे बड़ी बाधा बनी हुई है। लंबित मामलों के कारण सूचना मिलना व्यर्थ हो जाता है देरी सूचना का इनकार ही है।" सुप्रीम कोर्ट ने 2025 में अंजली भारद्वाज बनाम भारत संघ मामले में नियुक्तियों को समयबद्ध बनाने का आदेश दिया था, लेकिन अधिकांश राज्य इसका पालन नहीं कर रहे।

खाली पदों को भरने की सिफारिश

रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि खाली पदों को तुरंत भरा जाए, डिजिटल सिस्टम मजबूत किया जाए और अपील निपटान के लिए समयसीमा तय हो। 2019 के आरटीआई संशोधन और 2023 के डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट ने भी कानून को कमजोर किया है, क्योंकि व्यक्तिगत सूचनाओं पर पाबंदी लग गई है।