
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और तेलंगाना के विधानसभा अध्यक्ष गद्दाम प्रसाद कुमार। (फोटो- ANI)
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान तेलंगाना के विधानसभा अध्यक्ष गद्दाम प्रसाद कुमार के रवैये पर नाराजगी जताई थी।
इसके साथ, उन्हें कड़ी फटकार भी लगाई। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान यह तक पूछ दिया कि नया साल कहां मनाना है? जिसका मतलब साफ था कि अदालत के आदेशों की अवहेलना पर उन्हें नए साल पर जेल जाना पड़ सकता है।
अब शीर्ष अदालत की तीखी टिप्पणी पर तेलंगाना के कानूनी विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनकी ओर से यह कहा गया है कि ऐसी टिप्पणी एक संवैधानिक पद की गरिमा को कम करती है।
तेलंगाना के प्रथम महाधिवक्ता के रामकृष्ण रेड्डी ने कहा- चीफ जस्टिस ने जो कहा उसका मतलब साफ था कि अध्यक्ष को अपना नया साल जेल में मनाना पड़ेगा? एक संवैधानिक पद (अध्यक्ष) को इस तरह संबोधित करना बिल्कुल गलत है।
उन्होंने मणिलाल सिंह बनाम एच बोरोबाबू सिंह मामले का हवाला दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यक्ष को तलब तो किया, लेकिन सजा देने से परहेज किया, जिससे ऐसे मामलों में संयम बरतने की आवश्यकता पर बल मिला।
उन्होंने आगे तर्क दिया कि अयोग्यता की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय को अवमानना की कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी देने से पहले अध्यक्ष को कुछ और समय देना चाहिए था।
इस बीच, टीपीसीसी के कानूनी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष पोन्नम अशोक गौड़ ने भी चीफ जस्टिस की टिप्पणियों पर चिंता व्यक्त की। गौड़ ने एक महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक बारीकियों पर प्रकाश डालते हुए कहा- न्यायाधीशों की मौखिक टिप्पणियां बाध्यकारी आदेश नहीं हो सकती हैं। मौखिक टिप्पणियों का कानूनी प्रभाव नहीं होगा, जब तक कि अदालत के आदेश में उन्हें लिखा न जाए।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलंगाना विधानसभा के उस मामले में कड़ा रुख अपनाया, जिसमें बीआरएस से कांग्रेस में गए 10 विधायकों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश बी।आर। गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने तेलंगाना विधानसभा स्पीकर को चेतावनी दी कि अगर एक हफ्ते के अंदर इस याचिका पर फैसला नहीं हुआ तो अदालत इसे कोर्ट की अवमानना मानेगी।
दरअसल, पिछले साल हुए तेलंगाना विधानसभा चुनाव के बाद बीआरएस के 10 विधायकों ने कांग्रेस जॉइन कर ली थी। इसके बाद बीआरएस ने इन सभी विधायकों के खिलाफ दसवीं अनुसूची (दल-बदल कानून) के तहत अयोग्य ठहराने की अर्जी स्पीकर के सामने रखी थी, लेकिन एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद स्पीकर ने कोई फैसला नहीं लिया।
इससे नाराज सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई 2025 को स्पीकर को साफ निर्देश दिया था कि तीन महीने के अंदर यानी अक्टूबर अंत तक इस मामले का निपटारा करें। जब सोमवार को मामले की सुनवाई हुई तो स्पीकर की ओर से अभी तक कोई फैसला न होने की जानकारी दी गई। इस पर सीजेआई ने रोष जताया।
उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि या तो स्पीकर एक हफ्ते में फैसला ले लें या फिर खुद तय कर लें कि नया साल (2026) वह कहां बिताना चाहते हैं। कोर्ट का इशारा साफ था कि देरी जारी रही तो अवमानना की कार्रवाई हो सकती है और स्पीकर को जेल भी जाना पड़ सकता है।
Updated on:
18 Nov 2025 12:24 pm
Published on:
18 Nov 2025 11:59 am
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