Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

क्या तेलंगाना के स्पीकर को नया साल जेल में मनाना पड़ेगा? कानूनी विशेषज्ञों ने चीफ जस्टिस की टिप्पणी पर जताई आपत्ति

सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना के विधानसभा अध्यक्ष गद्दाम प्रसाद कुमार को कड़ी फटकार लगाई है, क्योंकि उन्होंने 10 बीआरएस विधायकों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाओं पर फैसला करने में देरी की है।

2 min read
Google source verification

भारत

image

Mukul Kumar

Nov 18, 2025

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और तेलंगाना के विधानसभा अध्यक्ष गद्दाम प्रसाद कुमार। (फोटो- ANI)

भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान तेलंगाना के विधानसभा अध्यक्ष गद्दाम प्रसाद कुमार के रवैये पर नाराजगी जताई थी।

इसके साथ, उन्हें कड़ी फटकार भी लगाई। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान यह तक पूछ दिया कि नया साल कहां मनाना है? जिसका मतलब साफ था कि अदालत के आदेशों की अवहेलना पर उन्हें नए साल पर जेल जाना पड़ सकता है।

कानूनी विशेषज्ञों ने जताई कड़ी आपत्ति

अब शीर्ष अदालत की तीखी टिप्पणी पर तेलंगाना के कानूनी विशेषज्ञों ने कड़ी आपत्ति जताई है। उनकी ओर से यह कहा गया है कि ऐसी टिप्पणी एक संवैधानिक पद की गरिमा को कम करती है।

तेलंगाना के प्रथम महाधिवक्ता के रामकृष्ण रेड्डी ने कहा- चीफ जस्टिस ने जो कहा उसका मतलब साफ था कि अध्यक्ष को अपना नया साल जेल में मनाना पड़ेगा? एक संवैधानिक पद (अध्यक्ष) को इस तरह संबोधित करना बिल्कुल गलत है।

उन्होंने मणिलाल सिंह बनाम एच बोरोबाबू सिंह मामले का हवाला दिया, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यक्ष को तलब तो किया, लेकिन सजा देने से परहेज किया, जिससे ऐसे मामलों में संयम बरतने की आवश्यकता पर बल मिला।

उन्होंने आगे तर्क दिया कि अयोग्यता की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय को अवमानना ​​की कार्यवाही शुरू करने की चेतावनी देने से पहले अध्यक्ष को कुछ और समय देना चाहिए था।

टीपीसीसी के कानूनी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष ने क्या कहा?

इस बीच, टीपीसीसी के कानूनी प्रकोष्ठ के अध्यक्ष पोन्नम अशोक गौड़ ने भी चीफ जस्टिस की टिप्पणियों पर चिंता व्यक्त की। गौड़ ने एक महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक बारीकियों पर प्रकाश डालते हुए कहा- न्यायाधीशों की मौखिक टिप्पणियां बाध्यकारी आदेश नहीं हो सकती हैं। मौखिक टिप्पणियों का कानूनी प्रभाव नहीं होगा, जब तक कि अदालत के आदेश में उन्हें लिखा न जाए।

क्या है पूरा मामला?

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को तेलंगाना विधानसभा के उस मामले में कड़ा रुख अपनाया, जिसमें बीआरएस से कांग्रेस में गए 10 विधायकों को दल-बदल कानून के तहत अयोग्य घोषित करने की मांग की गई है।

मुख्य न्यायाधीश बी।आर। गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने तेलंगाना विधानसभा स्पीकर को चेतावनी दी कि अगर एक हफ्ते के अंदर इस याचिका पर फैसला नहीं हुआ तो अदालत इसे कोर्ट की अवमानना मानेगी।

बीआरएस के 10 विधायकों ने कांग्रेस जॉइन कर ली थी

दरअसल, पिछले साल हुए तेलंगाना विधानसभा चुनाव के बाद बीआरएस के 10 विधायकों ने कांग्रेस जॉइन कर ली थी। इसके बाद बीआरएस ने इन सभी विधायकों के खिलाफ दसवीं अनुसूची (दल-बदल कानून) के तहत अयोग्य ठहराने की अर्जी स्पीकर के सामने रखी थी, लेकिन एक साल से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद स्पीकर ने कोई फैसला नहीं लिया।

इससे नाराज सुप्रीम कोर्ट ने 31 जुलाई 2025 को स्पीकर को साफ निर्देश दिया था कि तीन महीने के अंदर यानी अक्टूबर अंत तक इस मामले का निपटारा करें। जब सोमवार को मामले की सुनवाई हुई तो स्पीकर की ओर से अभी तक कोई फैसला न होने की जानकारी दी गई। इस पर सीजेआई ने रोष जताया।

उन्होंने सख्त लहजे में कहा कि या तो स्पीकर एक हफ्ते में फैसला ले लें या फिर खुद तय कर लें कि नया साल (2026) वह कहां बिताना चाहते हैं। कोर्ट का इशारा साफ था कि देरी जारी रही तो अवमानना की कार्रवाई हो सकती है और स्पीकर को जेल भी जाना पड़ सकता है।


बड़ी खबरें

View All

बिहार चुनाव

राष्ट्रीय

ट्रेंडिंग